साखी अंग

कबीर ग्रंथावली / साखी / 

टिप्पणियों के संबंध में स्पष्टीकरण : 
’ - संवत् 1561 में लिखी हस्तलिखित प्रति
 - संवत् 1881 में लिखी गयी प्रति


साखी

(1)गुरुदेव कौ अंग          (2) सुमिरण कौ अंग        (3) बिरह कौ अंग
(4) ग्यान बिरह कौ अंग 
    (5) परचा कौ अंग          (6) रस कौ अंग 
(7) लांबि कौ अंग 
         (8) जर्णा कौ अंग           (9) हैरान कौ अंग
(10) लै कौ अंग 
           (11) निहकर्मी पतिब्रता कौ अंग (12) चितावणी कौ अंग
(13) मन कौ अंग 
         (14) सूषिम मारग कौ अंग   (15) सूषिम जनम कौ अंग 
(16) माया कौ अंग 
        (17) चाँणक कौ अंग         (18) करणीं बिना कथणीं कौ अंग
(19) कथणीं बिना करणी कौ अंग (20) कामी नर कौ अंग 
  (21) सहज कौ अंग
(22) साँच कौ अंग 
         (23) भ्रम विधौंसण कौ अंग  (24) भेष कौ अंग
(25) कुसंगति कौ अंग 
      (26) संगति कौ अंग         (27) असाध कौ अंग 
(28) साध कौ अंग 
         (29) साध साषीभूत कौ अंग   (30) साध महिमाँ कौ अंग 
(31) मधि कौ अंग 
         (32) सारग्राही कौ अंग       (33) विचार कौ अंग
(34) उपदेश कौ अंग 
       (35) बेसास कौ अंग         (36) पीव पिछाँणन कौ अंग 
(37) बिर्कताई कौ अंग
     (38) सम्रथाई कौ अंग       (39) कुसबद कौ अंग
(40) सबद कौ अंग
         (41) जीवन मृतक कौ अंग   (42) चित कपटी कौ अंग
(43) गुरुसिष हेरा कौ अंग
   (44) हेत प्रीति सनेह कौ अंग (45) सूरा तन कौ अंग
(46) काल कौ अंग         (47) सजीवनी कौ अंग       (48) अपारिष कौ अंग
(49) पारिष कौ अंग 
        (50) उपजणि कौ अंग       (51) दया निरबैरता कौ अंग 
(52) सुंदरि कौ अंग 
        (53) कस्तूरियाँ मृग कौ अंग  (54) निंद्या कौ अंग
(55) निगुणाँ कौ अंग
       (56) बीनती कौ अंग         (57) साषीभूत कौ अंग
(58) बेलि कौ अंग
         (59) अबिहड़ कौ अंग



(1) गुरुदेव कौ अंग
सतगुर सवाँन को सगा, सोधी सईं न दाति।
हरिजी सवाँन को हितू, हरिजन सईं न जाति॥1
बलिहारी गुर आपणैं द्यौं हाड़ी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार॥2
टिप्पणी: क-ख-देवता के आगे कयापाठ है जो अनावश्यक है।
सतगुर की महिमा, अनँत, अनँत किया उपगार।
लोचन अनँत उघाड़िया, अनँत दिखावणहार॥3
राम नाम के पटतरे, देबे कौ कुछ नाहिं।
क्या ले गुर सन्तोषिए, हौंस रही मन माहिं॥4
सतगुर के सदकै करूँ, दिल अपणी का साछ।
सतगुर हम स्यूँ लड़ि पड़ा महकम मेरा बाछ॥5
टिप्पणी: ख-सदकै करौं। ख-साच। तुक मिलाने के लिऐ साछ’ ‘साक्षलिखा है।
सतगुर लई कमाँण करि, बाँहण लागा तीर।
एक जु बाह्यां प्रीति सूँ, भीतरि रह्या सरीर॥6
सतगुर साँवा सूरिवाँ, सबद जू बाह्या एक।
लागत ही में मिलि गया, पढ़ा कलेजै छेक॥7
सतगुर मार्‌या बाण भरि, धरि करि सूधी मूठि।
अंगि उघाड़ै लागिया, गई दवा सूँ फूंटि॥8
हँसै न बोलै उनमनी, चंचल मेल्ह्या मारि।
कहै कबीर भीतरि भिद्या, सतगुर कै हथियार॥9
गूँगा हूवा बावला, बहरा हुआ कान।
पाऊँ थै पंगुल भया, सतगुर मार्‌या बाण॥10
पीछे लागा जाइ था, लोक वेद के साथि।
आगै थैं सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि॥11
दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट।
पूरा किया बिसाहूणाँ, बहुरि न आँवौं हट्ट॥12
टिप्पणी: क-ख-अघट, हट।
ग्यान प्रकास्या गुर मिल्या, सो जिनि बीसरि जाइ।
जब गोबिंद कृपा करी, तब गुर मिलिया आइ॥13
टिप्पणी: क-गोब्यंद।
कबीर गुर गरवा मिल्या, रलि गया आटैं लूँण।
जाति पाँति कुल सब मिटै, नांव धरोगे कौण॥14
जाका गुर भी अंधला, चेला खरा निरंध।
अंधा अंधा ठेलिया, दून्यूँ कूप पड़ंत॥15
टिप्पणी: क-चेला हैजा चंद (? है गा अंध)।
नाँ गुर मिल्या न सिष भया, लालच खेल्या डाव।
दुन्यूँ बूड़े धार मैं, चढ़ि पाथर की नाव॥16
चौसठ दीवा जोइ करि, चौदह चन्दा माँहि।
तिहिं धरि किसकौ चानिणौं, जिहि घरि गोबिंद नाहिं॥17
टिप्पणी: ख-चाँरिणौं। ख-तिहि...जिहि।
निस अधियारी कारणैं, चौरासी लख चंद।
अति आतुर ऊदै किया, तऊ दिष्टि नहिं मंद॥18
भली भई जू गुर मिल्या, नहीं तर होती हाँणि।
दीपक दिष्टि पतंग ज्यूँ, पड़ता पूरी जाँणि॥19
माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवै पड़ंत।
कहै कबीर गुर ग्यान थैं, एक आध उबरंत॥20
सतगुर बपुरा क्या करै, जे सिषही माँहै चूक।
भावै त्यूँ प्रमोधि ले, ज्यूँ वंसि बजाई फूक॥21
टिप्पणी: ख-प्रमोदिए। जाँणे बास जनाई कूद।
संसै खाया सकल जुग, संसा किनहुँ न खद्ध।
जे बेधे गुर अष्षिरां, तिनि संसा चुणि चुणि खद्ध॥22
टिप्पणी: ख-सैल जुग।
चेतनि चौकी बैसि करि, सतगुर दीन्हाँ धीर।
निरभै होइ निसंक भजि, केवल कहै कबीर॥23
सतगुर मिल्या त का भयां, जे मनि पाड़ी भोल।
पासि बिनंठा कप्पड़ा, क्या करै बिचारी चोल॥24
बूड़े थे परि ऊबरे, गुर की लहरि चमंकि।
भेरा देख्या जरजरा, (तब) ऊतरि पड़े फरंकि॥25
टिप्पणी: ख-जाजरा। इस दोहे के आगे ख प्रति में यह दोहा है-
कबीर सब जग यों भ्रम्या फिरै ज्यूँ रामे का रोज।
सतगुर थैं सोधी भई, तब पाया हरि का षोज॥27
गुरु गोविन्द तौ एक है, दूजा यह आकार।
आपा मेट जीवत मरै, तो पावै करतार॥26
कबीर सतगुर नाँ मिल्या, रही अधूरी सीप।
स्वांग जती का पहरि करि, घरि घरि माँगै भीष॥27
टिप्पणी: इसके आगे ख प्रति में यह दोहा है-
कबीर सतगुर ना मिल्या, सुणी अधूरी सीष।
मुँड मुँडावै मुकति कूँ, चालि न सकई वीष॥29

सतगुर साँचा सूरिवाँ, तातै लोहिं लुहार।
कसणो दे कंचन किया, ताई लिया ततसार॥28
टिप्पणी: ख-सतगुर मेरा सूरिवाँ।
थापणि पाई थिति भई, सतगुर दीन्हीं धीर।
कबीर हीरा बणजिया, मानसरोवर तीर॥29
टिप्पणी: इसके आगे ख प्रति में यह दोहा है-
कबीर हीरा बणजिया, हिरदे उकठी खाणि।
पारब्रह्म क्रिपा करी सतगुर भये सुजाँण॥
निहचल निधि मिलाइ तत, सतगुर साहस धीर।
निपजी मैं साझी घणाँ, बांटै नहीं कबीर॥30
चौपड़ि माँडी चौहटै, अरध उरध बाजार।
कहै कबीरा राम जन, खेलौ संत विचार॥31
पासा पकड़ा प्रेम का, सारी किया सरीर।
सतगुर दावा बताइया, खेलै दास कबीर॥32
सतगुर हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।
बरस्या बादल प्रेम का भीजि गया अब अंग॥33
कबीर बादल प्रेम का, हम परि बरष्या आइ।
अंतरि भीगी आत्माँ हरी भई बनराइ॥34
टिप्पणी: ख-में नहीं हैं।
पूरे सूँ परचा भया, सब दुख मेल्या दूरि।
निर्मल कीन्हीं आत्माँ ताथैं सदा हजूरि॥35
टिप्पणी: ख-में नहीं है।

(2) सुमिरण कौ अंग

कबीर कहता जात हूँ, सुणता है सब कोइ।
राम कहें भला होइगा, नहिं तर भला न होइ॥1
कबीर कहै मैं कथि गया, कथि गया ब्रह्म महेस।
राम नाँव सतसार है, सब काहू उपदेस॥2
तत तिलक तिहूँ लोक मैं, राम नाँव निज सार।
जब कबीर मस्तक दिया सोभा अधिक अपार॥3
भगति भजन हरि नाँव है, दूजा दुक्ख अपार।
मनसा बचा क्रमनाँ, कबीर सुमिरण सार॥4
कबीर सुमिरण सार है, और सकल जंजाल।
आदि अंति सब सोधिया दूजा देखौं काल॥5
चिंता तौ हरि नाँव की, और न चिंता दास।
जे कछु चितवैं राम बिन, सोइ काल कौ पास॥6
पंच सँगी पिव पिव करै, छटा जू सुमिरे मन।
मेरा मन सुमिरै राम कूँ, मेरा मन रामहिं आहि॥7
मेरा मन सुमिरै राम कूँ, मेरा मन रामहिं आहि।
अब मन रामहिं ह्नै रह्या, सीस नवावौं काहि॥8
तूँ तूँ करता तूँ भया, मुझ मैं रही न हूँ।
वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तूँ॥9
कबीर निरभै राम जपि, जब लग दीवै बाति।
तेल घट्या बाती बुझी, (तब) सोवैगा दिन राति॥10
कबीर सूता क्या करै, जागि न जपै मुरारि।
एक दिनाँ भी सोवणाँ, लंबे पाँव पसारि॥11
कबीर सूता क्या करै, काहे न देखै जागि।
जाका संग तैं बीछुड़ा, ताही के संग लागि॥12
कबीर सूता क्या करै उठि न रोवै दुक्ख।
जाका बासा गोर मैं, सो क्यूँ सोवै सुक्ख॥13
कबीर सूता क्या करै, गुण गोबिंद के गाइ।
तेरे सिर परि जम खड़ा, खरच कदे का खाइ॥14
कबीर सूता क्या करै, सुताँ होइ अकाज।
ब्रह्मा का आसण खिस्या, सुणत काल को गाज॥15
केसो कहि कहि कूकिये, नाँ सोइयै असरार।
राति दिवस के कूकणौ, (मत) कबहूँ लगै पुकार॥16 
{ख-में नहीं है।}
जिहि घटि प्रीति न प्रेम रस, फुनि रसना नहीं राम।
ते नर इस संसार में, उपजि षये बेकाम॥17 
(क-आइ संसार में।)
कबीर प्रेम न चाषिया, चषि न लीया साव।
सूने घर का पाहुणाँ, ज्यूँ आया त्यूँ जाव॥18
पहली बुरा कमाइ करि, बाँधी विष की पोट।
कोटि करम फिल पलक मैं, (जब) आया हरि की वोट॥19
कोटि क्रम पेलै पलक मैं, जे रंचक आवै नाउँ।
अनेक जुग जे पुन्नि करै, नहीं राम बिन ठाउँ॥20
जिहि हरि जैसा जाणियाँ, तिन कूँ तैसा लाभ।
ओसों प्यास न भाजई, जब लग धसै न आभ॥21
राम पियारा छाड़ि करि, करै आन का जाप।
बेस्वाँ केरा पूत ज्यूँ, कहे कौन सूँ बाप॥22
कबीर आपण राम कहि, औरां राम कहाइ।
जिहि मुखि राम न ऊचरे, तिहि मुख फेरि कहाइ॥23
टिप्पणी: 
ख- जा युष, ता युष
जैसे माया मन रमै, यूँ जे राम रमाइ।
(तौ) तारा मण्डल छाँड़ि करि, जहाँ के सो तहाँ जाइ॥24
लूटि सकै तो लूटियो, राम नाम है लूटि।
पीछै ही पछिताहुगे, यहु तन जैहै छूटि॥25
लूटि सकै तो लूटियो, राम नाम भण्डार।
काल कंठ तै गहैगा, रूंधे दसूँ दुवार॥26
लम्बा मारग दूरि घर, विकट पंथ बहु मार।
कहौ संतो क्यूँ पाइये, दुर्लभ हरिदीदार॥27
गुण गाये गुण ना कटै, रटै न राम बियोग।
अह निसि हरि ध्यावै नहीं, क्यूँ पावै दुरलभ जोग॥28
कबीर कठिनाई खरी, सुमिरतां हरि नाम।
सूली ऊपरि नट विद्या, गिरूँ तं नाहीं ठाम॥29
कबीर राम ध्याइ लै, जिभ्या सौं करि मंत।
हरि साग जिनि बीसरै, छीलर देखि अनंत॥30
कबीर राम रिझाइ लै, मुखि अमृत गुण गाइ।
फूटा नग ज्यूँ जोड़ि मन, संधे संधि मिलाइ॥31
कबीर चित्त चमंकिया, चहुँ दिस लागी लाइ।
हरि सुमिरण हाथूं घड़ा, बेगे लेहु बुझाइ॥3267

(3) बिरह कौ अंग

रात्यूँ रूँनी बिरहनीं, ज्यूँ बंचौ कूँ कुंज।
कबीर अंतर प्रजल्या, प्रगट्या बिरहा पुंज॥1
अबंर कुँजाँ कुरलियाँ, गरिज भरे सब ताल।
जिनि थे गोविंद बीछुटे, तिनके कौण हवाल॥2
चकवी बिछुटी रैणि की, आइ मिली परभाति।
जे जन बिछुटे राम सूँ, ते दिन मिले न राति॥3
बासुरि सुख नाँ रैणि सुख, ना सुख सुपिनै माँहि।
कबीर बिछुट्या राम सूँ ना सुख धूप न छाँह॥4
बिरहनि ऊभी पंथ सिरि, पंथी बूझै धाइ।
एक सबद कहि पीव का, कब रे मिलैगे आइ॥5
बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी राम।
जिव तरसै तुझ मिलन कूँ, मनि नाहीं विश्राम॥6
बिरहिन ऊठै भी पड़े, दरसन कारनि राम।
मूवाँ पीछे देहुगे, सो दरसन किहिं काम॥7
मूवाँ पीछै जिनि मिलै, कहै कबीरा राम।
पाथर घाटा लोह सब, (तब) पारस कौंणे काम॥8
अंदेसड़ा न भाजिसी, संदेसो कहियाँ।
कै हरि आयां भाजिसी, कै हरि ही पासि गयां॥9
आइ न सकौ तुझ पै, सकूँ न तूझ बुझाइ।
जियरा यौही लेहुगे, बिरह तपाइ तपाइ॥10
यहु तन जालौं मसि करूँ, ज्यूँ धूवाँ जाइ सरग्गि।
मति वै राम दया, करै, बरसि बुझावै अग्गि॥11
यहु तन जालै मसि करौंलिखौं राम का नाउँ।
लेखणिं करूँ करंक कीलिखि लिखि राम पठाउँ॥12
कबीर पीर पिरावनींपंजर पीड़ न जाइ।
एक ज पीड़ परीति कीरही कलेजा छाइ॥13
चोट सताड़ी बिरह कीसब तन जर जर होइ।
मारणहारा जाँणिहैकै जिहिं लागी सोइ॥14
कर कमाण सर साँधि करिखैचि जू मार्‌या माँहि।
भीतरि भिद्या सुमार ह्नै जीवै कि जीवै नाँहि॥15
जबहूँ मार्‌या खैंचि करितब मैं पाई जाँणि।
लांगी चोट मरम्म कीगई कलेजा जाँणि॥16
जिहि सर मारी काल्हि सो सर मेरे मन बस्या।
तिहि सरि अजहूँ मारिसर बिन सच पाऊँ नहीं॥17
बिरह भुवंगम तन बसैमंत्रा न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवैजिवै त बीरा होइ॥18
बिरह भुवंगम पैसि करिकिया कलेजै घाव।
साधू अंग न मोड़हीज्यूँ भावै त्यूँ खाव॥19
सब रग तंत रबाब तनबिरह बजावै नित्त।
और न कोई सुणि सकैकै साई के चित्त॥20
बिरहा बिरहा जिनि कहौबिरहा है सुलितान।
जिह घटि बिरह न संचरैसो घट सदा मसान॥21
अंषड़ियाँ झाई पड़ीपंथ निहारि निहारि।
जीभड़ियाँ छाला पड़्याराम पुकारि पुकारि॥22
इस तन का दीवा करौंबाती मेल्यूँ जीव।
लोही सींचौ तेल ज्यूँकब मुख देखौं पीव॥23
नैंना नीझर लाइयारहट बहै निस जाम।
पपीहा ज्यूँ पिव पिव करौंकबरू मिलहुगे राम॥24
अंषड़िया प्रेम कसाइयाँलोग जाँणे दुखड़ियाँ।
साँई अपणैं कारणैरोइ रोइ रतड़िया॥25
सोई आँसू सजणाँसोई लोक बिड़ाँहि।
जे लोइण लोंहीं चुवैतौ जाँणों हेत हियाँहि॥26
कबीर हसणाँ दूरि करिकरि रोवण सौं चित्त।
बिन रोयाँ क्यूँ पाइयेप्रेम पियारा मित्त॥27
जौ रोऊँ तो बल घटेहँसौं तो राम रिसाइ।
मनही माँहि बिसूरणाँज्यूँ घुंण काठहि खाइ॥28
हंसि हंसि कंत न पाइएजिनि पाया तिनि रोइ।
जो हाँसेही हरि मिलैतो नहीं दुहागनि कोइ॥29
हाँसी खेलौ हरि मिलैतौ कौण सहे षरसान।
काम क्रोध त्रिष्णाँ तजैताहि मिलैं भगवान॥30
पूत पियारो पिता कौंगौंहनि लागा धाइ।
लोभ मिठाई हाथ देआपण गया भुलाइ॥31
डारि खाँड़ पटकि करिअंतरि रोस उपाइ।
रोवत रोवत मिलि गयापिता पियारे जाइ॥32
टिप्पणी: ख-में इसके अनंतर यह दोहा है-
मो चित तिलाँ न बीसरौतुम्ह हरि दूरि थंयाह।
इहि अंगि औलू भाइ जिसीजदि तदि तुम्ह म्यलियांह॥
नैना अंतरि आचरूँनिस दिन निरषौं तोहि।
कब हरि दरसन देहुगे सो दिन आवै मोंहि॥33
कबीर देखत दिन गयानिस भी देखत जाइ।
बिरहणि पीव पावे नहींजियरा तलपै भाइ॥34
कै बिरहनि कूं मींच देकै आपा दिखलाइ।
आठ पहर का दाझणांमोपै सह्या न जाइ॥35
बिरहणि थी तो क्यूँ रहीजली न पीव के नालि।
रहु रहु मुगध गहेलड़ीप्रेम न लाजूँ मारि॥36
हौं बिरहा की लाकड़ीसमझि समझि धूंधाउँ।
छूटि पड़ौं यों बिरह तेंजे सारीही जलि जाउँ॥37
कबीर तन मन यों जल्याबिरह अगनि सूँ लागि।
मृतक पीड़ न जाँणईजाँणैगि यहूँ आगि॥38
बिरह जलाई मैं जलौंजलती जल हरि जाउँ।
मो देख्याँ जल हरि जलैसंतौं कहीं बुझाउँ॥39
परबति परबति में फिर्‌यानैन गँवाये रोइ।
सो बूटी पाऊँ नहींजातें जीवनि होइ॥40
फाड़ि फुटोला धज करौंकामलड़ी पहिराउँ।
जिहि जिहिं भेषा हरि मिलैंसोइ सोइ भेष कराउँ॥41
नैन हमारे जलि गयेछिन छिन लोड़ै तुझ।
नां तूं मिलै न मैं खुसीऐसी बेदन मुझ॥42
भेला पाया श्रम सोंभौसागर के माँह।
जो छाँड़ौ तौ डूबिहौगहौं त डसिये बाँह॥43
नोट: ख-में इसके आगे यह दोहा है-
बिरह जलाई मैं जलौंमो बिरहिन कै दूष।
छाँह न बैसों डरपतीमति जलि ऊठे रूष॥46

रैणा दूर बिछोहियारह रे संषम झूरि।
देवलि देवलि धाहड़ीदेखी ऊगै सूरि॥44
सुखिया सब संसार हैखाये अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर हैजागे अरु रोवै॥45112

दीपक पावक आंणियातेल भी आंण्या संग।
तीन्यूं मिलि करि जोइया, (तब) उड़ि उड़ि पड़ैं पतंग॥1
मार्‌या है जे मरेगाबिन सर थोथी भालि।
पड्या पुकारे ब्रिछ तरिआजि मरै कै काल्हि॥2
हिरदा भीतरि दौ बलैधूंवां प्रगट न होइ।
जाके लागी सो लखेके जिहि लाई सोइ॥3
झल उठा झोली जलीखपरा फूटिम फूटि।
जोगी था सो रमि गयाआसणि रही बिभूत॥4
अगनि जू लागि नीर मेंकंदू जलिया झारि।
उतर दषिण के पंडितारहे विचारि बिचारि॥5
दौं लागी साइर जल्यापंषी बैठे आइ।
दाधी देह न पालवै सतगुर गया लगाइ॥6
गुर दाधा चेल्या जल्याबिरहा लागी आगि।
तिणका बपुड़ा ऊबर्‌यागलि पूरे के लागि॥7
आहेड़ी दौ लाइयामृग पुकारै रोइ।
जा बन में क्रीला करीदाझत है बन सोइ॥8
पाणी मांहे प्रजलीभई अप्रबल आगि।
बहती सलिता रहि गईमेछ रहे जल त्यागि॥9
समंदर लागी आगिनदियां जलि कोइला भई।
देखि कबीरा जागिमंछी रूषां चढ़ि गई॥10122
टिप्पणी: ख-में इसके आगे यह दोहा है-
बिरहा कहै कबीर कौं तू जनि छाँड़े मोहि।
पारब्रह्म के तेज मैंतहाँ ले राखौं तोहि॥


(5) परचा कौ अंग

कबीर तेज अनंत कामानी ऊगी सूरज सेणि।
पति संगि जागी सूंदरीकौतिग दीठा तेणि॥1
कोतिग दीठा देह बिनमसि बिना उजास।
साहिब सेवा मांहि हैबेपरवांही दास॥2
पारब्रह्म के तेज काकैसा है उनमान।
कहिबे कूं सोभा नहींदेख्याही परवान॥3
अगम अगोचर गमि नहींतहां जगमगै जोति।
जहाँ कबीरा बंदिगी, ‘तहां’ पाप पुन्य नहीं छोति॥4
हदे छाड़ि बेहदि गयाहुवा निरंतर बास।
कवल ज फूल्या फूल बिनको निरषै निज दास॥5
कबीर मन मधुकर भयारह्या निरंतर बास।
कवल ज फूल्या जलह बिनको देखै निज दास॥6
टिप्पणी : ख-कवल जो फूला फूल बिन
अंतर कवल प्रकासियाब्रह्म बास तहां होइ।
मन भवरा तहां लुबधियाजांणैगा जन कोइ॥7
सायर नाहीं सीप बिनस्वाति बूँद भी नाहिं।
कबीर मोती नीपजैसुन्नि सिषर गढ़ माँहिं॥8
घट माँहे औघट लह्याऔघट माँहैं घाट।
कहि कबीर परचा भयागुरु दिखाई बाट॥9
टिप्पणी: क-औघट पाइया।
सूर समांणो चंद मेंदहूँ किया घर एक।
मनका च्यंता तब भयाकछू पूरबला लेख॥10
हद छाड़ि बेहद गयाकिया सुन्नि असनान।
मुनि जन महल न पावईतहाँ किया विश्राम॥11
देखौ कर्म कबीर काकछु पूरब जनम का लेख।
जाका महल न मुनि लहैंसो दोसत किया अलेख॥12
पिंजर प्रेमे प्रकासियाजाग्या जोग अनंत।
संसा खूटा सुख भयामिल्या पियारा कंत॥13
प्यंजर प्रेम प्रकासियाअंतरि भया उजास।
मुख कसतूरी महमहींबांणीं फूटी बास॥14
मन लागा उन मन्न सोंगगन पहुँचा जाइ।
देख्या चंदबिहूँणाँचाँदिणाँतहाँ अलख निरंजन राइ॥15
मन लागा उन मन सोंउन मन मनहि बिलग।
लूँण बिलगा पाणियाँपाँणीं लूँणा बिलग॥16
पाँणी ही तें हिम भयाहिम ह्नै गया बिलाइ।
जो कुछ था सोई भयाअब कछू कह्या न जाइ॥17
भली भई जु भै पड्यागई दशा सब भूलि।
पाला गलि पाँणी भयाढुलि मिलिया उस कूलि॥18
चौहटै च्यंतामणि चढ़ीहाडी मारत हाथि।
मीरा मुझसूँ मिहर करिइब मिलौं न काहू साथि॥19
पंषि उडाणी गगन कूँप्यंड रह्या परदेस।
पाँणी पीया चंच बिनभूलि गया यहु देस॥20
पंषि उड़ानी गगन कूँउड़ी चढ़ी असमान।
जिहिं सर मण्डल भेदियासो सर लागा कान॥21
सुरति समाँणो निरति मैंनिरति रही निरधार।
सुरति निरति परचा भयातब खूले स्यंभ दुवार॥22
सुरति समाँणो निरति मैंअजपा माँहै जाप।
लेख समाँणाँ अलेख मैंयूँ आपा माँहै आप॥23
आया था संसार मेंदेषण कौं बहु रूप।
कहै कबीरा संत हीपड़ि गया नजरि अनूप॥24
अंक भरे भरि भेटियामन मैं नाँहीं धीर।
कहै कबीर ते क्यूँ मिलैंजब लग दोइ सरीर॥25
सचु पाया सुख ऊपनाँअरु दिल दरिया पूरि।
सकल पाप सहजै गयेजब साँई मिल्या हजूरि॥26
टिप्पणी: ख-सकल अघ।
धरती गगन पवन नहीं होतानहीं तोयानहीं तारा।
तब हरि हरि के जन होतेकहै कबीर बिचारा॥27
जा दिन कृतमनां हुताहोता हट न पट।
हुता कबीरा राम जनजिनि देखै औघट घट॥28
थिति पाई मन थिर भयासतगुर करी सहाइ।
अनिन कथा तनि आचरीहिरदै त्रिभुवन राइ॥29
हरि संगति सीतल भयामिटा मोह की ताप।
निस बासुरि सुख निध्य लह्याजब अंतरि प्रकट्या आप॥30
तन भीतरि मन मानियाँबाहरि कहा न जाइ।
ज्वाला तै फिरि जल भयाबुझी बलंती लाइ॥31
तत पाया तन बीसर्‌याजब मुनि धरिया ध्यान।
तपनि गई सीतल भयाजब सुनि किया असनान॥32
जिनि पाया तिनि सू गह्या गयारसनाँ लागी स्वादि।
रतन निराला पाईयाजगत ढंढाल्या बादि॥33
कबीर दिल स्याबति भयापाया फल सम्रथ्थ।
सायर माँहि ढंढोलताँहीरै पड़ि गया हथ्थ॥34
जब मैं था तब हरि नहींअब हरि है मैं नाँहि।
सब अँधियारा मिटि गयाजब दीपक देख्या माँहि॥35
जा कारणि मैं ढूंढतासनमुख मिलिया आइ।
धन मैली पिव ऊजलालागि न सकौं पाइ॥36
जा कारणि मैं जाइ थासोई पाई ठौर।
सोई फिर आपण भयाजासूँ कहता और॥37
कबीर देख्या एक अंगमहिमा कही न जाइ।
तेज पुंज पारस धणोंनैनूँ रहा समाइ॥38
मानसरोवर सुभर जलहंसा केलि कराहिं।
मुकताहल मुकता चुगैंअब उड़ि अनत न जाहिं॥39
गगन गरिजि अमृत चवैकदली कंवल प्रकास।
तहाँ कबीरा बंदिगीकै कोई निज दास॥40
नींव बिहुणां देहुरादेह बिहूँणाँ देव।
कबीर तहाँ बिलंबिया करे अलप की सेव॥41
देवल माँहै देहुरीतिल जेहैं बिसतार।
माँहैं पाती माँहिं जलमाँहे पुजणहार॥42
कबीर कवल प्रकासियाऊग्या निर्मल सूर।
निस अँधियारी मिटि गईबाजै अनहद तूर॥43
अनहद बाजै नीझर झरैउपजै ब्रह्म गियान।
अविगति अंतरि प्रगटैलागै प्रेम धियान॥44
आकासै मुखि औंधा कुवाँपाताले पनिहारि।
ताका पाँणीं को हंसा पीवैबिरला आदि बिचारि॥45
सिव सकती दिसि कौंण जु जोवैपछिम दिस उठै धूरि।
जल मैं स्यंघ जु घर करैमछली चढ़ै खजूरि॥46
अमृत बरसै हीरा निपजैघंटा पड़ै टकसाल।
कबीर जुलाहा भया पारषूअगभै उतर्‌या पार॥47
ममिता मेरा क्या करैप्रेम उघाड़ी पौलि।
दरसन भया दयाल कासूल भई सुख सौड़ि॥48170

कबीर हरि रस यौं पिया बाकी रही न थाकि।
पाका कलस कुँभार काबहुरि न चढ़हिं चाकि॥1
राम रसाइन प्रेम रस पीवतअधिक रसाल।
कबीर पीवण दुलभ हैमाँगै सीस कलाल॥2
कबीर भाठी कलाल कीबहुतक बैठे आइ।
सिर सौंपे सोई पिवैनहीं तो पिया न जाइ॥3
हरि रस पीया जाँणियेजे कबहूँ न जाइ खुमार।
मैंमंता घूँमत रहैनाँही तन की सार॥4
मैंमंता तिण नां चरैसालै चिता सनेह।
बारि जु बाँध्या प्रेम कैडारि रह्या सिरि षेह॥5
मैंमंता अविगत रहाअकलप आसा जीति।
राम अमलि माता रहैजीवन मुकति अतीकि॥6
जिहि सर घड़ा न डूबताअब मैं गल मलि न्हाइ।
देवल बूड़ा कलस सूँपंषि तिसाई जाइ॥7
सबै रसाइण मैं कियाहरि सा और न कोइ।
तिल इक घट मैं संचरेतौ सब तन कंचन होइ॥8168
टिप्पणी: ख-रिचक घट में संचरे।



कया कमंडल भरि लियाउज्जल निर्मल नीर।
तन मन जोबन भरि पियाप्यास न मिटी सरीर॥1
मन उलट्या दरिया मिल्यालागा मलि मलि न्हांन।
थाहत थाह न आवईतूँ पूरा रहिमान॥2
हेरत हेरत हे सखीरह्या कबीर हिराइ।
बूँद समानी समंद मैंसो कत हेरी जाइ॥3
हेरत हेरत हे सखीरह्या कबीर हिराइ।
समंद समाना बूँद मैंसो कत हेरह्या जाइ॥4172

भारी कहौं त बहु डरौहलका कहूँ तो झूठ।
मैं का जाँणौं राम कूंनैनूं कबहुं न दीठ॥1
टिप्पणी: क-हलवा कहूँ।
दीठा है तो कस कहूँकह्या न को पतियाइ।
हरि जैसा है तैसा रहौतूं हरिषि हरिषि गुण गाइ॥2
ऐसा अद्भूत जिनि कथैअद्भुत राखि लुकाइ
बेद कुरानों गमि नहींकह्याँ न को पतियाइ॥3
करता की गति अगम हैतूँ चलि अपणैं उनमान।
धीरैं धीरैं पाव देपहुँचैगे परवान॥4
पहुँचैगे तब कहैंगेअमड़ैगे उस ठाँइ।
अजहूँ बेरा समंद मैंबोलि बिगूचै काँइ॥5

पंडित सेती कहि रहेकह्या न मानै कोइ।
ओ अगाध एका कहैभारी अचिरज होइ॥1
बसे अपंडी पंड मैंता गति लषै न कोइ।
कहै कबीरा संत हौबड़ा अचम्भा मोहि॥2179
 
जिहि बन सोह न संचरैपंषि उड़ै नहिं जाइ।
रैनि दिवस का गमि नहींतहां कबीर रह्या ल्यो आइ॥1
सुरति ढीकुली ले जल्योमन नित ढोलन हार।
कँवल कुवाँ मैं प्रेम रसपीवै बारंबार॥2
टिप्पणी: ख-खमन चित।
गंग जमुन उर अंतरैसहज सुंनि ल्यौ घाट।
तहाँ कबीरै मठ रच्यामुनि जन जोवैं बाट॥3182

कबीर प्रीतडी तौ तुझ सौंबहु गुणियाले कंत।
जे हँसि बोलौं और सौंतौं नील रँगाउँ दंत॥1
नैना अंतरि आव तूँज्यूँ हौं नैन झँपेउँ।
नाँ हौं देखौं और कूंनाँ तुझ देखन देउँ॥2
मेरा मुझ में कुछ नहींजो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझको सौंपताक्या लागै है मेरा॥3
कबीर रेख स्यंदूर कीकाजल दिया न जाइ।
नैनूं रमइया रमि रह्यादूजा कहाँ समाइ॥4
कबीर सीप समंद कीरटै पियास पियास।
संमदहि तिणका बरि गिणै स्वाँति बूँद की आस॥5
कबीर सुख कौ जाइ थाआगै आया दुख।
जाहि सुख घरि आपणै हम जाणैं अरु दुख॥6
दो जग तो हम अंगियायहु डर नाहीं मुझ।
भिस्त न मेरे चाहियेबाझ पियारे तुझ॥7
टिप्पणी: ख-भिसति।
जे वो एकै न जाँणियाँ तो जाँण्याँ सब जाँण।
जो वो एक न जाँणियाँतो सबहीं जाँण अजाँण॥8
कबीर एक न जाँणियाँतो बहु जाँण्याँ क्या होइ।
एक तैं सब होत हैसब तैं एक न होइ॥9
जब लगि भगति सकांमतातब लग निर्फल सेव।
कहै कबीर वै क्यूं मिलैंनिहकामी निज देव॥10
आसा एक जू राम कीदूजी आस निरास।
पाँणी माँहै घर करैंते भी मरै पियास॥11
टिप्पणी: इसके आगे ख में ये दोहे हैं-
आसा एक ज राम कीदूजी आस निवारी।
आसा फिरि फिर मारसीज्यूँ चौपड़ि का सारि॥11
आसा एक ज राम की जुग जुग पुरवे आस।
जै पाडल क्यों रे करैबसैहिं जु चंदन पास॥12
जे मन लागै एक सूँतो निरबाल्या जाइ।
तूरा दुइ मुखि बाजणाँ न्याइ तमाचे खाइ॥12
कबीर कलिजुग आइ करिकीये बहुतज मीत।
जिन दिल बँधी एक सूँते सुखु सोवै नचींत॥13
कबीर कुता राम कामुतिया मेरा नाउँ।
गलै राम की जेवडीजित खैचे तित जाउँ॥14
तो तो करै त बाहुड़ोंदुरि दुरि करै तो जाउँ।
ज्यूँ हरि राखैं त्यूँ रहौंजो देवै सो खाउँ॥15
मन प्रतीति न प्रेम रसनां इस तन मैं ढंग।
क्या जाणौं उस पीव सूंकैसे रहसी रंग॥16
उस संम्रथ का दास हौंकदे न होइ अकाज।
पतिब्रता नाँगी रहैतो उसही पुरिस कौ लाज॥17
धरि परमेसुर पाँहुणाँसुणौं सनेही दास।
षट रस भोजन भगति करिज्यूँ कदे न छाड़ैपास॥18200

कबीर नौबति आपणीदिन दस लेहु बजाइ।
ए पुर पटन ए गलीबहुरि न देखै आइ॥1
जिनके नौबति बाजतीमैंगल बँधते बारि।
एकै हरि के नाँव बिनगए जन्म सब हारि॥2
ढोल दमामा दड़बड़ीसहनाई संगि भेरि।
औसर चल्या बजाइ करिहै कोइ राखै फेरि॥3
सातो सबद जु बाजतेघरि घरि होते राग।
ते मंदिर खाली पड़ेबैसण लागे काग॥4
कबीर थोड़ा जीवणा माड़े बहुत मँडाण।
सबही ऊभा मेल्हि गयाराव रंक सुलितान॥5
इक दिन ऐसा होइगासब सूँ पड़ै बिछोइ।
राजा राणा छत्रापतिसावधान किन होइ॥6
टिप्पणी: ख-में इसके आगे यह दोहा है-
ऊजड़ खेड़ै ठीकरीघड़ि घड़ि गए कुँभार।
रावण सरीखे चलि गएलंका के सिकदार॥7


कबीर पटल कारिवाँपंच चोर दस द्वार।
जन राँणौं गढ़ भेलिसीसुमिरि लै करतार॥7
टिप्पणी: ख-जम...भेलसीबोल गले गोपाल।

कबीर कहा गरबियौइस जीवन की आस।
टेसू फूले दिवस चारिखंखर भये पलास॥8
कबीर कहा गरबियोदेही देखि सुरंग।
बिछड़ियाँ मिलिनौ नहींज्यूँ काँचली भुवंग॥9
कबीर कहा गरिबियोऊँचे देखि अवास।
काल्हि पर्‌यूँ भ्वै लेटणाँऊपरि जामैं घास॥10
कबीर कहा गरबियौचाँम लपेटे हड।
हैबर ऊपरि छत्रा सिरिते भी देबा खड॥11
कबीर कहा गरबियोकाल गहै कर केस।
नां जाँणों कहाँ मारिसीकै घरि कै परदेस॥12
टिप्पणी: ख-कत मारसी।
यहु ऐसा संसार है जैसा सैबल फूल।
दिन दस के व्योहार कोझूठै रंगि न भूल॥13
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
मीति बिसारी बाबरेअचिरज कीया कौन।
तन माटी में मिलि गयाज्यूँ आटे मैं लूण॥15
जाँभण मरण बिचारि करिकूडे काँम निहारि।
जिनि पंथू तुझ चालणांसोई पंथ सँवारि॥14
बिन रखवाले बहिराचिड़ियैं खाया खेत।
आधा प्रधा ऊबरैचेति कै तो चेति॥15
हाड़ जलै ज्यूँ लाकड़ीकेस जलै ज्यूँ घास।
सब तन जलता देखि करिभया कबीर उदास॥16
टिप्पणी: ख में इसके आगे ये दोहे हैं-
मड़ा जलै लकड़ी जलैजलै जलावणहार।
कौतिगहारे भी जलैंकासनि करौ पुकार॥23
कबीर देवल हाड कामारी तणा बधाँण।
खड हडता पाया नहींदेवल का रहनाँण॥24

कबीर मंदिर ढहि पड़ासेंट भई सैबार।
कोई मंदिर चिणि गयामिल्या न दूजी बार॥17
टिप्पणी: ख-देवल ढहि।
(16, 17)नंबर के दोहे ‘’ प्रति में 22, 23 नंबर पर हैं।
आजि कि काल्हि कि पचे दिनजंगल होइगा बास।
ऊपरि ऊपरि फिरहिंगेढोर चरंदे घास॥18
मरहिंगे मरि जाहिंगेनांव न लेखा कोइ।
ऊजड़ जाइ बसाहिंगेछाँड़ि बसंती लोइ॥19
कबीर खेति किसाण काभ्रगौ खाया खाड़ि।
खेत बिचारा क्या करेजो खसम न करई बाड़ि॥20
कबीर देवल ढहि पड़ाईंट भई सैवार।
करि चेजारा सौ प्रीतिड़ीज्यौं ढहै न दूजी बार॥18
कबीर मंदिर लाष काजड़िया हीरै लालि।
दिवस चारि का पेषणांविनस जाइगा काल्हि॥19
कबीर धूलि सकेलि करिपुड़ी ज बाँधी एह।
दिवस चारि का पेषणाँअंति षेह का षेह॥20
टिप्पणी: ख-धूलि समेटि।
कबीर जे धंधै तौ धूलिबिन धंधे धूलै नहीं।
ते नर बिनठे मूलिजिनि धंधे मैं ध्याया नहीं॥21
कबीर सुपनै रैनि कैऊघड़ि आयै नैन।
जीव पड्या बहु लूटि मैंजागै तो लैण न दैण॥22
टिप्पणी: ख- बहु भूलि मैं।
कबीर सुपनै रैनि केपारस जीय मैं छेक।
जे सोऊँ तो दोइ जणाँजे जागूँ तो एक॥23
टिप्पणी: इसके आगे ख में यह दोहा है-
कबीर इहै चितावणीजिन संसारी जाइ।
जे पहिली सुख भोगियातिन का गूड ले खाइ॥30
कबीर इस संसार में घणै मनिप मतिहींण।
राम नाम जाँणौं नहींआये टापी दीन॥24
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
पीपल रूनों फूल बिनफलबिन रूनी गाइ।
एकाँ एकाँ माणसाँटापा दीन्हा आइ॥32


कहा कियौ हम आइ करिकहा करेंगे जाइ।
इत के भए न उत केचाले मूल गँवाइ॥25
आया अणआया भयाजे बहुरता संसार।
पड़ा भुलाँवा गफिलाँगये कुबंधी हारि॥26
कबीर हरि की भगति बिनधिगि जीमण संसार।
धूँवाँ केरा धौलहर जात न लागै वार॥27
जिहि हरि की चोरी करिगये राम गुण भूलि।
ते बिंधना बागुल रचेरहे अरध मुखि झूलि॥28
माटी मलणि कुँभार कीघड़ीं सहै सिरि लात।
इहि औसरि चेत्या नहींचूका अबकी घात॥29
इहि औसरि चेत्या नहींपसु ज्यूँ पाली देह।
राम नाम जाण्या नहींअति पड़ी मुख षेह्ड्ड30
राम नाम जाण्यो नहींलानी मोटी षोड़ि।
काया हाँडी काठ कीना ऊ चढ़े बहोड़ि॥31
राम नाम जाण्या नहींबात बिनंठी मूलि।
हरत इहाँ ही हारियापरति पड़ी मुख धूलि॥32
टिप्पणी: ख में इसके आगे ये दोहे हैं-
राम नाम जाण्या नहींमेल्या मनहिं बिसारि।
ते नर हाली बादरीसदा परा पराए बारि॥42
राम नाम जाण्या नहींता मुखि आनहिं आन।
कै मूसा कै कातराखाता गया जनम॥43
राम नाम जाण्यो नहीं हूवा बहुत अकाज।
बूडा लौरे बापुड़ा बड़ा बूटा की लाज॥44

राम नाम जाँण्याँ नहींपल्यो कटक कुटुम्ब।
धंधा ही में मरि गयाबाहर हुई न बंब॥33
मनिषा जनम दुर्लभ हैदेह न बारम्बार।
तरवर थैं फल झड़ि पड़ा बहुरि न लागै डार॥34
कबीर हरि की भगति करितजि बिषिया रस चोज।
बारबार नहीं पाइएमनिषा जन्म की मौज॥35
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
पाणी ज्यौर तालाब का दह दिसी गया बिलाइ।
यह सब योंही जायगासकै तो ठाहर लाइ॥48

कबीर यहु तन जात हैसकै तो ठाहर लाइ।
कै सेवा करि साध कीकै गुण गोविंद के गाइ॥36
टिप्पणी: ख-के गोबिंद गुण गाइ।
कबीर यह तन जात हैसकै तो लेहु बहोड़ि।
नागे हाथूँ ते गएजिनके लाख करोड़ि॥37
टिप्पणी: ख-नागे पाऊँ।
यह तनु काचा कुंभ हैचोट चहूँ दिसि खाइ।
एक राम के नाँव बिनजदि तदि प्रलै जाइ॥38
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
यह तन काचा कुंभ हैमांहि कया ढिंग बास।
कबीर नैंण निहारियाँतो नहीं जीवन आस॥52
यह तन काचा कुंभ हैलिया फिरै था साथि।
ढबका लागा फुटि गयाकछू न आया हाथि॥39
काँची कारी जिनि करैदिन दिन बधै बियाधि।
राम कबीरै रुचि भईयाही ओषदि साधि॥40
कबीर अपने जीवतैए दोइ बातैं धोइ।
लोग बड़ाई कारणैअछता मूल न खोइ॥41
खंभा एक गइंद दोइक्यूँ करि बंधिसि बारि।
मानि करै तो पीव नहींपीव तौ मानि निवारि॥42
दीन गँवाया दुनी सौंदुनी न चाली साथि।
पाइ कुहाड़ा मारियागाफिल अपणै हाथि॥43
यह तन तो सब बन भयाकरम भए कुहाड़ि।
आप आप कूँ काटिहैंकहैं कबीर विचारि॥44
कुल खोया कुल ऊबरैकुल राख्यो कुल जाइ।
राम निकुल कुल भेंटि लैंसब कुल रह्या समाइ॥45
दुनिया के धोखे मुवाचलै जु कुल की काँण।
तबकुल किसका लाजसीजब ले धर्‌या मसाँणि॥46
टिप्पणी: ख-का कौ लाजसी।
दुनियाँ भाँडा दुख का भरी मुँहामुह भूष।
अदया अलह राम कीकुरलै ऊँणी कूष॥47
टिप्पणी: इसके आगे ख में यह दोहा है-
दुनियां के मैं कुछ नहींमेरे दुनी अकथ।
साहिब दरि देखौं खड़ासब दुनियां दोजग जंत॥61
जिहि जेबड़ी जग बंधियातूँ जिनि बँधै कबीर।
ह्नैसी आटा लूँण ज्यूँसोना सँवाँ शरीर॥48
कहत सुनत जग जात हैविषै न सूझै काल।
कबीर प्यालै प्रेम कैभरि भरि पिवै रसाल॥49
कबीर हद के जीव सूँहित करि मुखाँ न बोलि
जे लागे बेहद सूँतिन सूँ अंतर खोलि॥50
टिप्पणी: इसके आगे ख प्रति में यह दोहा है-
कबीर साषत की सभातू मत बैठे जाइ।
एकै बाड़ै क्यू बड़ैरीझ गदहड़ा गाइ॥65
कबीर केवल राम कीतूँ जिनि छाड़ै ओट।
घण अहरणि बिचि लोह ज्यूँघड़ी सहे सिर चोट॥51
कबीर केवल राम कहिसुध गरीबी झालि।
कूड़ बड़ाई बूड़सीभारी पड़सी काल्हि॥52
काया मंजन क्या करैकपड़ धोइम धोइ।
उजल हूवा न छूटिएसुख नींदड़ी न सोह॥53
उजल कपड़ा पहरि करिपान सुपारी खाँहि।
एके हरि का नाँव बिनबाँधे जमपुरि जाँहि॥54
टिप्पणी: इसके आगे ख प्रति में यह दोहा है-
थली चरंतै म्रिघ लैबीध्या एक ज सौंण।
हम तो पंथी पंथ सिरिहर्‌या चरैगा कौण॥74

तेरा संगी कोइ नहींसब स्वारथ बँधी लोइ।
मनि परतीति न ऊपजैजीव बेसास न होइ॥55
मांइ बिड़ाणों बाप बिड़हम भी मंझि बिड़ाह।
दरिया केरी नाव ज्यूँसंजोगे मिलियाँह॥56
इत प्रधर उत घर बड़जण आए हाट।
करम किराणाँ बेचि करिउठि ज लागे बाट॥57
टिप्पणी: ख एथि परिघरि उथि घरिजोवण आए हाट।
नान्हाँ काती चित देमहँगे मोलि बिकाइ।
गाहक राजा राम है और न नेड़ा आइ॥58
डागल उपरि दौड़णांसुख नींदड़ी न सोइ।
पुनै पाए द्यौंहणेओछी ठौर न खोइ॥59
टिप्पणी: ख पुन पाया देहड़ीबोछां ठौर न खाइ।
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
ज्यूँ कोली पेताँ बुणैबुणतां आवै बोड़ि।
ऐसा लेख मीच काकछु दौड़ि सके तो दौड़ि॥76
मैं मैं बड़ी बलाइ हैसके तो निकसी भाजि।
कब लग राखौं हे सखीरूई पलेटी आगि॥60
मैं मैं मेरी जिनि करैमेरी मूल बिनास।
मेरी पग का पैषड़ामेरी गल की पास॥61
टिप्पणी: ख में इसके आगे ये दोहे हैं-
मेरे तेर की जीवणीबसि बंध्या संसार।
कहाँ सुकुँणबा सुत कलितदाक्षणि बारंबार॥79
मेरे तेरे की रासड़ीबलि बंध्या संसार।
दास कबीरा किमि बँधैजाकैं राम अधार॥82
कबीर नांव जरजरीभरी बिराणै भारि।
खेवट सौं परचा नहींक्यो करि उतरैं पारि॥83

कबीर नाव जरजरीकूड़े खेवणहार।
हलके हलके तिरि गएबूड़े तिनि सिर भार॥62262
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर पगड़ा दूरि हैजिनकै बिचिहै राति।
का जाणौं का होइगाऊगवै तैं परभाति॥84



मन कै मते न चालियेछाड़ि जीव की बाँणि।
ताकू केरे सूत ज्यूँउलटि अपूठा आँणि॥1
टिप्पणी: ख तेरा तार ज्यूँ।
चिंता चिति निबारिएफिर बूझिए न कोइ।
इंद्री पसर मिटाइएसहजि मिलैगा सोइ॥2
टिप्पणी: ख-परस निबारिए।
आसा का ईंधन करूँमनसा करुँ विभूति।
जोगी फेरी फिल करौंयों बिनवाँ वै सूति॥3
कबीर सेरी साँकड़ी चंचल मनवाँ चोर।
गुण गावै लैलीन होइकछू एक मन मैं और॥4
कबीर मारूँ मन कूँटूक टूक ह्नै जाइ।
विष की क्यारी बोई करिलुणत कहा पछिताइ॥5
इस मन कौ बिसमल करौंदीठा करौं अदीठ।
जै सिर राखौं आपणांतौ पर सिरिज अंगीठ॥6
मन जाणैं सब बातजाणत ही औगुण करै।
काहे की कुसलातकर दीपक कूँ बैं पड़ै॥7
हिरदा भीतरि आरसीमुख देषणाँ न जाइ।
मुख तौ तौपरि देखिएजे मन की दुविधा जाइ॥8
टिप्पणी: ख में इसके आगे ये दोहे हैं-
कबीर मन मृथा भगाखेत बिराना खाइ।
सूलाँ करि करि से किसी जब खसम पहूँचे आइ॥9
मन को मन मिलता नहीं तौ होता तन का भंग।
अब ह्नै रहु काली कांवलीज्यौं दूजा चढ़ै न रंग॥10
मन दीया मन पाइएमन बिन मन नहीं होइ।
मन उनमन उस अंड ज्यूँखनल अकासाँ जोइ॥9
मन गोरख मन गोविंदोमन हीं औघड़ होइ।
जे मन राखै जतन करितौ आपै करता सोइ॥10
एक ज दोसत हम कियाजिस गलि लाल कबाइ।
एक जग धोबी धोइ मरैतौ भी रंग न जाइ॥11
पाँणी ही तैं पातलाधूवाँ ही तै झींण।
पवनाँ बेगि उतावलासो दोसत कबीरै कीन्ह॥12
कबीर तुरी पलांड़ियाँचाबक लीया हाथि।
दिवस थकाँ साँई मिलौंपीछे पड़िहै राति।॥13
मनवां तो अधर बस्याबहुतक झीणां होइ।
आलोकत सचु पाइयाकबहूँ न न्यारा सोइ॥14
मन न मार्‌या मन करिसके न पंच प्रहारि।
सीला साच सरधा नहींइंद्री अजहुँ उद्यारि॥15
कबीर मन बिकरै पड़ागया स्वादि के साथ।
गलका खाया बरज्ताँअब क्यूँ आवै हाथि॥16
कबीर मन गाफिल भयासुमिरण लागै नाहिं।
घणीं सहैगा सासनाँजम की दरगह माहिं॥17
कोटि कर्म पल मैं करैयहु मन बिषिया स्वादि।
सतगुर सबद न मानईजनम गँवाया बादि॥18
मैंमंता मन मारि रेघटहीं माँहै घेरि।
जबहीं चालै पीठि दैअंकुस दे दे फेरि॥19
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
जौ तन काँहै मन धरैमन धरि निर्मल होइ।
साहिब सौ सनमुख रहैतौ फिरि बालक होइ॥
मैंमंता मन मारि रेनान्हाँ करि करि पीसि।
तब सुख पावै सुंदरीब्रह्म झलकै सीसि॥20
कागद केरी नाँव रीपाँणी केरी गंग।
कहै कबीर कैसे तिरूँपंच कुसंगी संग॥21
कबीर यह मन कत गयाजो मन होता काल्हि।
डूंगरि बूठा मेह ज्यूँगया निबाँणाँ चालि॥22
मृतक कूँ धी जौ नहींमेरा मन बी है।
बाजै बाव बिकार कीभी मूवा जीवै॥23
काटि कूटि मछलीछींकै धरी चहोड़ि।
कोइ एक अषिर मन बस्यादह मैं पड़ी बहोड़ि॥24
टिप्पणी: ख में इसके आगे ये दोहे हैं-
मूवा मन हम जीवतदेख्या जैसे मडिहट भूत।
मूवाँ पीछे उठि उठि लागैऐसा मेरा पूत॥47
मूवै कौंधी गौ नहीं
मन का किया बिनास।
कबीर मन पंषी भयाबहुतक चढ़ा अकास।
उहाँ ही तैं गिरि पड़ामन माया के पास॥25
भगति दुबारा सकड़ा राई दसवैं भाइ।
मन तौ मैंगल ह्नै रह्योक्यूँ करि सकै समाइ॥26
करता था तो क्यूँ रह्याअब करि क्यूँ पछताइ।
बोवै पेड़ बबूल काअब कहाँ तैं खाइ॥27
काया देवल मन धजाविष्रै लहरि फरराइ।
मन चाल्याँ देवल चलैताका सर्बस जाइ॥28
मनह मनोरथ छाँड़ि देतेरा किया न होइ।
पाँणी मैं घीव गीकसैतो रूखा खाइ न कोइ॥29
काया कसूं कमाण ज्यूँपंचतत्त करि बांण।
मारौं तो मन मृग कोनहीं तो मिथ्या जाँण॥30292
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर हरि दिवान कै
क्यूँकर पावै दादि।
पहली बुरा कमाइ करिपीछे करै फिलादि॥35



कौंण देस कहाँ आइयाकहु क्यूँ जाँण्याँ जाइ।
उहू मार्ग पावै नहींभूलि पड़े इस माँहि॥1
उतीथैं कोइ न आवईजाकूँ बूझौं धाइ।
इतथैं सबै पठाइयेभार लदाइ लदाइ॥2
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर संसा जीव मैंकोइ न कहै समुझाइ।
नाँनाँ बांणी बोलतासो कत गया बिलाइ॥3
सबकूँ बूझत मैं फिरौंरहण कहै नहीं कोइ।
प्रीति न जोड़ी राम सूँरहण कहाँ थैं होइ॥3
चलो चलौं सबको कहेमोहि अँदेसा और।
साहिब सूँ पर्चा नहींए जांहिगें किस ठौर॥4
जाइबे को जागा नहींरहिबे कौं नहीं ठौर।
कहै कबीरा संत हौअबिगति की गति और॥5
कबीरा मारिग कठिन हैकोइ न सकई जाइ।
गए ते बहुडे़ नहींकुसल कहै को आइ॥6
जन कबीर का सिषर घरबाट सलैली सैल।
पाव न टिकै पपीलकालोगनि लादे बैल॥7
जहाँ न चींटी चढ़ि सकैराइ न ठहराइ।
मन पवन का गमि नहींतहाँ पहूँचे जाइ॥8
कबीर मारग अगम हैसब मुनिजन बैठे थाकि।
तहाँ कबीरा चलि गया गहि सतगुर कीसाषि॥9
सुर न थाके मुनि जनांजहाँ न कोई जाइ।
मोटे भाग कबीर केतहाँ रहे घर छाइ॥10602



कबीर सूषिम सुरति काजीव न जाँणै जाल।
कहै कबीरा दूरि करिआतम अदिष्टि काल॥1
प्राण पंड को तजि चलैमूवा कहै सब कोइ।
जीव छताँ जांमैं मरैसूषिम लखै न कोइ॥2304
टिप्पणी: ख-में इसके आगे ये दोहे हैं-
कबीर अंतहकरन मनकरन मनोरथ माँहि।
उपजित उतपति जाँणिएबिनसे जब बिसराँहि॥3

कबीर संसा दूरि करि
जाँमण मरन भरम।
पंच तत्त तत्तहि मिलैसुनि समाना मन॥4



जग हठवाड़ा स्वाद ठगमाया बेसाँ लाइ।
रामचरण नीकाँ गहीजिनि जाइ जनम ठगाइ॥1
टिप्पणी: ख-में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर जिभ्या स्वाद तेक्यूँ पल में ले काम।
अंगि अविद्या ऊपजैजाइ हिरदा मैं राम॥2

कबीर माया पापणींफंध ले बैठि हाटि।
सब जग तो फंधै पड़ागया कबीरा काटि॥2
कबीर माया पापणींलालै लाया लोंग।
पूरी कीनहूँ न भोगईइनका इहै बिजोग॥3
कबीरा माया पापणींहरि सूँ करे हराम।
मुखि कड़ियाली कुमति कीकहण न देईं राम॥4
जाँणी जे हरि को भजौमो मनि मोटी आस।
हरि बिचि घालै अंतरामाया बड़ी बिसास॥5
टिप्पणी: ख-हरि क्यों मिलौं।
कबीर माया मोहनीमोहे जाँण सुजाँण।
भागाँ ही छूटै नहींभरि भरि मारै बाँण॥6
कबीर माया मोहनीजैसी मीठी खाँड़।
सतगुर की कृपा भईनहीं तो करती भाँड़॥7
कबीर माया मोहनीसब जग घाल्या घाँणि।
कोइ एक जन ऊबरैजिनि तोड़ी कुल की काँणि॥8
कबीर माया मोहनीमाँगी मिलै न हाथि।
मनह उतारी झूठ करितब लागी डौलै साथि॥9
माया दासी संत कीऊँभी देइ असीस।
बिलसी अरु लातौं छड़ी सुमरि सुमरि जगदीस॥10
माया मुई न मन मुवामरि मरि गया सरीर।
आसा त्रिस्नाँ ना मुईयों कहि गया कबीर॥11
टिप्पणी: ख-यूँ कहै दास कबीर।
आसा जीवै जग मरैलोग मरे मरि जाइ।
सोइ मूबे धन संचतेसो उबरे जे खाइ॥12
टिप्पणी: ख-सोई बूड़े जु धन संचते।
कबीर सो धन संचिएजो आगै कूँ होइ।
सीस चढ़ाए पोटलीले जात न देख्या कोइ॥13
त्रीया त्रिण्णाँ पापणीतासूँ प्रीति न जोड़ि।
पैड़ी चढ़ि पाछाँ पड़ेलागै मोटी खोड़ि॥14
त्रिष्णाँ सींची नाँ बुझेदिन दिन बढ़ती जाइ।
जबासा के रूप ज्यूँघण मेहाँ कुमिलाइ॥15
कबीर जग की को कहेभौ जलि बूड़ै दास।
पारब्रह्म पति छाड़ि करकरैं मानि की आस॥16
माया तजी तौ का भयामानि तजी नहीं जाइ।
मानि बड़े गुनियर मिलेमानि सबनि की खाइ॥17
रामहिं थोड़ा जाँणि करिदुनियाँ आगैं दीन।
जीवाँ कौ राजा कहैमाया के आधीन॥18
रज बीरज की कलीतापरि साज्या रूप।
राम नाम बिन बूड़ि हैकनक काँमणी कूप॥19
माया तरवर त्रिविध कासाखा दुख संताप।
सीतलता सुपिनै नहींफल फीको तनि ताप॥20
कबीर माया ढाकड़ीसब किसही कौ खाइ।
दाँत उपाणौं पापड़ीजे संतौं नेड़ी जाइ॥21
नलनी सायर घर कियादौं लागी बहुतेणि।
जलही माँहै जलि मुईपूरब जनम लिपेणि॥22
कबीर गुण की बादलीती तरबानी छाँहिं।
बाहरि रहे ते ऊबरेभीगें मंदिर माँहिं॥23
कबीर माया मोह कीभई अँधारी लोइ।
जे सूते ते मुसि लियेरहे बसत कूँ रोइ॥24
टिप्पणी: ख-में इसके आगे यह दोहा हैं-
माया काल की खाँणि हैधरि त्रिगणी बपरौति।
जहाँ जाइ तहाँ सुख नहींयह माया की रीति॥

संकल ही तैं सब लहेमाया इहि संसार।
ते क्यूँ छूटे बापुड़ेबाँधे सिरजनहार॥25
बाड़ि चढ़ती बेलि ज्यूँउलझीआसा फंध।
तूटै पणि छूटै नहींभई ज बाना बंध॥26
सब आसण आस तणाँत्रिबर्तिकै को नाहिं।
थिवरिति कै निबहै नहींपरिवर्ति परपंच माँहि॥27
कबीर इस संसार काझूठा माया मोह।
जिहि घरि जिता बधावणाँतिहि घरि तिता अँदोह॥28
माया हमगौ यों कह्यातू मति दे रे पूठि।
और हमारा हम बलू गया कबीरा रूठि॥29
टिप्पणी: माया मन की मोहनीसुरनर रहे लुभाइ। 
        इहि माया जग खाइया माया कौं कोई न खाइ॥26

टिप्पणी: ख-गया कबीरा छूटि
        ख-रूई लपेटी आगि।

बुगली नीर बिटालियासायर चढ़ा कलंक।
और पँखेरू पी गएहंस न बोवै चंच॥30
कबीर माया जिनि मिलैंसो बरियाँ दे बाँह।
नारद से मुनियर मिलेकिसौ भरोसे त्याँह॥31
माया की झल जग जल्याकनक काँमणीं लागि।
कहुँ धौं किहि विधि राखियेरूई पलेटी आगि॥32346



जीव बिलव्या जीव सोंअलप न लखिया जाइ।
गोबिंद मिलै न झल बुझैरही बुझाइ बुझाइ॥1
इही उदर के कारणैजग जाँच्यो निस जाम।
स्वामी पणौ जु सिर चढ़ोसर्‌या न एको काम॥2
स्वामी हूँणाँ सोहरादोद्धा हूँणाँ दास।
गाडर आँणीं ऊन कूँबाँधी चरै कपास॥3
स्वामी हूवा सीतकापैका कार पचास।
राम नाँम काँठै रह्याकरै सिषां की आस॥4
कबीर तष्टा टोकणींलीए फिरै सुभाइ।
रामनाम चीन्हें नहींपीतलि ही कै चाइ॥5
कलि का स्वामी लोभियापीतलि धरी षटाइ।
राज दुबाराँ यौं फिरैज्यूँ हरिहाई गाइ॥6
कलि का स्वामी लोभियामनसा धरी बधाइ।
दैहिं पईसा ब्याज कौंलेखाँ करताँ जाइ॥7
कबीर कलि खोटी भईमुनियर मिलै न कोइ।
लालच लोभी मसकरातिनकूँ आदर होइ॥8
टिप्पणी: ख-कबीर कलिजुग आइया।
चारिउ बेद पढ़ाइ करिहरि सूँ न लाया हेत।
बालि कबीरा ले गयापंडित ढूँढ़ै खेत॥9
टिप्पणी: ख-चारि बेद पंडित पढ्याहरि सों किया न हेत।
बाँम्हण गुरु जगत कासाधू का गुरु नाहिं।
उरझि पुरझि करि मरि रह्याचारिउँ बेदाँ माहिं॥10
टिप्पणी: 
ख- बाँम्हण गुरु जगत का
भर्म कर्म का पाइ।
   उलझि पुलझि करि मरि गयाचारों बेंदा माँहि॥
ख में इसके आगे ये दोहे हैं-
कलि का बाँम्हण मसकराताहि न दीजै दान।
स्यौं कुँटउ नरकहि चलैंसाथ चल्या जजमान॥11
बाम्हण बूड़ा बापुड़ाजेनेऊ कै जोरि।
लख चौरासी माँ गेलईपारब्रह्म सों तोडि॥12

साषित सण का जेवणाभीगाँ सूँ कठठाइ।
दोइ अषिर गुरु बाहिराबाँध्या जमपुरि जाइ॥11
टिप्पणी: ख में इसके आगे ये दोहे हैं-
कबीर साषत की सभातूँ जिनि बैसे जाइं।
एक दिबाड़ै क्यूँ बडैरीझ गदेहड़ा गाइ॥14
साषत ते सूकर भलासूचा राखे गाँव।
बूड़ा साषत बापुड़ाबैसि समरणी नाँव॥15
साषत बाम्हण जिनि मिलैंबैसनी मिलौ चंडाल।
अंक माल दे भेटिएमानूँ मिले गोपाल॥16
पाड़ोसी सू रूसणाँतिल तिल सुख की हाँणि।
पंडित भए सरावगीपाँणी पीवें छाँणि॥12
पंडित सेती कहि रह्याभीतरि भेद्या नाहिं।
औरूँ कौ परमोधतांगया मुहरकाँ माँहि॥13
टिप्पणी: ख-कबीर व्यास कहैभीतरि भेदै नाहिं।
चतुराई सूवै पढ़ीसोई पंजर माँहि।
फिरि प्रमोधै आन कौआपण समझै नाहिं॥14
रासि पराई राषताँखाया घर का खेत।
औरौं कौ प्रमोधतांमुख मैं पड़िया रेत॥15
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर कहै पोर कुँतूँ समझावै सब कोइ।
संसा पड़गा आपकोतौ और कहे का होइ॥21

तारा मंडल बैसि करिचंद बड़ाई खाइ।
उदै भया जब सूर कास्यूँ ताराँ छिपि जाइ॥16
देषण के सबको भलेजिसे सीत के कोट।
रवि के उदै न दीसहींबँधे न जल की पोट॥17
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
सुणत सुणावत दिन गएउलझि न सुलझा मान।
कहै कबीर चेत्यौ नहींअजहुँ पहलौ दिन॥24

तीरथ करि करि जग मुवाडूँधै पाँणी न्हाइ।
राँमहि राम जपंतड़ाँकाल घसीट्याँ जाइ॥18
कासी काँठै घर करैंपीवैं निर्मल नीर।
मुकति नहीं हरि नाँव बिनयों कहें दास कबीर॥19
कबीर इस संसार कोसमझाऊँ कै बार।
पूँछ जु पकड़ै भेड़ कीउतर्‌या चाहै पार॥20
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
पद गायाँ मन हरषियाँसाषी कह्यां आनंद।
सो तत नाँव न जाणियाँगल मैं पड़ि गया फंद॥
कबीर मन फूल्या फिरैकरता हूँ मैं ध्रंम।
कोटि क्रम सिरि ले चल्याचेत न देखै भ्रंम॥21
मोर तोर की जेवड़ीबलि बंध्या संसार।
काँ सिकडूँ बासुत कलितदाझड़ बारंबार॥2268



कथणीं कथी तो क्या भयाजे करणी नाँ ठहराइ।
कालबूत के कोट ज्यूँदेषतहीं ढहि जाइ॥1
जैसी मुख तैं नीकसैतैसी चालै चाल।
पारब्रह्म नेड़ा रहैपल में करै निहाल॥2
जैसी मुष तें नीकसैतैसी चालै नाहिं।
मानिष नहीं ते स्वान गतिबाँध्या जमपुर जाँहिं॥3
पद गोएँ मन हरषियाँसापी कह्याँ अनंद।
सों तन नाँव न जाँणियाँगल मैं पड़िया फंध॥4
करता दीसै कीरतनऊँचा करि करि तूंड।
जाँणै बूझे कुछ नहींयौं ही आँधां रूंड॥5373



मैं जान्यूँ पढ़िबौ भलोपढ़िवा थें भलो जोग।
राँम नाँम सूँ प्रीति करिभल भल नींदी लोग॥1
कबिरा पढ़िबा दूरि करिपुस्तक देइ बहाइ।
बांवन अषिर सोधि करिररै ममैं चित लाइ॥2
कबीर पढ़िया दूरि करिआथि पढ़ा संसार।
पीड़ न उपजी प्रीति सूँद्दतो क्यूँ करि करै पुकार॥3
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवापंडित भया न कोइ।
एकै आषिर पीव कापढ़ै सु पंडित होइ॥4337



कामणि काली नागणींतीन्यूँ लोक मँझारि।
राग सनेहीऊबरेबिषई खाये झारि॥1
काँमणि मीनीं पाँणि कीजे छेड़ौं तौ खाइ।
जे हरि चरणाँ राचियाँतिनके निकटि न जाइ॥2
परनारी राता फिरैचोरी बिढता खाँहिं।
दिवस चारि सरसा रहैअंति समूला जाँहिं॥3
पर नारी पर सुंदरी बिरला बंचै कोइ।
खाताँ मीठी खाँड सीअंति कालि विष होइ॥4
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
जहाँ जलाई सुंदरीतहाँ तूँ जिनि जाइ कबीर।
भसमी ह्नै करि जासिसीसो मैं सवा सरीर॥5
नारी नाहीं नाहेरीकरै नैन की चोट।
कोई एक हरिजन ऊबरै पारब्रह्म की ओट॥6

पर नारी कै राचणैऔगुण है गुण नाँहि।
षीर समंद मैं मंझलाकेता बहि बहि जाँहि॥5
पर नारी को राचणौंजिसी ल्हसण की पाँनि।
पूणैं बैसि रषाइए परगट होइ दिवानि॥6
टिप्पणी: क-प्रगट होइ निदानि।
नर नारी सब नरक हैजब लग देह सकाम।
कहै कबीर ते राँम केजे सुमिरै निहकाम॥7
नारी सेती नेहबुधि बबेक सबही हरै।
काँढ गमावै देहकारिज कोई नाँ सरै॥8
नाना भोजन स्वाद सुखनारी सेती रंग।
बेगि छाँड़ि पछताइगाह्नै है मूरति भंग॥9
नारि नसावै तीनि सुखजा नर पासैं होइ।
भगति मुकति निज ग्यान मैंपैसि न सकई कोइ॥10
एक कनक अरु काँमनीविष फल कीएउ पाइ।
देखै ही थे विष चढ़ेखायै सूँ मरि जाइ॥11
एक कनक अरु काँमनी दोऊ अंगनि की झाल।
देखें ही तन प्रजलैपरस्याँ ह्नै पैमाल॥12
कबीर भग की प्रीतड़ीकेते गए गड़ंत।
केते अजहूँ जायसीनरकि हसंत हसंत॥13
टिप्पणी: ख-गरकि हसंत हसंत।
जोरू जूठणि जगत कीभले बुरे का बीच।
उत्यम ते अलगे रहैनिकटि रहै तैं नीच॥14
नारी कुण्ड नरक काबिरला थंभै बाग।
कोई साधू जन ऊबरैसब जग मूँवा लाग॥15
सुंदरि थे सूली भलीबिरला बचै कोय।
लोह निहाला अगनि मैंजलि बलि कोइला होय॥16
अंधा नर चैते नहींकटै ने संसे सूल।
और गुनह हरि बकससीकाँमी डाल न मूल॥17
भगति बिगाड़ी काँमियाँइंद्री केरै स्वादि।
हीरा खोया हाथ थैंजनम गँवाया बादि॥18
कामी अमीं न भावईविषई कौं ले सोधि।
कुबधि न जाई जीव कीभावै स्यंभ रहो प्रमोधि॥19
विषै विलंबी आत्माँमजकण खाया सोधि।
ग्याँन अंकूर न ऊगईभावै निज प्रमोध॥20
विषै कर्म की कंचुलीपहरि हुआ नर नाग।
सिर फोड़ैसूझै नहींको आगिला अभाग॥21
कामी कदे न हरि भजैजपै न कैसो जाप।
राम कह्याँ थैं जलि मरेको पूरिबला पाप॥22
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
राम कहंता जे खिजैकोढ़ी ह्नै गलि जाँहि।
सूकर होइ करि औतरैनाक बूड़ंते खाँहि॥25

काँमी लज्जा ना करैमन माँहें अहिलाद।
नीद न माँगैं साँथराभूष न माँगै स्वाद॥23
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
कामी थैं कुतो भलौखोलें एक जू काछ।
राम नाम जाणै नहींबाँबी जेही बाच॥27
नारि पराई आपणींभुगत्या नरकहिं जाइ।
आगि आगि सबरो कहैतामै हाथ न बाहि॥24
कबीर कहता जात हौंचेतै नहीं गँवार।
बैरागी गिरही कहाकाँमी वार न पार॥25
ग्यानी तो नींडर भयामाँने नाँही संक।
इंद्री केरे बसि पड़ाभूंचै विषै निसंक॥26
ग्याँनी मूल गँवाइयाआपण भये करंता।
ताथै संसारी भलामन मैं रहे डरंता॥27404
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
काँम काँम सबको कहैंकाँम न चीन्हें कोइ।
जेती मन में कामनाकाम कहीजै सोइ॥32



सहज सहज सबकौ कहैसहज न चीन्है कोइ।
जिन्ह सहजै विषिया तजीसहज कही जै सोइ॥1
सहज सहज सबको कहैसहज न चीन्हें कोइ।
पाँचू राखै परसतीसहज कही जै सोइ॥2
सहजै सहजै सब गएसुत बित कांमणि कांम।
एकमेक ह्नै मिलि रह्यादासकबीरा रांम॥3
सहज सहज सबको कहैसहज न चीन्हैं कोइ।
जिन्ह सहजै हरिजी मिलैसहज कहीजै सोइ॥4408



कबीर पूँजी साह कीतूँ जिनि खोवै ष्वार।
खरी बिगूचनि होइगीलेखा देती बार॥1
लेखा देणाँ सोहराजे दिल साँचा होइ।
उस चंगे दीवाँन मैंपला न पकड़े कोइ॥2
कबीर चित्त चमंकियाकिया पयाना दूरि।
काइथि कागद काढ़ियातब दरिगह लेखा पूरि॥3
काइथि कागद काढ़ियांतब लेखैं वार न पार।
जब लग साँस सरीर मैंतब लग राम सँभार॥4
यहु सब झूठी बंदिगीबरियाँ पंच निवाज।
साचै मारै झूठ पढ़िकाजी करै अकाज॥5
कबीर काजी स्वादि बसिब्रह्म हतै तब दोइ।
चढ़ि मसीति एकै कहैदरि क्यूँ साचा होइ॥6
काजी मुलाँ भ्रमियाँचल्या दुनीं कै साथि।
दिल थैं दीन बिसारियाकरद लई जब हाथि॥7
जोरी कलिर जिहै करैकहते हैं ज हलाल।
जब दफतर देखंगा दईतब हैगा कौंण हवाल॥8
जोरी कीयाँ जुलम हैमाँगे न्याव खुदाइ।
खालिक दरि खूनी खड़ामार मुहे मुहि खाइ॥9
साँई सेती चोरियाँचोराँ सेती गुझ।
जाँणैगा रे जीवड़ामर पड़ैगी तुझ॥10
सेष सबूरी बाहिराक्या हज काबैं जाइ।
जिनकी दिल स्याबति नहींतिनकौं कहाँ खुदाइ॥11
खूब खाँड है खोपड़ीमाँहि पड़ै दुक लूँण।
पेड़ा रोटी खाइ करिगला कटावै कौंण॥12
पापी पूजा बैसि करिभषै माँस मद दोइ।
तिनकी दष्या मुकति नहींकोटि नरक फल होइ॥13
सकल बरण इकत्रा हैसकति पूजि मिलि खाँहिं।
हरि दासनि की भ्रांति करिकेवल जमपुरि जाँहिं॥14
कबीर लज्या लोक कीसुमिरै नाँही साच।
जानि बूझि कंचन तजैकाठा पकड़े काच॥15
कबीर जिनि जिनि जाँणियाँकरत केवल सार।
सो प्राणी काहै चलैझूठे जग की लार॥16
झूठे को झूठा मिलैदूणाँ बधै सनेह।
झूठे कूँ साचा मिलैतब ही तूटै नेह॥17425



पांहण केरा पूतलाकरि पूजै करतार।
इही भरोसै जे रहेते बूड़े काली धार॥1
काजल केरी कोठरीमसि के कर्म कपाट।
पांहनि बोई पृथमीपंडित पाड़ी बाट॥2
पाँहिन फूँका पूजिएजे जनम न देई जाब।
आँधा नर आसामुषीयौंही खोवै आब॥3
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
पाथर ही का देहुरापाथर ही का देव।
पूजणहारा अंधलालागा खोटी सेव॥4
कबीर गुड कौ गमि नहींपाँषण दिया बनाइ।
सिष सोधी बिन सेवियापारि न पहुँच्या जाइ॥5


हम भी पाहन पूजतेहोते रन के रोझ।
सतगुर की कृपा भईडार्‌या सिर थैं बोझ॥4
टिप्पणी: ख-होते जंगल के रोझ।
जेती देषौं आत्मातेता सालिगराँम।
साथू प्रतषि देव हैंनहीं पाथर सू काँम॥5
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर माला काठ कीमेल्ही मुगधि झुलाइ।
सुमिरण की सोधी नहींजाँणै डीगरि घाली जाइ॥6
सेवैं सालिगराँम कूँमन की भ्रांति न जाइ।
सीतलता सुषिनै नहींदिन दिन अधकी लाइ॥6
टिप्पणी:
 
ख में इसके आगे यह दोहा है-
माला फेरत जुग भयापाय न मन का फेर।
कर का मन का छाँड़ि देमन का मन का फेर॥8

सेवैं सालिगराँम कूँमाया सेती हेत।
बोढ़े काला कापड़ानाँव धरावैं सेत॥7
जप तप दीसै थोथरातीरथ ब्रत बेसास।
सूवै सैबल सेवियायों जग चल्या निरास॥8
तीरथ त सब बेलड़ीसब जग मेल्या छाइ।
कबीर मूल निकंदियाकोण हलाहल खाइ॥9
मन मथुरा दिल द्वारिकाकाया कासी जाँणि।
दसवाँ द्वारा देहुरातामै जोति पिछाँणि॥10
कबीर दुनियाँ देहुरैसोस नवाँवण जाइ।
हिरदा भीतर हरि बसैतूँ ताही सौ ल्यौ लाइ॥11436



कर सेती माला जपैहिरदै बहै डंडूल।
पग तौ पाला मैं गिल्याभाजण लागी सूल॥1
कर पकरै अँगुरी गिनैमन धावै चहुँ वीर।
जाहि फिराँयाँ हरि मिलैसो भया काठ की ठौर॥2
माला पहरैं मनमुषीताथैं कछु न होइ।
मन माला कौं फेरताँजुग उजियारा सोइ॥3
माला पहरे मनमुषीबहुतैं फिरै अचेत।
गाँगी रोले बहि गयाहरि सूँ नाँहीं हेत॥4
कबीर माला काठ कीकहि समझावै तोहि।
मन न फिरावै आपणोंकहा फिरावै मोहि॥5
कबीर माला मन कीऔर संसारी भेष।
माला पहर्‌या हरि मिलैतौ अरहट कै गलि देष॥6
माला पहर्‌याँ कुछ नहींरुल्य मूवा इहि भारि।
बाहरि ढोल्या हींगलू भीतरि भरी भँगारि॥7
माला पहर्‌याँ कुछ नहींकाती मन कै साथि।
जब लग हरि प्रकटै नहींतब लग पड़ता हाथि॥8
माला पहर्‌याँ कुछ नहींगाँठि हिरदा की खोइ।
हरि चरनूँ चित्त राखियेतौ अमरापुर होइ॥9
टिप्पणी: ख में इसके आगे यह दोहा है-
माला पहर्‌याँ कुछ नहीं बाम्हण भगत न जाण।
ब्याँह सराँधाँ कारटाँ उँभू वैंसे ताणि॥2
माला पहर्‌या कुछ नहींभगति न आई हाथि।
माथौ मूँछ मुँड़ाइ करिचल्या जगत कै साथि॥10
साँईं सेती साँच चलिऔराँ सूँ सुध भाइ।
भावै लम्बे केस करिभावै घुरड़ि मुड़ाइ॥11
टिप्पणी: ख-साधौं सौं सुध भाइ।
केसौं कहा बिगाड़ियाजे मूड़े सौ बार।
मन कौं न काहे मूड़िएजामै बिषै विकार॥12
मन मेवासी मूँड़ि लेकेसौं मूड़े काँइ।
जे कुछ किया सु मन कियाकेसौं कीया नाँहि॥13
मूँड़ मुँड़ावत दिन गएअजहूँ न मिलिया राम
राँम नाम कहु क्या करैंजे मन के औरे काँम॥14
स्वाँग पहरि सोरहा भयाखाया पीया षूँदि।
जिहि सेरी साधू नीकलेसो तौ मेल्ही मूँदि॥15
टिप्पणी: ख-जिहि सेरी साधू नीसरैसो सेरी मेल्ही मूँदी॥
बेसनों भया तौ क्या भयाबूझा नहीं बबेक।
छापा तिलक बनाइ करिदगध्या लोक अनेक॥16
तन कौं जोगी सब करैंमन कों बिरला कोइ।
सब सिधि सहजै पाइएजे मन जोगी होइ॥17
कबीर यहु तौ एक हैपड़दा दीया भेष।
भरम करम सब दूरि करिसबहीं माँहि अलेष॥18
भरम न भागा जीव काअनंतहि धरिया भेष।
सतगुर परचे बाहिराअंतरि रह्या अलेष॥19
जगत जहंदम राचियाझूठे कुल की लाज।
तन बिनसे कुल बिनसि हैगह्या न राँम जिहाज॥20
पष ले बूडी पृथमींझूठी कुल की लार।
अलष बिसारौं भेष मैंबूड़े काली धार॥21
चतुराई हरि नाँ मिलेऐ बाताँ की बात।
एक निसप्रेही निरधार कागाहक गोपीनाथ॥22
नवसत साजे काँमनींतन मन रही सँजोइ।
पीव कै मन भावे नहींपटम कीयें क्या होइ॥23
जब लग पीव परचा नहींकन्याँ कँवारी जाँणि।
हथलेवा होसै लियामुसकल पड़ी पिछाँणि॥24
कबीर हरि की भगति कामन मैं परा उल्लास।
मैं वासा भाजै नहींहूँण मतै निज दास॥25
मैं वासा मोई कियादुरिजिन काढ़े दूरि।
राज पियारे राँम कानगर बस्या भरिपूरि॥26462



निरमल बूँद अकास कीपड़ि गइ भोमि बिकार।
मूल विनंठा माँनबीबिन संगति भठछार॥1
मूरिष संग न कीजिएलोहा जलि न तिराइ
कदली सीप भवंग मुषीएक बूँद तिहुँ भाइ॥2
हरिजन सेती रूसणाँसंसारी सूँ हेत।
ते नर कदे न नीपजैज्यूँ कालर का खेत॥3
नारी मरूँ कुसंग कीकेला काँठै बेरि।
वो हालै वो चीरियेसाषित संग न बेरि॥4
मेर नसाँणी मीच कीकुसंगति ही काल।
कबीर कहै रे प्राँणियाबाँणी ब्रह्म सँभाल॥5
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर केहने क्या बणैअणमिलता सौ संग।
दीपक कै भावैं नहींजलि जलि परैं पतंग॥6
माषी गुड़ मैं गड़ि रहीपंष रही लपटाइ।
ताली पीटै सिरि धुनैमीठै बोई माइ॥6
ऊँचे कुल क्या जनमियाँजे करणीं ऊँच न होइ।
सोवन कलस सुरे भर्यासाथूँ निंद्या सोइ ॥7269



देखा देखी पाकड़ेजाइ अपरचे छूटि।
बिरला कोई ठाहरेसतगुर साँमी मूठि॥1
देखा देखी भगति हैकदे न चढ़ई रंग।
बिपति पढ्या यूँ छाड़सीज्यूं कंचुली भवंग॥2
करिए तौ करि जाँणियेसारीपा सूँ संग।
लीर लीर लोइ थईतऊ न छाड़ै रंग॥3
यहु मन दीजे तास कौंसुठि सेवग भल सोइ।
सिर ऊपरि आरास हैतऊ न दूजा होइ॥4
टिप्पणी: ख-तऊ न न्यारा होइ।
पाँहण टाँकि न तौलिएहाडि न कीजै वेह।
माया राता मानवीतिन सूँ किसा सनेह॥5
कबीर तासूँ प्रीति करिजो निरबाहे ओड़ि।
बनिता बिबिध न राचियेदोषत लागे षोड़ि॥6
कबीर तन पंषी भयाजहाँ मन तहाँ उड़ि जाइ।
जो जैसी संगति करेसो तैसे फल खाइ॥7
काजल केरी कोठढ़ीतैसा यहु संसार।
बलिहारी ता दास कीपैसि रे निकसणहार॥8477



कबीर भेष अतीत काकरतूति करै अपराध।
बाहरि दीसै साध गतिमाँहैं महा असाध॥1
उज्जल देखि न धीजियेबग ज्यूँ माँड़ै ध्यान।
धीरे बैठि चपेटसीयूँ ले बूड़ैग्याँन॥2
जेता मीठा बोलणाँतेता साध न जाँणि।
पहली थाह दिखाई करिऊँड़ै देसी आँणि॥3480
टिप्पणी: ख-तेता भगति न जाँणि।



कबीर संगति साध कीकदे न निरफल होइ।
चंदन होसी बाँवनानीब न कहसी कोइ॥1
कबीर संगति साध कीबेगि करीजैं जाइ।
दुरमति दूरि गँवाइसीदेसी सुमति बताइ॥2
मथुरा जावै द्वारिकाभावैं जावैं जगनाथ।
साध संगति हरि भगति बिनकछू न आवै हाथ॥3
मेरे संगी दोइ जणाँ एक बैष्णों एक राँम।
वो है दाता मुकति कावो सुमिरावै नाँम॥4
टिप्पणी: ख-सुमिरावै राम।
कबीरा बन बन में फिराकारणि अपणें राँम।
राम सरीखे जन मिलेतिन सारे सब काँम॥5
कबीर सोई दिन भलाजा दिन संत मिलाहिं।
अंक भरे भरि भेटियापाप सरीरौ जाँहिं॥6
कबीर चन्दन का बिड़ाबैठ्या आक पलास।
आप सरीखे करि लिए जे होत उन पास॥7
कबीर खाईं कोट कीपांणी पीवे न कोइ
आइ मिलै जब गंग मैंतब सब गंगोदिक होइ॥8
जाँनि बूझि साचहि तजैकरैं झूठ सूँ नेह।
ताको संगति राम जीसुपिनै हो जिनि देहु॥9
कबीर तास मिलाइजास हियाली तूँ बसै।
वहि तर वेगि उठाइनित को गंजन को सहै॥10
केती लहरि समंद कीकत उपजै कत जाइ।
बलिहारी ता दास कीउलटी माँहि समाइ॥11
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
पंच बल धिया फिरि कड़ीऊझड़ ऊजड़ि जाइ।
बलिहारी ता दास कीबवकि अणाँवै ठाइ॥12
काजल केरी कोठड़ीतैसा यह संसार।
बलिहारी ता दास कीपैसि जु निकसण हार॥13
काजल केरी कोठढ़ीकाजल ही का कोट।
बलिहारी ता दास कीजे रहै राँम की ओट॥12
भगति हजारी कपड़ातामें मल न समाइ।
साषित काली काँवलीभावै तहाँ बिछाइ॥13493


 (29) साध साषीभूत कौ अंग


निरबैरी निहकाँमतासाँई सेती नेह।
विषिया सूँ न्यारा रहैसंतहि का अँग एह॥1
संत न छाड़ै संतईजे कोटिक मिलै असंत।
चंदन भुवंगा बैठियातउ सीतलता न तजंत॥2
कबीर हरि का भाँवतादूरैं थैं दीसंत।
तन षीणा मन उनमनाँजग रूठड़ा फिरंत॥3
कबीर हरि का भावताझीणाँ पंजर तास।
रैणि न आवै नींदड़ीअंगि न चढ़ई मास॥4
टिप्पणी: ख-अंगनि बाढ़ै घास।
अणरता सुख सोवणाँरातै नींद न आइ।
ज्यूँ जल टूटै मंछली यूँ बेलंत बिहाइ॥5
टिप्पणी: ख-तलफत रैण बिहाइ।
जिन्य कुछ जाँण्याँ नहीं तिन्हसुख नींदणी बिहाइ।
मैंर अबूझी बूझियापूरी पड़ी बलाइ॥6
जाँण भगत का नित मरण अणजाँणे का राज।
सर अपसर समझै नहींपेट भरण सूँ काज॥7
जिहि घटिजाँण बिनाँण हैतिहि घटि आवटणाँ घणाँ।
बिन षंडै संग्राम है नित उठि मन सौं झूमणाँ॥8
राम बियोगी तन बिकलताहि न चीन्है कोइ।
तंबोली के पान ज्यूँदिन दिन पीला होइ॥9
पीलक दौड़ी साँइयाँलोग कहै पिंड रोग।
छाँनै लंधण नित करैराँम पियारे जोग॥10
काम मिलावै राम कूँजे कोई जाँणै राषि।
कबीर बिचारा क्या करेजाकी सुखदेव बोले साषि॥11
काँमणि अंग बिरकत भयारत भया हरि नाँहि।
साषी गोरखनाथ ज्यूँअमर भए कलि माँहि॥12
टिप्पणी: ख-सिध भए कलि माँहिं।
जदि विषै पियारी प्रीति सूँतब अंतर हरि नाँहि।
जब अंतर हरि जी बसैतब विषिया सूँ चित नाँहि॥13
जिहि घट मैं संसौ बसैतिहिं घटि राम न जोइ।
राम सनेही दास विचितिणाँ न संचर होइ॥14
स्वारथ को सबको सगासब सगलाही जाँणि।
बिन स्वारथ आदर करैसो हरि की प्रीति पिछाँणि॥15
जिहिं हिरदै हरि आइयासो क्यूँ छाँनाँ होइ।
जतन जतन करि दाबिएतऊ उजाजा सोइ॥16
फाटै दीदे मैं फिरौंनजरि न आवै कोइ।
जिहि घटि मेरा साँइयाँसो क्यूँ छाना होइ॥17
सब घटि मेरा साँइयाँसूनी सेज न कोइ।
भाग तिन्हौ का हे सखीजिहि घटि परगड होइ॥18
पावक रूपी राँम हैघटि घटि रह्या समाइ।
चित चकमक लागै नहींताथैं धुँवाँ ह्नै ह्नै जाइ॥19
कबीर खालिक जागियाऔर न जागै कोइ।
कै जागै बिसई विष भर्‌याकै दास बंदगी होइ॥20
कबीर चाल्या जाइ थाआगैं मिल्या खुदाइ।
मीराँ मुझ सौं यौं कह्याकिनि फुरमाई गाइ॥21514



चंदन की कुटकी भलीनाँ बँबूर की अबराँउँ।
बैश्नों की छपरी भलीनाँ साषत का बड गाउँ॥1
टिप्पणी: ख-चंदन की चूरी भली।
पुरपाटण सूबस बसैआनँद ठाये ठाँइ।
राँम सनेही बाहिराऊँजड़ मेरे भाँइ॥2
जिहिं घरि साथ न पूजियेहरि की सेवा नाँहिं।
ते घर मरड़हट सारषेभूत बसै तिन माँहि॥3
है गै गैंवर सघन घनछत्रा धजा फहराइ।
ता सुख थैं भिष्या भलीहरि सुमिरत दिन जाइ॥4
हैं गै गैंवर सघन घनछत्रापति की नारि।
तास पटंतर नाँ तुलैहरिजन की पनिहारि॥5
क्यूँ नृप नारी नींदयेक्यूँ पनिहारी कौं माँन।
वामाँग सँवारै पीव कौवा नित उठि सुमिरै राँम॥6
टिप्पणी: 
वा मांग’ या ‘वामांग’ दोनों पाठ हो सकता है।
कबीर धनि ते सुंदरीजिनि जाया बैसनों पूत।
राँम सुमिर निरभैं हुवासब जग गया अऊत॥7
कबीर कुल तौ सो भलाजिहि कुल उपजै दास।
जिहिं कुल दास न ऊपजैसो कुल आक पलास॥8
साषत बाँभण मति मिलैबैसनों मिलै चंडाल।
अंक माल दे भटियेमाँनों मिले गोपाल॥9
राँम जपत दालिद भलाटूटी घर की छाँनि।
ऊँचे मंदिर जालि देजहाँ भगति न सारँगपाँनि॥10
कबीर भया है केतकीभवर गये सब दास।
जहाँ जहाँ भगति कबीर कीतहाँ तहाँ राँम निवास॥11525



कबीर मधि अंग जेको रहैतौ तिरत न लागै बार।
दुइ दुइ अंग सूँ लाग करिडूबत है संसार॥1
कबीर दुविधा दूरि करिएक अंग ह्नै लागि।
यहु सीतल वहु तपति है दोऊ कहिये आगि॥2
अनल अकाँसाँ घर कियामधि निरंतर बास।
बसुधा ब्यौम बिरकत रहैबिनठा हर बिसवास॥3
बासुरि गमि न रैंणि गमिनाँ सुपनै तरगंम।
कबीर तहाँ बिलंबियाजहाँ छाहड़ी न घंम॥4
जिहि पैडै पंडित गएदुनिया परी बहीर।
औघट घाटी गुर कहीतिहिं चढ़ि रह्या कबीर॥5
टिप्पणी: ख-दुनियाँ गई बहीर। औघट घाटी नियरा।
श्रग नृकथै हूँ रह्यासतगुर के प्रसादि।
चरन कँवल की मौज मैंरहिसूँ अंतिरु आदि॥6
हिंदू मूये राम कहिमुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवतादुइ मैं कदे न जाइ॥7
दुखिया मूवा दुख कोंसुखिया सुख कौं झूरि।
सदा आनंदी राम केजिनि सुख दुख मेल्हे दूरि॥8
कबीर हरदी पीयरीचूना ऊजल भाइ।
रामसनेही यूँ मिलेदुन्यूँ बरन गँवाइ॥9
काबा फिर कासी भयाराँम भया रहीम।
मोट चून मैदा भयाबैठि कबीरा जीभ॥10
धरती अरु आसमान बिचिदोइ तूँबड़ा अबध।
षट दरसन संसै पड़ाअरु चौरासी सिध॥11526



षीर रूप हरि नाँव है नीर आन ब्यौहार।
हंस रूप कोई साध हैतात को जांनणहार॥1
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
सार संग्रह सूप ज्यूँत्यागै फटकि असार।
कबीर हरि हरि नाँव लेपसरै नहीं बिकार॥2
कबीर साषत कौ नहींसबै बैशनों जाँणि।
जा मुख राम न ऊचरैताही तन की हाँणि॥2
कबीर औगुँण ना गहैं गुँण ही कौ ले बीनि।
घट घट महु के मधुप ज्यूँपर आत्म ले चीन्हि॥3
बसुधा बन बहु भाँति हैफूल्यो फल्यौ अगाध।
मिष्ट सुबास कबीर गहिविषमं कहै किहि साथ॥4540
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
कबीर सब घटि आत्मासिरजी सिरजनहार।
राम कहै सो राम मेंरमिता ब्रह्म बिचारि॥5
तत तिलक तिहु लोक मेंराम नाम निजि सार।
जन कबीर मसतिकि देयासोभा अधिक अपार॥6



राम नाम सब को कहैकहिबे बहुत बिचार।
सोई राम सती कहैसोई कौतिग हार॥1
आगि कह्याँ दाझै नहींजे नहीं चंपै पाइ।
जब लग भेद न जाँणियेराम कह्या तौ काइ॥2
कबीर सोचि बिचारियादूजा कोई नाँहि।
आपा पर जब चीन्हियातब उलटि समाना माँहि॥3
कबीर पाणी केरा पूतलाराख्या पवन सँवारि।
नाँनाँ बाँणी बोलियाजोति धरी करतारि॥4
नौ मण सूत अलूझियाकबीर घर घर बारि।
तिनि सुलझाया बापुड़ेजिनि जाणीं भगति मुरारि॥5
आधी साषी सिरि कटैंजोर बिचारी जाइ।
मनि परतीति न ऊपजेतौ राति दिवस मिलि गाइ॥6
टिप्पणी: ख-भरि गाइ।
सोई अषिर सोइ बैयनजन जू जू बाचवंत।
कोई एक मेलै लवणिअमीं रसाइण हुँत॥7
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर भूल दंग में लोग कहैं यहु भूल।
कै रमइयौ बाट बताइसीकै भूलत भूलैं भूल॥8


हरि मोत्याँ की माल हैपोई काचै तागि।
जतन करि झंटा घँणाटूटेगी कहूँ लागि॥8
मन नहीं छाड़ै बिषैबिषै न छाड़ै मन कौं।
इनकौं इहै सुभावपूरि लागी जुग जन कौं॥9
खंडित मूल बिनास कहौ किम बिगतह कीजै।
ज्यूँ जल में प्रतिब्यंब त्यूँ सकल रामहिं जांणीजै॥10
सो मन सो तन सो बिषेसो त्रिभवन पति कहूँ कस।
कहै कबीर ब्यंदहु नराज्यूँ जल पूर्‌या सक रस॥11549



हरि जी यहै बिचारियासाषी कहौ कबीर।
भौसागर मैं जीव हैजे कोई पकड़ैं तीर॥1
कली काल ततकाल हैबुरा करौ जिनि कोइ।
अनबावै लोहा दाहिणै बोबै सु लुणता होइ॥2
टिप्पणी: ख-बुरा न करियो कोइ।
ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
जीवन को समझै नहींमुबा न कहै संदेस।
जाको तन मन सौं परचा नहींताकौ कौण धरम उपदेस॥3
कबीर संसा जीव मैंकोई न कहै समझाइ।
बिधि बिधि बाणों बोलता सो कत गया बिलाइ॥3
टिप्पणी: ख-नाना बाँणी बोलता।
कबीर संसा दूरि करि जाँमण मरण भरंम।
पंचतत तत्तहि मिले सुरति समाना मंन॥4
ग्रिही तौ च्यंता घणींबैरागी तौ भीष।
दुहुँ कात्याँ बिचि जीव हैदौ हमैं संतौं सीष॥5
बैरागी बिरकत भलागिरहीं चित्त उदार।
दुहै चूकाँ रीता पड़ैताकूँ वार न पार॥6
जैसी उपजै पेड़ मूँतैसी निबहै ओरि।
पैका पैका जोड़ताँजुड़िसा लाष करोड़ि॥7
कबीर हरि के नाँव सूँप्रीति रहै इकतार।
तौ मुख तैं मोती झड़ैंहीरे अंत न पार॥8
टिप्पणी: ख-सुरति रहै इकतार। हीरा अनँत अपार॥
ऐसी बाँणी बोलियेमन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करैऔरन कौं सुख होइ॥9
कोइ एक राखै सावधानचेतनि पहरै जागि।
बस्तन बासन सूँ खिसैचोर न सकई लागि॥10559



जिनि नर हरि जठराँहउदिकै थैं षंड प्रगट कियौ।
सिरजे श्रवण कर चरनजीव जीभ मुख तास दीयो॥
उरध पाव अरध सीसबीस पषां इम रषियौ।
अंन पान जहां जरैतहाँ तैं अनल न चषियौ॥
इहिं भाँति भयानक उद्र मेंन कबहू छंछरै।
कृसन कृपाल कबीर कहिइम प्रतिपालन क्यों करै॥1
भूखा भूखा क्या करैकहा सुनावै लोग।
भांडा घड़ि जिनि मुख दियासोई पूरण जोग॥2
रचनहार कूँ चीन्हि लैखैचे कूँ कहा रोइ।
दिल मंदिर मैं पैसि करितांणि पछेवड़ा सोइ॥3
राम नाम करि बोहड़ाबांही बीज अधाइ।
अंति कालि सूका पड़ैतौ निरफल कदे न जाइ॥4
च्यंतामणि मन में बसैसोई चित्त मैं आंणि।
बिन च्यंता च्यंता करैइहै प्रभू की बांणि॥5
कबीर का तूँ चितवैका तेरा च्यंत्या होइ।
अणच्यंत्या हरिजी करैजो तोहि च्यंत न होइ॥6
करम करीमां लिखि रह्याअब कछू लिख्या न जाइ।
मासा घट न तिल बथैजौ कोटिक करै उपाइ॥7
जाकौ चेता निरमयाताकौ तेता होइ।
रती घटै न तिल बधैजौ सिर कूटै कोइ॥8
टिप्पणी: इसके आगे ख प्रति में यह दोहा है-
करीम कबीर जु विह लिख्यानरसिर भाग अभाग।
जेहूँ च्यंता चितवैतऊ स आगै आग॥10
च्यंता न करि अच्यंत रहुसांई है संभ्रथ।
पसु पंषरू जीव जंततिनको गांडि किसा ग्रंथ॥9
संत न बांधै गाँठड़ीपेट समाता लेइ।
सांई सूँ सनमुख रहैजहाँ माँगै तहाँ देइ॥10
राँम राँम सूँ दिल मिलिजन हम पड़ी बिराइ।
मोहि भरोसा इष्ट काबंदा नरकि न जाइ॥11
कबीर तूँ काहे डरैसिर परि हरि का हाथ।
हस्ती चढ़ि नहीं डोलियेकूकर भूसैं जु लाष॥12
मीठा खाँण मधूकरीभाँति भाँति कौ नाज।
दावा किसही का नहींबित बिलाइति बड़ राज॥13
टिप्पणी: ख-शिर परि सिरजणहार।
हस्ती चढ़ि क्या डोलिए। भुसैं हजार।
ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
हसती चढ़िया ज्ञान कैसहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार हैपड़ा भुसौ झषि माँरि॥15

मोनि महातम प्रेम रसगरवा तण गुण नेह।
ए सबहीं अह लागयाजबहीं कह्या कुछ देह॥14
माँगण मरण समान हैबिरला वंचै कोइ।
कहै कबीर रघुनाथ सूँमतिर मँगावै माहि॥15
टिप्पणी: ख-जगनाथ सौं।
पांडल पंजर मन भवरअरथ अनूपम बास।
राँम नाँम सींच्या अँमीफल लागा वेसास॥16
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
कबीर मरौं पै मांगौं नहींअपणै तन कै काज।
परमारथ कै कारणैमोहिं माँगत न आवै लाज॥20
भगत भरोसै एक कैनिधरक नीची दीठि।
तिनकू करम न लागसीराम ठकोरी पीठि॥21

मेर मिटी मुकता भयापाया ब्रह्म बिसास।
अब मेरे दूजा को नहींएक तुम्हारी आस॥17
जाकी दिल में हरि बसैसो नर कलपै काँइ।
एक लहरि समंद कीदुख दलिद्र सब जाँइ॥18
पद गाये लैलीन ह्नैकटी न संसै पास।
सबै पिछीड़ैथोथरेएक बिनाँ बेसास॥19
गावण हीं मैं रोज हैरोवण हीं में राग।
इक वैरागी ग्रिह मैंइक गृही मैं वैराग॥20
गाया तिनि पाया नहींअणगाँयाँ थैं दूरि।
जिनि गाया बिसवास सूँतिन राम रह्या भरिपूरि॥21580



संपटि माँहि समाइयासो साहिब नहीसीं होइ।
सफल मांड मैं रमि रह्यासाहिब कहिए सोइ॥1
रहै निराला माँड थैसकल माँड ता माँहि।
कबीर सेवै तास कूँदूजा कोई नाँहि॥2
भोलै भूली खसम कैबहुत किया बिभचार।
सतगुर गुरु बताइयापूरिबला भरतार॥3
जाकै मह माथा नहींनहीं रूपक रूप।
पुहुप बास थैं पतला ऐसा तत अनूप॥4584
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
चत्रा भुजा कै ध्यान मैंब्रिजबासी सब संत।
कबीर मगन ता रूप मैंजाकै भुजा अनंत॥5



मेरे मन मैं पड़ि गईऐसी एक दरार।
फटा फटक पषाँण ज्यूँमिल्या न दूजी बार॥1
मन फाटा बाइक बुरैमिटी सगाई साक।
जौ परि दूध तिवास काऊकटि हूवा आक॥2
चंदन माफों गुण करैजैसे चोली पंन।
दोइ जनाँ भागां न मिलैमुकताहल अरु मंन॥3
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
मोती भागाँ बीधताँमन मैं बस्या कबोल।
बहुत सयानाँ पचि गयापड़ि गई गाठि गढ़ोल॥4
मोती पीवत बीगस्यासानौं पाथर आइ राइ।
साजन मेरी निकल्याजाँमि बटाऊँ जाइ॥5


पासि बिनंठा कपड़ाकदे सुरांग न होइ।
कबीर त्याग्या ग्यान करिकनक कामनी दोइ॥4
चित चेतनि मैं गरक ह्नैचेत्य न देखैं मंत।
कत कत की सालि पाड़ियेगल बल सहर अनंत॥5
जाता है सो जाँण देतेरी दसा न जाइ।
खेवटिया की नाव ज्यूँधणों मिलैंगे आइ॥6
नीर पिलावत क्या फिरैसायर घर घर बारि।
जो त्रिषावंत होइगातो पीवेगा झष मारि॥7
सत गंठी कोपीन हैसाध न मानै संक।
राँम अमलि माता रहैगिणैं इंद्र कौ रंक॥8
दावै दाझण होत हैनिरदावै निरसंक।
जे नर निरदावै रहैंते गणै इंद्र कौ रंक॥9
कबीर सब जग हंडियामंदिल कंधि चढ़ाइ।
हरि बिन अपनाँ को नहींदेखे ठोकि बजाइ॥10514



नाँ कुछ किया न करि सक्यानाँ करणे जोग सरीर।
जे कुछ किया सु हरि कियाताथै भया कबीर कबीर॥1
कबीर किया कछू न होत हैअनकीया सब होइ।
जे किया कछु होत हैतो करता औरे कोइ॥2
जिसहि न कोई तिसहि तूँजिस तूँ तिस सब कोइ।
दरिगह तेरी साँईंयाँनाँव हरू मन होइ॥3
एक खड़े ही लहैंऔर खड़ा बिललाइ।
साईं मेरा सुलषनासूता देइ जगाइ॥4
सात समंद की मसि करौंलेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौंतऊ हरि गुण लिख्या न जाइ॥5
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
बाजण देह बजंतणीकुल जंतड़ी न बेड़ि।
तुझै पराई क्या पड़ीतूँ आपनी निबेड़ि॥8


अबरन कौं का बरनियेमोपै लख्या न जाइ।
अपना बाना बाहियाकहि कहि थाके माइ॥6
झल बाँवे झल दाँहिनैंझलहिं माँहि ब्यौहार।
आगैं पीछै झलमईराखै सिरजनहार॥7
साईं मेरा बाँणियाँसहजि करै ब्यौपार।
बिन डाँडी बिन पालड़ैतोलै सब संसार॥8
टिप्पणी: ख- ब्यौहार।

कबीर वार्‌या नाँव परिकीया राई लूँण।
जिसहिं चलावै पंथ तूँतिसहिं भुलावै कौंण॥9
कबीर करणी क्या करैजे राँम न कर सहाइ।
जिहिं जिहिं डाली पग धरैसोई नवि नवि जाइ॥10
जदि का माइ जनमियाँकहूँ न पाया सुख।
डाली डाली मैं फिरौंपाती पाती दुख॥11
साईं सूँ सब होत हैबंदे थै कछु नाहिं।
राई थैं परबत करैपरबत राई माहिं॥12606
टिप्पणी: ख प्रति में बारहवें दोहे के स्थान पर यह दोहा है-
रैणाँ दूरां बिछोड़ियांरहु रे संषम झूरि।
देवल देवलि धाहिणीदेसी अंगे सूर॥13



टिप्पणी: ख प्रति में इस अंग का पहला दोहा यह है-
साईं सौं सब होइगाबंदे थैं कुछ नाहिं।
राई थैं परबत करेपरबत राई माहिं॥1
अणी सुहेली सेल कीपड़ताँ लेइ उसास।
चोट सहारै सबद कीतास गुरु मैं दास॥1
खूंदन तो धरती सहैबाढ़ सहै बनराइ।
कुसबद तो हरिजन सहैदूजै सह्या न जाइ॥2
सीतलता तब जाणिएसमिता रहे समाइ।
पष छाड़ै निरपष रहैसबद न दूष्या जाइ॥3
टिप्पणी: ख काट सहैं। साधू सहै।
कबीर सीतलता भईपाया ब्रह्म गियान।
जिहिं बैसंदर जग जल्यासो मेरे उदिक समान॥4610



कबीर सबद सरीर मैंबिनि गुण बाजै तंति।
बाहरि भीतरि भरि रह्याताथैं छूटि भरंति॥1
सती संतोषी सावधानसबद भेद सुबिचार।
सतगुर के प्रसाद थैंसहज सील मत सार॥2
सतगुर ऐसा चाहिएजैसा सिकलीगर होइ।
सबद मसकला फेरि करिदेह द्रपन करे सोइ॥3
सतगुर साँचा सूरिवाँसबद जु बाह्या एक।
लागत ही में मिलि गयापड़ा कलेजे छेक॥4
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
सहज तराजू आँणि करिसन रस देख्या तोलि।
सब रस माँहै जीभ रतजे कोइ जाँणै बोलि॥5
हरि रस जे जन बेधियासतगुण सी गणि नाहि।
लागी चोट सरीर मेंकरक कलेजे माँहि॥5
ज्यूँ ज्यूँ हरिगुण साभलूँत्यूँ त्यूँ लागै तीर।
साँठी साँठी झड़ि पड़िझलका रह्या सरीर॥6
ज्यूँ ज्यूँ हरिगुण साभलूँत्यूँ त्यूँ लागै तीर।
लागै थैं भागा नहींसाहणहार कबीर॥7
सारा बहुत पुकारियापीड़ पुकारै और।
लागी चोट सबद कीरह्या कबीरा ठौर॥8618
टिप्पणी: ख प्रति में यह दोहा नहीं है।



जीवन मृतक ह्नै रहैतजै जगत की आस।
तब हरि सेवा आपण करैमति दुख पावै दास॥1
टिप्पणी: ख प्रति में इस अंग में पहला दोहा यह है-
जिन पांऊँ सै कतरी हांठत देत बदेस।
तिन पांऊँ तिथि पाकड़ौआगण गया बदेस॥1


कबीर मन मृतक भयादुरबल भया सरीर।
तब पैडे लागा हरि फिरैकहत कबीर कबीर॥2
कबीर मरि मड़हट रह्यातब कोइ न बूझै सार।
हरि आदर आगै लियाज्यूँ गउ बछ की लार॥3
घर जालौं घर उबरेघर राखौं घर जाइ।
एक अचंभा देखियामड़ा काल कौं खाइ॥4
मरताँ मरताँ जग मुवाऔसर मुवा न कोइ।
कबीर ऐसैं मरि मुवाज्यूँ बहूरि न मरना होइ॥5
बैद मुवा रोगी मुवामुवा सकल संसार।
एक कबीरा ना मुवाजिनि के राम अधार॥6
मन मार्‌या ममता मुईअहं गई सब छूटि।
जोगी था सो रमि गयाआसणि रही विभूति॥7
जीवन थै मरिबो भलौजौ मरि जानै कोइ।
मरनै पहली जे मरेतौ कलि अजरावर होइ॥8
खरी कसौटी राम कीखोटा टिकैं न कोइ।
राम कसौटी सो टिकैजो जीवन मृतक होइ॥9
आपा मेट्या हरि मिलैहरि मेट्या सब जाइ।
अकथ कहाणी प्रेम कीकह्या न को पत्याइ॥10
निगु साँवाँ वहि जायगाजाकै थाघी नहीं कोइ।
दीन गरीबी बंदिगीकरता होइ सु होइ॥11
दीन गरीबी दीन कौदुँदर को अभिमान।
दुँदर दिल विष सूँ भरीदीन गरीबी राम॥12
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहा है-
कबीर नवे स आपकोपर कौं नवे न कोइ।
घालि तराजू तौलियेनवे स भारी होइ॥14
बुरा बुरा सब को कहैबुरा न दीसे कोइ।
जे दिल खोजौ आपणोबुरा न दीसे कोइ॥15
कबीर चेरा संत कादासिन का परदास।
कबीर ऐसे ह्नै रह्याज्यूँ पांऊँ तलि घास॥13
रोड़ा ह्नै रही बाट कातजि पादंड अभिमान।
ऐसा जे जन ह्नै रहेताहि मिले भगवान॥14632
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
रोड़ा भया तो क्या भयापंथी को दुख देइ।
हरिजन ऐसा चाहिएजिसी जिमीं की खेह॥18
खेह भई तो क्या भयाउड़ि उड़ि लागे अंग।
हरिजन ऐसा चाहिएपाँणीं जैसा रंग॥19
पाणीं भया तो क्या भयाताता सीता होइ।
हरिजन ऐसा चाहिएजैसा हरि ही होइ॥20
हरि भया तो क्या भयाजैसों सब कुछ होइ।
हरिजन ऐसा चाहिएहरि भजि निरमल होइ॥21



कबीर तहाँ न जाइएजहाँ कपट का हेत।
जालूँ कली कनीर कीतन रातो मन सेत॥1
टिप्पणी: ख प्रति में इस अंग का पहला दोहा यह है-
नवणि नयो तो का भयोचित्त न सूधौं ज्यौंह।
पारधिया दूणा नवैमिघ्राटक ताह॥1
संसारी साषत भलाकँवारी कै भाइ।
दुराचारी वेश्नों बुराहरिजन तहाँ न जाइ॥2
निरमल हरि का नाव सोंके निरमल सुध भाइ।
के ले दूणी कालिमाभावें सों मण साबण लाइ॥3635



ऐसा कोई न मिलेहम कों दे उपदेस।
भौसागर में डूबताकर गहि काढ़े केस॥1
ऐसा कोई न मिलेहम को लेइ पिछानि।
अपना करि किरपा करेले उतारै मैदानि॥2
ऐसा कोई ना मिलेराम भगति का गीत।
तनमन सौपे मृग ज्यूँसुने बधिक का गीत॥3
ऐसा कोई ना मिलेअपना घर देइ जराइ।
पंचूँ लरिका पटिक करिरहै राम ल्यौ लाइ॥4
ऐसा कोई ना मिलेजासौ रहिये लागि।
सब जग जलता देखियेअपणीं अपणीं आगि॥5
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
ऐसा कोई न मिलेबूझै सैन सुजान।
ढोल बजंता ना सुणौंसुरवि बिहूँणा कान॥6
ऐसा कोई ना मिलेजासूँ कहूँ निसंक।
जासूँ हिरदे की कहूँसो फिरि माडै कंक॥6
ऐसा कोई ना मिलेसब बिधि देइ बताइ।
सुनि मण्डल मैं पुरिष एकताहि रहै ल्यो लाइ॥7
हम देखत जग जात हैजग देखत हम जाँह।
ऐसा कोई ना मिलेपकड़ि छुड़ावै बाँह॥8
तीनि सनेही बहु मिलेचौथे मिले न कोइ।
सबे पियारे राम केबैठे परबसि होइ॥9
माया मिले महोर्बतीकूड़े आखै बेउ।
कोइ घाइल बेध्या ना मिलैसाईं हंदा सैण॥10
सारा सूरा बहु मिलेंघाइला मिले न कोइ।
घाइल ही घाइल मिलेतब राम भगति दिढ़ होइ॥11
टिप्पणी: ख-जब घाइल ही घाइल मिलै।
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौंप्रेमी मिलै न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलैतब सब बिष अमृत होइ॥12
टिप्पणी: ख-जब प्रेमी ही प्रेमी मिलें।
हम घर जाल्या आपणाँलिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास काजै चलै हमारे साथि॥13648
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
जाणै ईछूँ क्या नहींबूझि न कीया गौन।
भूलौ भूल्या मिल्यापंथ बतावै कौन॥15
कबीर जानींदा बूझियामारग दिया बताइ।
चलता चलता तहाँ गयाजहाँ निरंजन राइ॥16



कमोदनी जलहरि बसैचंदा बसै अकासि।
जो जाही का भावतासो ताही कै पास॥1
टिप्पणी: ख-जो जाही कै मन बसै।
कबीर गुर बसै बनारसीसिष समंदा तीर।
बिसार्‌या नहीं बीसरेजे गुंण होइ सरीर॥2
जो है जाका भावताजदि तदि मिलसी आइ।
जाकी तन मन सौंपियासो कबहूँ छाँड़ि न जाइ॥3
स्वामी सेवक एक मतमन ही मैं मिलि जाइ।
चतुराई रीझै नहींरीझै मन कै भाइ॥4



काइर हुवाँ न छूटियेकछु सूरा तन साहि।
भरम भलका दूरि करिसुमिरण सेल सँबाहि॥1
षूँड़ै षड़ा न छूटियोसुणि रे जीव अबूझ।
कबीर मरि मैदान मैंकरि इंद्राँ सूँ झूझ॥2
कबीर साईं सूरिवाँमन सूँ माँडै झूझ।
पंच पयादा पाड़ि लेदूरि करै सब दूज॥3
टिप्पणी: ख-पंच पयादा पकड़ि ले।
सूरा झूझै गिरदा सूँइक दिसि सूर न होइ।
कबीर यौं बिन सूरिवाँभला न कहिसी कोइ॥4
कबीर आरणि पैसि करिपीछै रहै सु सूर।
सांईं सूँ साचा भयारहसी सदा हजूर॥5
टिप्पणी: ख-जाके मुख षटि नूर।
गगन दमाँमाँ बाजियापड़ा निसानै घाव।
खेत बुहार्‌या सूरिवैमुझ मरणे का चाव॥6
कबीर मेरै संसा को नहींहरि सूँ लागा हेत।
काम क्रोध सूँ झूझणाँचौड़े माँड्या खेत॥7
सूरै सार सँबाहियापहर्‌या सहज संजोग।
अब कै ग्याँन गयंद चढ़िखेत पड़न का जोग॥8
सूरा तबही परषियेलडै धणीं के हेत।
पुरिजा पुरिजा ह्नै पड़ैतऊ न छाड़ै खेत॥9
खेत न छाड़ै सूरिवाँझूझै द्वै दल माँहि।
आसा जीवन मरण कीमन आँणे नाहि॥10
अब तो झूझ्याँही वणौंमुढ़ि चाल्या घर दूरि।
सिर साहिब कौ सौंपतासोच न कीजै सूरि॥11
अब तो ऐसी ह्नै पड़ीमनकारु चित कीन्ह।
मरनै कहा डराइयेहाथि स्यँधौरा लीन्ह॥12
जिस मरनै थे जग डरैसो मरे आनंद।
कब मारिहूँ कब देखिहूँपूरन परमाँनंद॥13
कायर बहुत पमाँवही बहकि न बोलै सूर।
कॉम पड्याँ ही जाँणिहैकिसके मुख परि नूर॥14
जाइ पूछौ उस घाइलैदिवस पीड निस जाग।
बाँहणहारा जाणिहैकै जाँणै जिस लाग॥15
घाइल घूमै गहि भर्‌याराख्या रहे न ओट।
जतन कियाँ जावै नहींबणीं मरम की चोट॥16
ऊँचा विरष अकासि फलपंषी मूए झूरि।
बहुत सयाँने पचि रहेफल निरमल परि दूरि॥17
टिप्पणी: ख-पंथी मूए झूरि।
दूरि भया तौ का भयासिर दे नेड़ा होइ।
जब लग सिर सौपे नहींकारिज सिधि न होइ॥18
कबीर यहु घर प्रेम काखाला का घर नाहिं।
सीस उतारै हाथि करिसो पैसे घर माँहि॥19
कबीर निज घर प्रेम कामारग अगम अगाध।
सीर उतारि पग तलि धरैतब निकटि प्रेम का स्वाद॥20
प्रेम न खेती नींपजेप्रेम न हाटि बिकाइ।
राजा परजा जिस रुचैसिर दे सो ले जाइ॥21
सीस काटि पासंग दियाजीव सरभरि लीन्ह।
जाहि भावे सो आइ ल्यौप्रेम आट हँम कीन्ह॥22
सूरै सीस उतारियाछाड़ी तन की आस।
आगै थैं हरि मुल कियाआवत देख्या दास॥23
भगति दुहेली राम कीनहिं कायर का काम।
सीस उतारै हाथि करिसो लेसी हरि नाम॥24
भगति दुहेली राँम कीनहिं जैसि खाड़े की धार।
जे डोलै तो कटि पड़ेनहीं तो उतरै पार॥25
भगति दुहेली राँम कीजैसी अगनि की झाल।
डाकि पड़ै ते ऊबरेदाधे कौतिगहार॥26
कबीर घोड़ा प्रेम काचेतनि चढ़ि असवार।
ग्याँन षड़ग गहि काल सिरिभली मचाई मार॥27
कबीरा हीरा वणजियामहँगे मोल अपार।
हाड़ गला माटी गलीसिर साटै ब्यौहार॥28
जेते तारे रैणि केतेते बैरी मुझ।
घड़ सूली सिर कंगुरैतऊ न बिसारौं तुझ॥29
जे हारर्‌या तौ हरि सवांजे जीत्या तो डाव।
पारब्रह्म कूँ सेवताजे सिर जाइ त जाव॥30
सिर माटै हरि सेविएछाड़ि जीव की बाँणि।
जे सिर दीया हरि मिलैतब लगि हाँणि न जाणि॥31
टिप्पणी: ख-सिर साटै हरि पाइए।
टूटी बरत अकास थैकोई न सकै झड़ झेल।
साथ सती अरु सूर काअँणी ऊपिला खेल॥32
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
ढोल दमामा बाजियासबद सुणइ सब कोइ।
जैसल देखि सती भजेतौ दुहु कुल हासी होइ॥32
सती पुकारै सलि चढ़ीसुनी रे मीत मसाँन।
लोग बटाऊ चलि गएहम तुझ रहे निदान॥33
सती बिचारी सत कियाकाठौं सेज बिछाइ।
ले सूती पीव आपणाचहुँ दिसि अगनि लगाइ॥34
सती सूरा तन साहि करितन मन कीया घाँण।
दिया महौल पीव कूँतब मड़हट करै बषाँण॥35
सती जलन कूँ नीकलीपीव का सुमरि सनेह।
सबद सुनन जीव निकल्याभूति गई सब देह॥36
सती जलन कूँ नीकलीचित धरि एकबमेख।
तन मन सौंप्या पीव कूँतब अंतर रही न रेख॥37
टिप्पणी: ख-जलन को नीसरी।
हौं तोहि पूछौं हे सखीजीवत क्यूँ न मराइ।
मूंवा पीछे सत करैजीवत क्यूँ न कराइ॥38
कबीर प्रगट राम कहिछाँनै राँम न गाइ।
फूस कौ जोड़ा दूरि करिज्यूँ बहुरि लागै लाइ॥39
कबीर हरि सबकूँ भजैहरि कूँ भजै न कोइ।
जब लग आस सरीर कीतब लग दास न होइ॥40
आप सवारथ मेदनीभगत सवारथ दास।
कबीर राँम सवारथीजिनि छाड़ीतन की आस॥41696



झूठे सुख कौ सुख कहैंमानत है मन मोद।
खलक चवीणाँ काल काकुछ मुख मैं कुछ गोद॥1
आज काल्हिक जिस हमैंमारगि माल्हंता।
काल सिचाणाँ नर चिड़ाऔझड़ औच्यंताँ॥2
काल सिहाँणै यों खड़ाजागि पियारो म्यंत।
रामसनेही बाहिरा तूँ क्यूँ सोवै नच्यंत॥3
सब जग सूता नींद भरिसंत न आवै नींद।
काल खड़ा सिर उपरैज्यूँ तोरणि आया बींद॥4
टिप्पणी: ख-निसह भरि।
आज कहै हरि काल्हि भजौगाकाल्हि कहे फिरि काल्हि।
आज ही काल्हि करंतड़ाँऔसर जासि चालि॥5
कबीर पल की सुधि नहींकरै काल्हि का साज।
काल अच्यंता झड़पसीज्यूँ तीतर को बाज॥6
कबीर टग टग चोघताँपल पल गई बिहाइ।
जीव जँजाल न छाड़ईजम दिया दमामा आइ॥7
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
जूरा कूंतीजीवन सभाकाल अहेड़ी बार।
पलक बिना मैं पाकड़ैगरव्यो कहा गँवार॥8
मैं अकेला ए दोइ जणाँ छेती नाँहीं काँइ।
जे जम आगै ऊबरोतो जुरा पहूँती आइ॥8
बारी-बारी आपणींचेले पियारे म्यंत।
तेरी बारी रे जियानेड़ी आवै निंत॥9
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
मालन आवत देखि करिकलियाँ करी पुकार।
फूले फूले चुणि लिएकाल्हि हमारी बार॥11
बाढ़ी आवत देखि करितरवर डोलन लाग।
हम कटे की कुछ नहींपंखेरू घर भाग॥12
फाँगुण आवत देखि करिबन रूना मन माँहि।
ऊँची डाली पात हैदिन दिन पीले थाँहि॥13
पात पंडता यों कहैसुनि तरवर बणराइ।
अब के बिछुड़े ना मिलैकहि दूर पड़ैगे जाइ॥14
दों की दाधी लाकड़ीठाढ़ी करै पुकार।
मति बसि पड़ौं लुहार केजालै दूजी बार॥10
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
मेरा बीर लुहारियातू जिनि जालै मोहि।
इक दिन ऐसा होइगाहूँ जालौंगी तोहि॥15

जो ऊग्या सो आँथवैफूल्या सो कुमिलाइ।
जो चिणियाँ सो ढहि पड़ैजो आया सो जाइ॥11
जो पहर्‌या सो फाटिसीनाँव धर्‌या सो जाइ।
कबीर सोइ तत्त गहिजो गुरि दिया बताइ॥12
निधड़क बैठा राम बिनचेतनि करै पुकार।
यहु तन जल का बुदबुदाबिनसत नाहीं बार॥13
पाँणी केरा बुदबुदाइसी हमारी जाति।
एक दिनाँ छिप जाँहिंगेतारे ज्यूँ परभाति॥14
टिप्पणी: ख-एक दिनाँ नटि जाहिगेज्यूँ तारा परभाति।
ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर पंच पखेरुवाराखे पोष लगाइ।
एक जु आया पारधीले गयो सबै उड़ाइ॥21

कबीर यहु जग कुछ नहींषिन षारा षिन मीठ।
काल्हि जु बैठा माड़ियांआज नसाँणाँ दीठ॥15
टिप्पणी: ख-काल्हि जु दीठा मैंड़िया।
कबीर मंदिर आपणैनित उठि करती आलि।
मड़हट देष्याँ डरपतीचौड़े दीन्हीं जालि॥16
टिप्पणी: ख-बैठी करतौं आलि।
मंदिर माँहि झबूकतीदीवा केसी जोति।
हंस बटाऊ चलि गयाकाढ़ौ घर की छोति॥17
ऊँचा मंदिर धौलहरमाटी चित्री पौलि।
एक राम के नाँव बिनजँम पाड़गा रौलि॥18
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
काएँ चिणावै मालियाचुनै माटी लाइ।
मीच सुणैगी पायणीउधोरा लैली आइ॥26
काएँ चिणावै मालियालाँबी भीति उसारि।
घर तौ साढ़ी तीनि हाथघणौ तौ पौंणा चारि॥27
ऊँचा महल चिणाँइयाँसोवन कलसु चढ़ाइ।
ते मंदर खाली पड़ारहे मसाणी जाइ॥28
कबीर कहा गरबियोकाल गहै कर केस।
नाँ जाँणै कहाँ मारिसीकै घर कै परदेस॥19
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
इहर अभागी माँछलीछापरि माँणी आलि।
डाबरड़ा छूटै नहींसकै त समंद सँभालि॥30
मँछी हुआ न छूटिएझीवर मेरा काल।
जिहिं जिहिं डाबर हूँ फिरौतिहि तिहिं माँड़ै जाल॥31
पाँणी माँहि ला माँछलीसक तौ पाकड़ि तीर।
कड़ी कूद की काल कीआइ पहुँता कीर॥32
मंद बिकंता देखियाझीवर के करवारि।
ऊँखड़िया रत बालियाँतुम क्यूँ बँधे जालि॥33
पाँणी मँहि घर कियाचेजा किया पतालि।
पासा पड़ा करम कायूँ हम बीधे जाल॥34
सूकण लगा केवड़ातूटीं अरहर माल।
पाँणी की कल जाणताँगया ज सीचणहार॥35

कबीर जंत्रा न बाजईटूटि गए सब तार।
जंत्रा बिचारा क्या करैचलै बजावणहार॥20
टिप्पणी: ख-कबीर जंत्रा न बाजई।
धवणि धवंती रहि गईबुझि गए अंगार।
अहरणि रह्या ठमूकड़ाजब उठि चले लुहार॥21
टिप्पणी: ख-ठमेकड़ा उठि गए।
ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर हरणी दूबलीइस हरियालै तालि।
लख अहेड़ी एक जीवकित एक टालौ भालि॥38
पंथी ऊभा पंथ सिरिबुगचा बाँध्या पूठि।
मरणाँ मुँह आगै खड़ाजीवण का सब झूठ॥22
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
जिसहि न हरण इत जागिसी क्यूँ लौड़े मीत।
जैसे पर घर पाहुणरहै उठाए चीत॥40


यहु जिव आया दूर थैंअजौ भी जासी दूरि।
बिच कै बासै रमि रह्याकाल रह्या सर पूरि॥23
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
कबीर गफिल क्या फिरैसोवै कहा न चीत।
एवड़ माहि तै ले चल्याभज्या पकड़ि षरीस॥45
साईं सू मिसि मछीलाके जा सुमिरै लाहूत।
कबही उझंकै कटिसीहुँण ज्यों बगमंकाहु॥46

राम कह्या तिनि कहि लियाजुरा पहूँती आइ।
मंदिर लागै द्वार यैतब कुछ काढणां न जाइ॥24
बरिया बीती बल गयाबरन पलट्या और।
बिगड़ीबात न बाहुणैकर छिटक्याँ कत ठौर॥25
टिप्पणी: ख-कर छूटाँ कत ठौर।
बरिया बीती बल गयाअरू बुरा कमाया।
हरि जिन छाड़ै हाथ थैंदिन नेड़ा आया॥26
कबीर हरि सूँ हेत करिकूड़ै चित्त न लाव।
बाँध्या बार षटीक कैतापसु किती एक आव॥27
टिप्पणी: ख- कड़वे तन लाव।
बिष के बन मैं घर कियासरप रहे लपटाइ।
ताथैं जियरे डरैं गह्याजागत रैणि बिहाइ॥28
कबीर सब सुख राम हैऔर दुखाँ की रासि।
सुर नर मुनिवर असुर सबपड़े काल की पासि॥29
काची काया मन अथिरथिर थिर काँम करंत।
ज्यूँ ज्यूँ नर निधड़क फिरैत्यूँ त्यूँ काल हसंत॥30
टिप्पणी: ख प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
बेटा जाया तो का भयाकहा बजावै थाल।
आवण जाणा ह्नै रहाज्यौ कीड़ी का थाल॥51
रोवणहारे भी मुएमुए जलाँवणहार।
हा हा करते ते मुएकासनि करौं पुकार॥31
जिनि हम जाए ते मुएहम भी चालणहार।
जे हमको आगै मिलैतिन भी बंध्या मार॥32725



जहाँ जुरा मरण ब्यापै नहींमुवा न सुणिये कोइ।
चलि कबीर तिहि देसड़ैजहाँ बैद विधाता होइ॥1
टिप्पणी: ख-जुरा मीच।
कबीर जोगी बनि बस्याषणि खाये कंद मूल।
नाँ जाणौ किस जड़ी थैंअमर गए असथूल॥2
कबीर हरि चरणौं चल्यामाया मोह थैं टूटि।
गगन मंडल आसण कियाकाल गया सिर कूटि॥3
यहु मन पटकि पछाड़ि लैसब आपा मिटि जाइ।
पंगुल ह्नै पिवपिव करैपीछै काल न खाइ॥4
कबीर मन तीषा कियाबिरह लाइ षरसाँड़।
चित चणूँ मैं चुभि रह्या तहाँ नहीं काल का पाण॥5
टिप्पणी: ख-मन तीषा भया।
तरवर तास बिलंबिएबारह मास फलंत।
सीतल छाया गहर फलपंषी केलि करंत॥6
दाता तरवर दया फलउपगारी जीवंत।
पंषी चले दिसावराँबिरषा सुफल फलंत॥7732



पाइ पदारथ पेलि करिकंकर लीया हाथि।
जोड़ी बिछुटी हंस कीपड़ा बगाँ के साथि॥1
टिप्पणी: ख-चल्याँ बगाँ के साथि।
टिप्पणी: ख प्रति में इसके पहिले ये दोहे हैं-
चंदन रूख बदस गयोजण जण कहे पलास।
ज्यों ज्यों चूल्है लोंकिएत्यूँ त्यूँ अधिकी बास॥1
हंसड़ो तो महाराण कोउड़ि पड्यो थलियाँह।
बगुलौ करि करि मारियोसझ न जाँणै त्याँह॥2
हंस बगाँ के पाहुँनाकहीं दसा कै केरि।
बगुला कांई गरबियाँबैठा पाँख पषेरि॥3
बगुला हंस मनाइ लैनेड़ों थकाँ बहोड़ि।
त्याँह बैठा तूँ उजलात्यों हंस्यौ प्रीति न तोड़ि॥4

एक अचंभा देखियाहीरा हाटि बिकाइ।
परिषणहारे बाहिराकौड़ी बदले जाइ॥2
कबीर गुदड़ी बीषरीसौदा गया बिकाइ।
खोटा बाँध्याँ गाँठड़ीइब कुछ लिया न जाइ॥3
पैड़ै मोती बिखर्‌याअंधा निकस्या आइ।
जोति बिनाँ जगदीश कीजगत उलंघ्या जाइ॥4
कबीर यहु जग अंधलाजैसी अंधी गाइ।
बछा था सो मरि गयाऊभी चाँम चटाइ॥5737



जग गुण कूँ गाहक मिलैतब गुण लाख बिकाइ।
जब गुण कौ गाहक नहींतब कौड़ी बदले जाइ॥1
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर मनमना तौलिएसबदाँ मोल न तोल।
गौहर परषण जाँणहींआपा खोवै बोल॥7
कबीर लहरि समंद की मोती बिखरे आइ।
बगुला मंझ न जाँणईहंस जुणे चुणि खाइ॥2
हरि हीराजन जौहरीले ले माँडिय हाटि।
जबर मिलैगा पारिषुतब हीराँ की साटि॥3740
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
कबीर सपनही साजन मिलेनइ नइ करै जुहार।
बोल्याँ पीछे जाँणिएजो जाको ब्योहार॥4
मेरी बोली पूरबीताइ न चीन्है कोइ।
मेरी बोली सो लखैजो पूरब का होइ॥5



नाव न जाणै गाँव कामारगि लागा जाँउँ।
काल्हि जु काटा भाजिसीपहिली क्यों न खड़ाउँ॥1
सीप भई संसार थैंचले जु साईं पास।
अबिनासी मोहिं ले चल्यापुरई मेरी आस॥2
इंद्रलोक अचरिज भयाब्रह्मा पड्या बिचार।
कबीर चाल्या राम पैकौतिगहार अपार॥3
टिप्पणी: ख-ब्रह्मा भया विचार।
ऊँचा चढ़ि असमान कूमेरु ऊलंधे ऊड़ि।
पसू पंषेरू जीव जंतसब रहे मेर में बूड़ि॥4
टिप्पणी: ख-ऊँचा चाल।
सद पाँणी पाताल काकाढ़ि कबीरा पीव।
बासी पावस पड़ि मुएबिषै बिलंबे जीव॥5
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर हरिका डर्पतांऊन्हाँ धान न खाँउँ।
हिरदय भीतर हरि बसैताथै खरा डराउँ॥7

कबीर सुपिनै हरि मिल्यासूताँ लिया जगाइ।
आषि न मीचौं डरपतामति सुपिनाँ ह्नै जाइ॥6
गोब्यंद कै गुण बहुत हैलिखे जु हरिदै माँहि।
डरता पाँणी ना पिऊँमति वे धोये जाँहि॥7
कबीर अब तौ ऐसा भयानिरमोलिक निज नाउँ।
पहली काच कबीर थाफिरता ठाँव ठाँवै ठाउँ॥8
भौ समंद विष जल भर्‌यामन नहीं बाँधै धीर।
सबल सनेही हरि मिलेतब उतरे पारि कबीर॥9
भला सहेला ऊतरîपूरा मेरा भाग।
राँम नाँव नौका गह्यातब पाँणी पंक न लाग॥10
कबीर केसौ की दयासंसा घाल्या खोइ।
जे दिन गए भगति बिनते दिन सालै मोहि॥11
टिप्पणी: ख-संता मेल्हा।
कबीर जाचण जाइयाआगै मिल्या अंच।
ले चाल्या घर आपणैभारी खाया खंच॥12



कबीर दरिया प्रजल्यादाझै जल थल झोल।
बस नाँहीं गोपाल सौबिनसै रतन अमोल॥1
ऊँनमि बिआई बादलीबर्सण लगे अँगार।
उठि कबीरा धाह थेदाझत है संसार॥2
दाध बली ता सब दुखीसुखी न देखौ कोइ।
जहाँ कबीरा पग धरैतहाँ टुक धीरज होइ॥3755



कबीर सुंदरि यों कहैसुणि हो कंत सुजाँण।
बेगि मिलौ तुम आइ करिनहीं तर तजौं पराँण॥1
कबीर जाकी सुंदरीजाँणि करै विभचार।
ताहि न कबहूँ आदरैप्रेम पुरिष भरतार॥2
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
दाध बली तो सब दुखीसुखी न दीसै कोइ।
को पुत्र को बंधवाँको धणहीना होइ॥3
जे सुंदरि साईं भजैतजै आन की आस।
ताहि न कबहूँ परहरैपलक न छाड़ै पास॥3
इस मन को मैदा करौनान्हाँ करि करि पीसि।
तब सुख पावै सुंदरीब्रह्म झलकै सीस॥4
हरिया पारि हिंडोलनामेल्याकंत मचाइ।
सोई नारि सुलषणीनित प्रति झूलण जाइ॥5760



कस्तूरी कुंडलि बसैमृग ढूँढै बन माँहि।
ऐसै घटि घटि राँम हैंदुनियाँ देखै नाँहि॥1
कोइ एक देखै संत जनजाँकै पाँचूँ हाथि।
जाके पाँचूँ बस नहींता हरि संग न साथि॥2
सो साईं तन में बसैभ्रम्यों न जाणै तास।
कस्तूरी के मृग ज्यूँ फिरि फिरि सूँघै घास॥3
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
हूँ रोऊँ संसार कौमुझे न रोवै कोइ।
मुझको सोई रोइसीजे राम सनेही होइ॥5
मूरो कौ का रोइएजो अपणै घर जाइ।
रोइए बंदीवान कोजो हाटै हाट बिकाइ॥6
बाग बिछिटे मिग्र लौति हि जि मारै कोइ।
आपै हौ मरि जाइसीडावाँ डोला होइ॥7

कबीर खोजी राम कागया जु सिंघल दीप।
राम तौ घट भीतर रमि रह्याजो आवै परतीत॥4
घटि बधि कहीं न देखिएब्रह्म रह्या भरपूरि।
जिनि जान्या तिनि निकट हैदूरि कहैं थे दूरि॥5
मैं जाँण्याँ हरि दूरि हैहरि रह्या सकल भरपूरि।
आप पिछाँणै बाहिरानेड़ा ही थैं दूरि॥6
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर बहुत दिवस भटकट रह्यामन में विषै विसाम।
ढूँढत ढूँढत जग फिर्‌यातिणकै ओल्है राँम॥7
तिणकै ओल्हे राम हैपरबत मेहैं भाइ।
सतगुर मिलि परचा भयातब हरि पाया घट माँहि॥7
राँम नाँम तिहूँ लोक मैंसकलहु रह्या भरपूरि।
यह चतुराई जाहु जलिखोजत डोलैं दूरि॥8
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
हरि दरियाँ सूभर भरियादरिया वार न पार।
खालिक बिन खाली नहींजेंवा सूई संचार॥10

ज्यूँ नैनूँ मैं पूतलीत्यूँ खालिक घट माँहि।
मूरखि लोग न जाँणहिंबाहरि ढूँढण जाँहि॥9769



लोगे विचारा नींदईजिन्ह न पाया ग्याँन।
राँम नाँव राता रहैतिनहूँन भावै आँन॥1
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
निंदक तौ नाँकीबिनासोहै नकटयाँ माँहि।
साधू सिरजनहार केतिनमैं सोहै नाँहि॥2
दोख पराये देखि करिचल्या हसंत हसंत।
अपने च्यँति न आवईजिनकी आदि न अंत॥2
निंदक नेड़ा राखियेआँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणी बिनानिरमल करै सुभाइ॥3
न्यंदक दूरि न कीजियेदीजै आदर माँन।
निरमल तन मन सब करैबकि बकि आँनहिं आँन॥4
जे को नींदे साध कूँसंकटि आवै सोइ।
नरक माँहि जाँमैं मरैंमुकति न कबहूँ होइ॥5
कबीर घास न नींदियेजो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मेंखरा दुहेली होइ॥6
आपन यौं न सराहिएऔर न कहिए रंक।
नाँ जाँणौं किस ब्रिष तलिकूड़ा होइ करंक॥7
टिप्पणी: आपण यौ न सराहियेपर निंदिए न कोइ।
       अजहूँ लांबा द्योहड़ाना जाणौ क्या होइ॥8 

कबीर आप ठगाइयेऔर न ठगिये कोइ।
आप ठग्याँ सुख ऊपजैऔर ठग्याँ दुख होइ॥8
अब कै जे साईं मिलैंतौ सब दुख आपौ रोइ।
चरनूँ ऊपर सीस धरिकहूँ ज कहणाँ होइ॥9778
टिप्पणी: ख-प्रति में यह दोहा नहीं है।


 (55) निगुणाँ कौ अंग

हरिया जाँणै रूषड़ाउस पाँणीं का नेह।
सूका काठ न जाणईकबहू बूठा मेह॥1
झिरिमिरि झिरिमिरि बरषियापाँहण ऊपरि मेह।
माटी गलि सैंजल भईपाँहण वोही तेह॥2
पार ब्रह्म बूठा मोतियाँबाँधी सिषराँह।
सगुराँ सगुराँ चुणि लियाचूक पड़ी निगुराँह॥3
कबीर हरि रस बरषियागिर डूँगर सिषराँह।
नीर मिबाणाँ ठाहरैनाऊँ छा परड़ाँह॥4
कबीर मूँडठ करमियानव सिष पाषर ज्याँह।
बाँहणहारा क्या करैबाँण न लागै त्याँह॥5
कहत सुनत सब दिन गएउरझि न सुरझा मन।
कहि कबीर चेत्या नहींअजहूँ सुपहला दिन॥6
टिप्पणी: 
ख-प्रति में यह दोहा नहीं है।
कहि कबीर कठोर कैसबद न लागै सार।
सुधबुध कै हिरदै भिदैउपजि विवेक विचार॥7
टिप्पणी: 
ख-प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
बेकाँमी को सर जिनि बाहैसाठी खोवै मूल गँवावे।
दास कबीर ताहि को बाहैंगलि सनाह सनमुखसरसाहै॥8
पसुआ सौ पानी पड़ोरहि रहि याम खीजि।
ऊसर बाह्यौ न ऊगसीभावै दूणाँ बीज॥9
मा सीतलता के कारणैमाग बिलंबे आइ।
रोम रोम बिष भरि रह्याअमृत कहा समाइ॥8
सरपहि दूध पिलाइयेदूधैं विष ह्नै जाइ।
ऐसा कोई नाँ मिलेस्यूँ सरपैं विष खाइ॥9
जालौ इहै बड़पणाँसरलै पेड़ि खजूरि।
पंखी छाँह न बीसवैफल लागे ते दूरि॥10
ऊँचा कूल के कारणैबंस बध्या अधिकार।
चंदन बास भेदै नहींजाल्या सब परिवार॥11
कबीर चंदन के निड़ैनींव भि चंदन होइ।
बूड़ा बंस बड़ाइताँयौं जिनि बूड़ै कोइ॥12


 (56) बीनती कौ अंग

कबीर साँईं तो मिलहगेपूछिहिगे कुसलात।
आदि अंति की कहूँगाउर अंतर की बात॥1
टिप्पणी: 
ख-प्रति में यह दोहा नहीं है।
कबीर भूलि बिगाड़ियातूँ नाँ करि मैला चित।
साहिब गरवा लोड़ियेनफर बिगाड़ै नित ॥2
करता करै बहुत गुणऔगुँण कोई नाहिं।
जे दिल खोजौ आपणींतो सब औगुण मुझ माँहिं॥3
टिप्पणी: 
ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
बरियाँ बीती बल गयाअरु बुरा कमाया।
हरि जिनि छाड़ै हाथ थैंदिन नेड़ा आया॥3
औसर बीता अलपतनपीव रह्या परदेस।
कलंक उतारी केसवाँभाँना भरँम अंदेस॥4
कबीर करत है बीनतीभौसागर के ताँई।
बंदे ऊपरि जोर होत हैजँम कूँ बरिज गुसाँई॥5
टिप्पणी:  
-कबीरा विचारा करै बिनती।
हज काबै ह्नै ह्नै गयाकेती बार कबीर।
मीराँ मुझ मैं क्या खतामुखाँ न बोलै पीर॥6
ज्यूँ मन मेरा तुझ सोंयौं जे तेरा होइ।
ताता लोबा यौं मिलेसंधि न लखई कोइ॥7797



कबीर पूछै राँम कूँसकल भवनपति राइ।
सबही करि अलगा रहौसो विधि हमहिं बताइ॥1
जिहि बरियाँ साईं मिलैतास न जाँणै और।
सब कूँ सुख दे सबद करिअपणीं अपणीं ठौर॥2
कबीर मन का बाहुलाऊँचा बहै असोस।
देखत ही दह मैं पड़ेदई किसा कौं दोस॥3800



अब तौ ऐसी ह्नै पड़ीनाँ तूँ बड़ी न बेलि।
जालण आँणीं लाकड़ीऊठी कूँपल मेल्हि॥1
आगै आगै दौं जलैंपीछै हरिया होइ।
बलिहारी ता विरष कीजड़ काट्याँ फल होइ॥2
टिप्पणी:  ख-दौं बलै।
जे काटौ तो डहडहीसींचौं तौ कुमिलाइ।
इस गुणवंती बेलि काकुछ गुँण कहाँ न जाइ॥3
आँगणि बेलि अकासि फलअण ब्यावर का दूध।
ससा सींग की धूनहड़ीरमै बाँझ का पूत॥4
कबीर कड़ई बेलड़ीकड़वा ही फल होइ।
साँध नाँव तब पाइएजे बेलि बिछोहा होइ॥5
सींध भइ तब का भयाचहूँ दिसि फूटी बास।
अजहूँ बीज अंकूर हैभीऊगण की आस॥6806
टिप्पणी:  ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
सिंधि जू सहजै फुकि गईआगि लगी बन माँहि।
बीज बास दून्यँ जलेऊगण कौं कुछ नाँहि॥7


(59) अबिहड़ कौ अंग

कबीर साथी सो कियाजाके सुख दुख नहीं कोइ।
हिलि मिलि ह्नै करि खेलिस्यूँ कदे बिछोह न होइ॥1
कबीर सिरजनहार बिनमेरा हितू न कोइ।
गुण औगुण बिहड़ै नहींस्वारथ बंधी लोइ॥2
आदि मधि अरु अंत लौंअबिहड़ सदा अभंग।
कबीर उस करता कीसेवग तजै न संग॥3809

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