पूर्ण मोक्ष प्राप्ति के लिए उपदेश मंत्र साधना ( नाम दान)
पूर्ण परमात्मा ही पूजा के योग्य है। शास्त्र विधि अनुसार पूजा अति
उत्तम है। शास्त्रानुकूल पूजा से ही पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति अर्थात सतलोक
गमन सम्भव है। तीन मंत्रोें के नाम का जाप करने से ही पूर्ण मोक्ष होता है। सतगुरु अर्थात् तत्वदर्शी सन्त द्वारा अपने अधिकारी शिष्य को उसकी भक्ति एवं दृढता के स्तर के अनुसार तीन प्रकार के
मंत्रों (नाम दान) क्रमशः तीन बार उपदेश करने सेे समस्त पाप कर्म कटते हैं।
कबीर सागर में अमर
मूल बोध सागर पृष्ठ 265 -
तब कबीर अस कहेवे लीन्हा,ज्ञानभेद सकल कह दीन्हा ।।
धर्मदास मैं कहो बिचारी, जिहिते निबहै सब संसारी ।।
प्रथमहि शिष्य होय जो आई, ता कहैं पान देहु तुम भाई ।।1।।
जब देखहु तुम दृढ़ता ज्ञाना, ता कहैं कहु शब्द प्रवाना ।।2।।
शब्द मांहि जब निश्चय आवै, ता कहैं ज्ञान अगाध सुनावै ।।3।।
तब कबीर अस कहेवे लीन्हा,ज्ञानभेद सकल कह दीन्हा ।।
धर्मदास मैं कहो बिचारी, जिहिते निबहै सब संसारी ।।
प्रथमहि शिष्य होय जो आई, ता कहैं पान देहु तुम भाई ।।1।।
जब देखहु तुम दृढ़ता ज्ञाना, ता कहैं कहु शब्द प्रवाना ।।2।।
शब्द मांहि जब निश्चय आवै, ता कहैं ज्ञान अगाध सुनावै ।।3।।
दोबारा फिर समझाया है -
बालक सम जाकर है
ज्ञाना । तासों कहहू वचन प्रवाना ।।1।।
जा को सूक्ष्म ज्ञान है भाई । ता को स्मरन देहु लखाई ।।2।।
ज्ञान गम्य जा को पुनि होई । सार शब्द जा को कह सोई ।।3।।
जा को होए दिव्य ज्ञान परवेशा । ताको कहे तत्व ज्ञान उपदेशा ।।4।।
जा को सूक्ष्म ज्ञान है भाई । ता को स्मरन देहु लखाई ।।2।।
ज्ञान गम्य जा को पुनि होई । सार शब्द जा को कह सोई ।।3।।
जा को होए दिव्य ज्ञान परवेशा । ताको कहे तत्व ज्ञान उपदेशा ।।4।।
उपरोक्त वाणी से स्पष्ट है कि कड़िहार गुरु
पूर्ण संत तीसरी स्थिति में सार नाम प्रदान करता है
प्रथम बार में नाम जाप : ब्रह्म
गायत्री मन्त्र
मूलाधार चक्र में श्री गणेश जी का वास, स्वाद
चक्र में ब्रह्मा सावित्री जी का वास, नाभि चक्र में लक्ष्मी
विष्णु जी का वास, हृदय चक्र में शंकर पार्वती जी का वास,
कंठ चक्र में माता अष्टंगी का वास है और इन सब देवी-देवताओं के आदि
अनादि नाम मंत्र होते हैं इन मंत्रों के जाप से बाद मानव भक्ति करने के लायक बनता
है। सतगुरु गरीबदास जी अपनी वाणी में प्रमाण देते हैं कि:--
पांच नाम गुझ
गायत्री आत्म तत्व जगाओ। ऊँ किलियं हरियम् श्रीयम् सोहं ध्याओ।।
भावार्थ: पांच नाम जो गुझ गायत्री है। इनका जाप
करके आत्मा को जागृत करो ।
द्वितीय बार में नाम जाप : सतनाम
सतगुरु अर्थात् तत्वदर्शी सन्त दूसरी बार में
दो अक्षर का सतनाम जाप देते हैं जिनमें एक ऊँ और दूसरा तत् (जो कि गुप्त है उपदेशी
को बताया जाता है) जिनको स्वांस के साथ जाप किया जाता है।
कबीर, जब ही सत्यनाम हृदय धरो, भयो पाप को नाश।
मानो चिन्गारी अग्नि की, पड़ी पुराणे घास।।
मानो चिन्गारी अग्नि की, पड़ी पुराणे घास।।
भावार्थ:- यथार्थ साधना पूर्ण सन्त से प्राप्त करके सतनाम का स्मरण हृदय से करने से सर्व पाप (संचित तथा प्रारब्ध के पाप) ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे पुराने सूखे घास को अग्नि की एक चिंगारी जलाकर भस्म कर देती है।
तृतीय बार में नाम जाप : सारनाम
सतगुरु अर्थात् तत्वदर्शी सन्त तीसरी बार में
सारनाम देते हैं जो कि पूर्ण रूप से गुप्त है।
कबीर, कोटि
नाम संसार में , इनसे मुक्ति न हो।
सार नाम मुक्ति का दाता, वाको जाने न कोए।।
सार नाम मुक्ति का दाता, वाको जाने न कोए।।
तीन बार में नाम जाप का प्रमाण:--
ऊँ, तत्,
सत्, इति, निर्देशः,
ब्रह्मणः, त्रिविधः, स्मृतः,
ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च, विहिताः, पुरा ।।गीता 17.23।।
ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च, विहिताः, पुरा ।।गीता 17.23।।
अनुवाद: (ऊँ) ऊँ सांकेतिक
मंत्र ब्रह्म का (तत्) तत् सांकेतिक मंत्र परब्रह्म का (सत्) सत् सांकेतिक मंत्र पूर्णब्रह्म
का (इति) ऐसे यह (त्रिविधः) तीन प्रकार के (ब्रह्मणः) पूर्ण परमात्मा के नाम सुमरण
का (निर्देशः) संकेत (स्मृतः) कहा है (च) और (पुरा) सृष्टिके आदिकालमें
(ब्राह्मणाः) विद्वानों ने बताया कि (तेन) उसी पूर्ण परमात्मा ने (वेदाः) वेद (च)
तथा (यज्ञाः) यज्ञादि (विहिताः) रचे। (गीता 17.23)
सामवेद उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड
न. 5 श्लोक न. 8
मनीषिभिः पवते
पूव्र्यः कविर्नृभिर्यतः परि कोशां असिष्यदत्।
त्रितस्य नाम जनयन्मधु क्षरन्निन्द्रस्य वायुं सख्याय वर्धयन् ।।साम 3.5.8।।
त्रितस्य नाम जनयन्मधु क्षरन्निन्द्रस्य वायुं सख्याय वर्धयन् ।।साम 3.5.8।।
सन्धिछेदः-मनीषिभिः
पवते पूव्र्यः कविर् नृभिः यतः परि कोशान् असिष्यदत् त्रि तस्य नाम जनयन् मधु
क्षरनः न इन्द्रस्य वायुम् सख्याय वर्धयन्। ।।साम 3.5.8।।
शब्दार्थ (पूव्र्यः) सनातन अर्थात् अविनाशी
(कविर नृभिः) कबीर परमेश्वर मानव रूप धारण करके अर्थात् गुरु रूप में प्रकट होकर
(मनीषिभिः) हृदय से चाहने वाले श्रद्धा से भक्ति करने वाले भक्तात्मा को (त्रि)
तीन (नाम) मन्त्र अर्थात् नाम उपदेश देकर (पवते) पवित्रा करके (जनयन्) जन्म व
(क्षरनः) मृत्यु से (न) रहित करता है तथा (तस्य) उसके (वायुम्) प्राण अर्थात्
जीवन-स्वांसों को जो संस्कारवश गिनती के डाले हुए होते हैं को (कोशान्) अपने
भण्डार से (सख्याय) मित्राता के आधार से(परि) पूर्ण रूप से (वर्धयन्) बढ़ाता है।
(यतः) जिस कारण से (इन्द्रस्य) परमेश्वर के (मधु) वास्तविक आनन्द को (असिष्यदत्)
अपने आशीर्वाद प्रसाद से प्राप्त करवाता है। (साम 3.5.8)
भावार्थ:- इस मन्त्र में स्पष्ट
किया है कि पूर्ण परमात्मा कविर अर्थात् कबीर मानव शरीर में गुरु रूप में प्रकट
होकर प्रभु प्रेमीयों को तीन नाम का जाप देकर सत्य भक्ति कराता है तथा उस मित्र
भक्त को पवित्र करके अपने आर्शिवाद से पूर्ण परमात्मा प्राप्ति करके पूर्ण सुख
प्राप्त कराता है। साधक की आयु बढाता है। (साम 3.5.8)
साहिब कबीर स्वयं पूर्ण परमात्मा हैं। उन्होंने ही इस काल लोक में आकर अपनी जानकारी आप ही देनी पड़ी। क्योंकि काल ने साहिब कबीर का ज्ञान गुप्त कर रखा है। चारों वेदों, अठारह पुराणों, गीता जी व छः शास्त्रों में केवल ब्रह्म (काल ज्योति निंरजन) की उपासना की जानकारी है। सतपुरुष की उपासना का ज्ञान नहीं है।
शास्त्र विधि अनुसार पूजा को एक दिन भी तोङने पर कबीर
साहिब कहते हैं:--
कबीर,
सौ वर्ष तो गुरु की पूजा, एक दिन आनउपासी।
वो अपराधी
आत्मा,
पड़े काल की फांसी।
गरीब,
चातूर प्राणी चोर हैं,
मूढ मुग्ध हैं ठोठ।
संतों के नहीं काम के, इनकूं दे गल जोट।।
संतों के नहीं काम के, इनकूं दे गल जोट।।
सतनाम के प्रमाण के लिए कबीर पंथी
शब्दावली (पृष्ठ नं. 266.267) से सहाभार
अक्षर
आदि जगतमें, जाका सब विस्तार।
सतगुरु
दया सो पाइये, सतनाम निजसार।।112।।
सतगुरुकी
परतीति करि, जो सतनाम समाय।
हंस
जाय सतलोक को, यमको अमल मिटाय।।117।।
वह सतनाम-सारनाम उपासक सतलोक
चला जाता है। उसका पुनर्जन्म नहीं होता। हम सबने कबीर साहिब के ज्ञान को पुनः
पढ़ना चाहिए तथा सोचना चाहिए कि सतलोक प्राप्ति केवल कबीर साहिब के द्वारा दिए गए
मन्त्रा से होगी। जो मन्त्रा (नाम) साहिब कबीर ने धर्म दास जी को दिया। प्रमाण:--
कबीर पंथी शब्दावली (पृष्ठ नं.
284.285)
से सहाभार
(चैका आरती)
प्रथमहिं
मंदिर चैक पुराये । उत्तम आसन श्वेत बिछाये ।।
हंसा
पग आसन पर दीन्हा । सतकबीर कही कह लीन्हा ।।
नाम
प्रताप हंस पर छाजे । हंसहि भार रती नहिं लागे
।।
कहै
कबीर सुनो धर्मदासा । ऊँ-सोहं शब्द प्रगासा ।।
(कबीर शब्दावली से लेख समाप्त)
ऊपर के शब्द चैका आरती में
साहेब कबीर ने धर्मदास जी को सत्यनाम दिया। वह - ‘‘कहै कबीर सुनो धर्मदासा, ऊँ सोहं शब्द प्रगासा‘‘ यह ‘‘ऊँ-सोहं‘‘ सत्यनाम स्वयं
साहेब कबीर ने धर्मदास जी को दिया। इससे प्रमाणित है कि इस नाम के जाप से जीवात्मा
सार शब्द पाने योग्य बनेगी। यदि सार शब्द पाने के योग्य नहीं बना तथा सतगुरु ने सारशब्द नहीं दिया तो
आपका जीवन व्यर्थ गया। चूंकि सत्यनाम (ऊँ-सोहं) से आप कई मानव शरीर भी पा सकते हो।
स्वर्ग में भी वर्षों तक रह सकते हो, यह इतना उत्तम नाम है।
परंतु सार शब्द मिले बिना सतलोक प्राप्ति नहीं अर्थात् पूर्ण मुक्ति नहीं। ।।
सतनाम का गरीबदास जी महाराज की
वाणी में प्रमाण।
गरीबदास जी महाराज कहते हैं
कि:
ऊँ
सोहं पालड़ै रंग होरी हो, चैदह
भवन चढावै राम रंग होरी हो।
तीन
लोक पासंग धरै रंग होरी हो, तो न तुलै तुलाया
राम रंग होरी हो।।
इसका अर्थ है सत्यनाम
(ऊँ-सोहं) यदि भक्त आत्मा को मिल गया, वह
(स्वाँसांे से सुमरण होता है) एक स्वाँस-उस्वाँस भी इस मन्त्रा का जाप हो गया तो
उसकी कीमत इतनी है कि एक स्वाँस-उस्वाँस ऊँ-सोहं के मन्त्रा का एक जाप तराजू के एक
पलड़े में त्र दूसरे पलड़े में चैदह भुवनों को रख दें तथा तीन लोकों को तुला की
त्राुटि ठीक करने के लिए अर्थात् पलड़े समान करने के लिए रख दे तो भी एक स्वाँस का
(सत्यनाम) जाप की कीमत ज्यादा है अर्थात् बराबर भी नहीं है। पूर्ण संत से उपदेश
प्राप्त करके नाम जाप करने से लाभ होगा अर्थात् बिना गुरु बनाए स्वयं सत्यनाम जाप
व्यर्थ है। जैसे रजिस्ट्री पर तहसीलदार हस्ताक्षर करेगा तो काम बनेगा, कोई स्वयं ही हस्ताक्षर कर लेगा तो व्यर्थ है।
इसी का प्रमाण साहेब कबीर देते
हैं -
कबीर,
कहता हूँ कही जात
हूँ, कहूँ बजा कर ढोल।
स्वाँस जो खाली जात है,
तीन लोक का मोल।।
कबीर,
स्वाँस उस्वाँस में नाम जपो, व्यर्था स्वाँस
मत खोय।
न जाने इस स्वाँस को, आवन
होके न होय।।
इसलिए यदि गुरु मर्यादा में
रहते हुए सत्यनाम जपते-2 भक्त प्राण त्याग
जाता है, सारनाम प्राप्त नहीं हो पाता, उसको भी सांसारिक सुख सुविधाएँ, स्वर्ग प्राप्ति और
लगातार कई मनुष्य जन्म भी मिल सकते हैं और यदि पूर्ण संत न मिले तो फिर चैरासी लाख
जूनियों व नरक में चला जाता है। यदि अपना व्यवहार ठीक रखते हुए गुरु जी को साहेब
का रूप समझ कर आदर करते हुए सतनाम प्राप्त कर लेता है व प्राणी जीवन भर मन्त्रा का
जाप करता हुआ तथा गुरु वचन में चलता रहेगा। फिर गुरु जी सारनाम देगें। वह सत्यलोक
अवश्य जाएगा। जो कोई गुरु वचन नहीं मानेगा, नाम लेकर भी अपनी
चलाएगा, वह गुरु निन्दा करके नरक में जाएगा और गुरु द्रोही
हो जाएगा। गुरु द्रोही को कई युगों तक मानव शरीर नहीं मिलता। वह चैरासी लाख जूनियों
में भ्रमता रहता है।
कबीर साहिब ने सत्यनाम गरीबदास
जी छुड़ानी (हरियाणा) वाले, को दिया, घीसा संत जी (खेखड़े वाले) को दिया, नानक जी (तलवंडी जो अब पाकिस्तान में है) को दिया।
।। श्री नानक साहेब की वाणी
में सतनाम का प्रमाण।।
प्रमाण के लिए पंजाबी गुरु ग्रन्थ
साहिब के पृष्ठ नं. 59.60 पर सिरी राग
महला 1 (शब्द नं.11)
बिन
गुर प्रीति न ऊपजै हउमै मैलु न जाइ।।
सोहं
आपु पछाणीऐ सबदि भेदि पतीआइ।।
गुरमुखि
आपु पछाणीऐ अवर कि करे कराइ।।
मिलिआ
का किआ मेलीऐ सबदि मिले पतीआइ।।
मनमुखि
सोझी न पवै वीछुडि़ चोटा खाइ।।
नानक
दरु घरु एकु है अवरु न दूजी जाइ।।
नानक साहेब स्वयं प्रमाणित
करते हैं कि शब्दों (नामों) का भिन्न ज्ञान होने से विश्वास हुआ कि सच्चा नाम ‘सोहं‘ है। यही सतनाम कहलाता है। पूर्ण गुरु के शिष्य
की भ्रमणा मिट जाती है। वह फिर और कोई करनी (साधना) नहीं करता। मनमुखी (मनमानी
साधना करने वाला) साधक या जिसको पूरा संत नहीं मिला वह अधूरे गुरु का शिष्य पूर्ण
ज्ञान नहीं होने से जन्म-मरण लख चैरासी के कष्टों को उठाएगा। नानक साहेब कहते हैं
कि पूर्ण परमात्मा कुल का मालिक एक अकाल पुरुष है तथा एक घर (स्थान) सतलोक है और
दूजी कोई वस्तु नहीं है।
प्राण
संगली-हिन्दी - के पृष्ठ नं. 84 पर राग भैरव
- महला 1 - पौड़ी नं. 32
साध
संगति मिल ज्ञानु प्रगासै। साध संगति मिल कवल बिगासै।।
साध
संगति मिलिआ मनु माना। न मैं नाह ऊँ-सोहं जाना।।
सगल
भवन महि एको जोति। सतिगुर पाया सहज सरोत।।
नानक
किलविष काट तहाँ ही। सहजि मिलै अंमिृत सीचाही।।32।।
नानक साहेब कह रहे हैं कि
नामों में नाम ‘‘ऊँ-सोहं‘‘ यही सतनाम है। इसी से पाप कटते हैं। (किलविष कटे
ताहीं) सहज समाधी से अमृत (पूर्ण परमात्मा का पूर्ण आनन्द) प्राप्त हुआ अर्थात्
केवल ऊँ-सोहं के जाप से पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति संभव है अन्यथा नहीं।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ
नं. 3 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 17
पूर्ब
फिरि पच्छम कौ तानै। अजपा जाप जपै मनु मानै।।
अनहत
सुरति रहै लिवलाय। कहु नानक पद पिंड समाय।।17।।
नानक साहेब उसी ‘‘ऊँ-सोहं‘‘ के नाम के जाप को अजपा जाप कह रहे हैं।
इसी का प्रमाण कबीर साहेब तथा गरीबदास जी महाराज व धर्मदास जी ने दिया है। क्योंकि
यह सर्व पुण्य आत्मा साहेब कबीर के शिष्य थे।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ
नं. 4 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 28
सोहं
हंसा जाँ का जापु। इहु जपु जपै बढ़ै परतापु।।
अंमि
न डूबै अगनि न जरै। नानक तिंह घरि बासा करै।।28।।
इसमें नानक साहेब ने कहा है कि
हे हंस (भक्त) आत्मा उस परमात्मा का जाप सोहं है। इस जाप के जपने से बहुत लाभ है।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ
नं. 5 पर गौड़ी रंगमाला जोग निधि - महला 1 - पौड़ी नं. 38
सोहं
हंसा जपु बिन माला। तहिं रचिआ जहिं केवल बाला।।
गुर
मिलि नीरहिं नीर समाना। तब नानक मनूआ गगनि समाना।।38।।
नानक साहेब कह रहे हैं कि हे
हंस (भक्त) आत्मा ‘‘सोहं‘‘ जाप स्वांस से जप, माला की आवश्यकता नहीं है। मैं
गुरु जी के मिलने पर परमात्मा में समाया अर्थात् दर्शन पाया। तब यह मेरा मन सहज
समाधी द्वारा आकाश में पूर्ण परमात्मा के निजधाम सतलोक (सच्चखण्ड) में पूर्ण परमात्मा
के चरणों में समाया अर्थात् लीन रहने लगा।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ
नं. 71 पर रामकली - महला 1 - पौड़ी नं. 42
अैसा
संम्रथु को नही किसु पहि करउँ बिनंतू
पूरा
सतिगुर सेव तूँ गुरमति सोहं मंतू42।।
प्राण संगली-हिन्दी - के पृष्ठ
नं. 127 पर रामकली - महला 1 - पौड़ी नं. 27
बिन
संजम बैराग न पाया। भरमतू फिरिआ जन्म गवाया।।
क्या
होया जो औध बधाई। क्या होया जु बिभूति चढ़ाई।।
क्या
होया जु सिंगी बजाई। क्या होया जु नाद बजाई।।
क्या
होया जु कनूआ फूटा। क्या होया जु ग्रहिते छूटा।।
क्या
होया जु उश्न शीत सहै। क्या होया जु बन खंड रहै।।
क्या
होया जो मोनी होता। क्या होया जो बक बक करता।।
सोहं
जाप जपै दिन राता। मन ते त्यागै दुबिधा भ्रांता।।
आवत
सोधै जावत बिचारै। नौंदर मूँदै तषते मारै।।
दे
प्रदक्खणाँ दस्वें चढ़ै। उस नगरी सभ सौझी पड़ै।।
त्रौगुण
त्याग चैथै अनुरागी। नानक कहै सोई बैरागी।।27।।
नानक साहेब कहते हैं कि जिनके
पास सतनाम (सोहं जाप) नहीं है वे चाहे जटा (औध) बढाओ,
चाहे राख शरीर पर लगाओ, चाहे सिरंगी बाजा बजा
कर जगत को रिझाओ, चाहे कान पड़वाओ, चाहे
घर त्याग जाओ, चाहे निःवस्त्रा रह कर अवधूत बन कर
गर्मी-सर्दी सहन करो, चाहे बनखण्ड रहो, मौन रखो, चाहे बक-बक करो, उनकी
मुक्ति नहीं। केवल सोहं का जाप दिन-रात करना चाहिए तथा मन की दुविधा त्याग कर
स्वांस को आते तथा जाते नाम के साथ जाप करें। तब दसवें द्वार (सुषमना) में प्रवेश
कर तथा तीनों गुणों (रजगुण-ब्रह्मा, सतगुण-विष्णु, तमगुण-शिव) की भक्ति त्याग कर चैथी अर्थात् पूर्णब्रह्म की साधना करें
फिर पूर्ण मुक्त हो जाओगे।
पंजाबी गुरु ग्रन्थ साहिब के
पृष्ठ नं. 1092.1093 पर राग मारू महला 1
- पौड़ी नं. 1
हउमै
करी ता तू नाही तू होवहि हउ नाहि।।
बूझहु
गिआनी बूझणा एह अकथ कथा मन माहि।।
बिनु
गुर ततू न पाईऐ अलखु वसै सभ माहि।।
सतिगुरु
मिलै त जाणीऐ जां सबदु वसै मन माहि।।
आपु
गइआ भ्रमु भउ गइआ जनम मरन दुख जाहि।।
गुरमति
अलखु लखाईऐ ऊतम मति तराहि।।
नानक
सोहं हंसा जपु जापहु त्रिभवण तिसै समाहि।।
जो इन सर्व संतों की वाणी
(ग्रन्थों) में प्रमाण है तथा कबीर पंथी शब्दावली में सत्यनाम ‘ऊँ-सोहं‘ के जाप का प्रमाण है। वह भी पूरे संत जिसको
नाम देने का अधिकार हो, से ही लेना चाहिए।
प्रमाण:- कबीर पंथी शब्दावली (पृष्ठ
नं. 220)
से सहाभार
बहुत
गुरु संसार रहित, घर कोइ न बतावै।
आपन
स्वारथ लागि, सीस पर भार चढावै।।
सार
शब्द चीन्हे नहीं, बीचहिं परे भुलाय।
सत्त
सुकृत चीन्हे बिना, सब जग काल चबाय।।18।।
यह
लीला निर्वान, भेद कोइ बिरला जानै।
सब
जग भरमें डार, मूल कोइ बिरला माने।।
मूल
नाम सत पुरुष का, पुहुप द्वीपमें
बास।
सतगुरु
मिलैं तो पाइये, पूरन प्रेम बिलास।।19।।
नाम
सनेही होय, दूत जम निकट न आवै।
परमतत्त्व
पहिचानि,
सत्त साहेब गुन गावै।।
अजर
अमर विनसे नहीं, सुखसागरमें बास।
केवल
नाम कबीर है , गावे धनिधर्मदास।।20।।
धर्मदास जी कहते हैं कि संसार
में गुरुओं की कमी नहीं। मान बड़ाई, स्वार्थ
के लिए गुरु बन कर अपने सिर पर भार धर रहे हैं। सार शब्द जब तक प्राप्त नहीं होता
वह गुरु नरक में जाएगा। जिसे गुरुदेव जी ने नाम-दान देने की अनुमति नहीं दे रखी
तथा अपने आप गुरु बन कर नाम देता है वह काल का दूत है। काल के मुख में ले जाएगा।
परमात्मा का मुख्य नाम एक ही है उसका भेद किसी बिरले को है। बाकी सब डार
(देवी-देवताओं, ब्रह्मा, विष्णु,
महेश, माता, ब्रह्म) पर
ही लटक रहे हैं।
समै
- कबीर,
वेद हमारा भेद है, हम नहीं वेदों माहिं।
जौन
वेद में हम रहैं, वो वेद जानते
नाहीं।
रमैनी
36
-
घर
घर होय पुरुषकी सेवा। पुरुष निरंजन कहे न भेवा।।
ताकी
भगति करे संसारा। नर नारी मिल करें पुकारा।।
सनकादिक
नारद मुख गावें। ब्रह्मा विष्णु महेश्वर ध्यावें।
मुनी
व्यास पारासर ज्ञानी। प्रहलाद और बिभीषण ध्यानी।।
द्वादस
भगत भगती सो रांचे। दे तारी नर नारी नाचे।।
जुग
जुग भगतभये बहुतेरे। सबे परे काल के घेरे।।
काहू
भगत न रामहिं पाया। भगती करत सर्व जन्म गंवाया।।
सर्व प्राणी भगवान काल की
साधना कर रहे हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी भजन करते हैं परंतु किसी को भी पूर्ण परमात्मा (राम) नहीं मिला।
काल साधना करके जन्म खो दिया।
(कबीर पंथी शब्दावली
के पृष्ठ नं. 279ए 294ए 305 व 498 से सहाभार)
सुकृत
नाम अगुवा भये, सत्तनामकी डोर।
मूल
शब्द पर बैठिके, निरखो वस्तू अंजोर।।
साहब
कबीर कहि दीहल, सुन सुकृत चितलाय।
पुहुप
दीप पर हंस है, बहुर न आवे जाय।।26।।
अगम
चरित चेतावनी, अधर अनूपम धाम।
अजर
अमर है सोई, सेवही निर्गुन नाम।।
मूल
बांध गढ साजहू, आपा मेट गढ लेहु।
गुरुके
शब्द गढ तोरहू, सत्त शब्द मन देहु।।
सत्तनाम
है सबते न्यारा। निर्गुन सर्गुन शब्द पसारा।।
निर्गुन
बीज सर्गुन फल फूला। साखा ज्ञान नाम है मूला।।8।।
मूल
गहेते सब सुख पावै। डाल पातमें सर्वस गँवावै।।
सतगुरु
कही नाम पहिचानी। निर्गुन सर्गुन भेद बखानी।।9।।
दोहा
- नाम सत्त संसारमें, और सकल है पोच।
कहना
सुनना देखना, करना सोच असोच।।3।।
सबही
झूठ झूठ कर जाना। सत्त नामको सत कर माना।।
निस
बासर इक पल नहिं न्यारा। जाने सतगुरु जानन हारा।।10।।
सुरत
निरत ले राखै जहवाँ। पहुँचै अजर अमर घर तहवाँ।।
सत्तलोकको
देय पयाना। चार मुक्ति पावै निर्वाना।।11।।
दोहा
- सतलोकै सब लोक पति, सदा समीप प्रमान।
परमजोतसो
जोत मिलि,
प्रेम सरूप समान।।5।।
अंस
नामतें फिर फिर आवै। पूर्ण नाम परमपद पावै।।
नहिं
आवै नहिं जाय सो प्रानी। सत्यनामकी जेहि गति जानी।।12।।
सत्तनाममें
रहै समाई। जुग जुग राज करै अधिकाई।।
सतलोकमें
जाय समाना। सत पुरुषसों भया मिलाना।।13।।
हंस
सुजान हंसही पावा। जोग संतायन भया मिलावा।।
हंस
सुघर दरस दिखलावा। जनम जनमकी भूख मिटावा।।14।।
सुरत
सुहागिन भइ आगे ठाढी। प्रेम सुभाव प्रीति अति बाढी।।
पुहुपदीपमें
जाय समाना। बास सुवास चहूँ दिस आना।।15।।
दोहा
- सुख सागर सुख बिलसई, मानसरोवर न्हाय।
कोट
काम-सी कामिनी, देखत नैन अघाय।।6।।
सुरति
नाम सुनै जब काना। हंसा पावै पद निर्बाना।।
अब
तो कृपा करी गुरु देवा। तातें सुफल भई सब सेवा।।16।।
नाम
दान अब लेय सुभागी। सतनाम पावै बड़ भागी।
मन
बचन कर्म चित्त निश्चय राखै। गुरुके शब्द अमीरस चाखै।।17।।
आदि
अंत वहँ भेदै पावै। पवन आड़में ले बैठावै।।
सब
जग झूठ नाम इक साँचा। श्वास श्वासमें साचा राचा।।18।।
झूठा
जान जगत सुख भोगा। साँचा साधू नाम सँजोगा।।
यह
तन माटी इन्द्री छारी। सतनाम सांचा अधिकारी।।19।।
नाम
प्रताप जुगै जुग भाखाी। साध संत ले हिरदे राखी।।
कहँ
कबीर सुन धर्मनि नागर। सत्यनाम है जगत उजागर।।20।।
कबीर साहेब अपने परम शिष्य
धर्मदास जी को समझा रहे हैं कि सतनाम सब नामों से न्यारा है और पूर्ण परमात्मा की
साधना से जीव सुखी होगा। (डाल-पत्तों) काल, ब्रह्म
तथा तीनों देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु,
महेश) व देवी-देवताओं की साधना से जीवन व्यर्थ जाएगा। केवल सतनाम व सारनाम
से मुक्ति है। बाकी साधना जैसे कहना (कथा करना), सुनना (कान
बंद करके धुनि सुनना), सोच (चिन्तन करना), असोच (व्यर्थ) है। एक सतनाम को त्याग कर यह साधना केवल लिपा-पोती है
अर्थात् दिखावटी है। अंश नाम (अधूरे मन्त्रा) से जीव जन्म-मरण व चैरासी लाख जूनियों
में ही भटकता रहेगा। केवल पूर्ण नाम (सतनाम व सारनाम) से जीव मुक्ति पाएगा। फिर पूर्ण
गुरु (सुरति नाम सुनै जब काना) अपने शिष्य को सारशब्द प्राप्त करवाएगा। तब यह जीव निर्वाण
ब्रह्म अर्थात् पूर्ण परमात्मा को प्राप्त होगा। (पृष्ठ नं. 38.39)
शब्द
हमारा आदि का, सुनि मत जाहु सरख।
जो
चाहो निज तत्व को, शब्दे लेहु परख।।9।।
शब्द
विना सुरति आँधरी, कहो कहाँको जाय।
द्वार
न पावे शब्द का, फिर फिर भटका खाय।।10।।
शब्द
शब्द बहुअन्तरा, सार शब्द मथि लीजे।
कहँ
कबीर जहँ सार शब्द नहीं, धिग जीवन सो जीजे।।11।।
सार
शब्द पाये बिना, जीवहिं चैन न होय।
फन्द
काल जेहि लखि पडे, सार शब्द कहि सोय।।12।।
सतगुरु
शब्द प्रमान है, कह्यो सो बारम्बार।
धर्मनिते
सतगुरु कहै, नहिं बिनु शब्द उबार।।13।।
धर्मनि
सार भेद अव खोलौं। शब्दस्वरूपी घटघट बोलौं।।
शब्दहिं
गहे सो पंथ चलावै। बिना शब्द नहिं मारग पावै।।
प्रगटे
वचन चूरामनि अंशू। शब्द रूप सब जगत प्रशंसू।।
शब्दे
पुरुष शब्द गुरुराई। विना शब्द नहिं जिवमुकताई।।
जेहिते
मुक्त जीव हो भाई। मुकतामनि सो नाम कहाई।।
कबीर साहेब कह रहे हैं कि जो
सारनाम आपको दिया जाता है यही नाम सदा का है परंतु काल भगवान ने इसे छुपा रखा है।
अब इस नाम को सुनकर खिसक (नाम त्याग मत जाना) मत जाना। फिर आपको सार शब्द प्राप्त
कराया जाएगा। यदि सार शब्द प्राप्त नहीं हुआ तो उसका जीवन धिक्कार है और जो मनमुखी
गुरु बने फिरते हैं वे नरक के भागी हांेगे। जिस नाम से जीव मुक्त होते हैं उसको
मुक्तामनी अर्थात् जीव मुकताने वाली मणी (जड़ी) कहते हैं,
वही सार नाम कहलाता है। भावार्थ है कि जिस सारनाम से जीव की मुक्ति
हो उसे मुक्ता मणी समझो। ऊपर के शब्दों में साहेब कबीर प्रमाण दे रहे हैं कि यदि
सार शब्द गुरु जी से प्राप्त नहीं किया उसका जन्म धिक्कार है। सार नाम को सतसुकृत
नाम भी कहते हैं। वह पूर्ण गुरु के पास ही होता
है जिसको गुरु ने आगे नाम दान
की आज्ञा दे रखी हो। नाम-नाम में बहुत अन्तर है। सत्यनाम का जहाँ तक काम है वह
अपने स्थान पर सही है। केवल सत्यनाम से जीव का काल लोक से बन्धन नहीं छूटेगा,
जब तक सार शब्द नहीं मिलेगा। सत्यनाम के जाप (अभ्यास) बिना सारनाम
काम नहीं करेगा।
जैसे हैंड पम्प (पानी का नलका)
लगाना है। उसकी तीन स्थिति हैं। प्रथम पाईप तथा बोकी (पाईप को जमीन तक पहुँचाने का यन्त्रा) खरीद कर लाने के लिए पैसे वह नाम है
- ब्रह्म गायत्री मन्त्र। जिसकी कमाई से ‘‘सत्यनाम‘‘ की प्राप्ति होवैगी। वही साहेब कबीर व गरीबदास जी ने अपनी वाणी में
प्रमाणित किया है --
ज्ञान
सागर अति उजागर, निर्विकार निरंजनं।
ब्रह्मज्ञानी
महाध्यानी, सत सुकृत दुःख भंजनं।1।
मूल
चक्र गणेश बासा, रक्त वर्ण जहां जानिये।
किलियं
जाप कुलीन तज सब, शब्द हमारा मानिये।2।
स्वाद
चक्र ब्रह्मादि बासा, जहां सावित्राी
ब्रह्मा रहैं।
ओ3म जाप जपंत हंसा, ज्ञान जोग सतगुरु कहैं।3।
नाभि
कमल में विष्णु विशम्भर, जहां लक्ष्मी संग
बास है।
हरियं
जाप जपन्त हंसा, जानत बिरला दास है।4।
हृदय
कमल महादेव देवं, सती पार्वती संग
है।
सोहं
जाप जपंत हंसा, ज्ञान जोग भल रंग है।5।
कंठ
कमल में बसै अविद्या, ज्ञान ध्यान बुद्धि
नासही।
लील
चक्र मध्य काल कर्मम्, आवत दम कुं फांसही।6।
त्रिकुटी
कमल परम हंस पूर्ण, सतगुरु समरथ आप है।
मन
पौना सम सिंध मेलो, सुरति निरति का जाप
है।7।
सहंस
कमल दल आप साहिब, ज्यूं फूलन मध्य
गन्ध है।
पूर
रह्या जगदीश जोगी, सत् समरथ निर्बन्ध
है।।8।।
सत
सुकृत अविगत कबीर
ओ3म् ओ3म् ओ3म् ओ3म्
किलियम्
किलियम् किलियम् किलियम्
हरियम्
हरियम् हरियम् हरियम्
श्रीयम्
श्रीयम् श्रीयम् श्रीयम्
सोहं
सोहं सोहं सोहं
सत्यम्
सत्यम् सत्यम् सत्यम्
अभय
पद गायत्री पठल पठन्ते, अर्थ धर्म काम
मोक्ष पूर्ण फल लभन्ते।
यह मानसिक जाप गुरु जी से लेकर
करना होता है। इसकी कमाई से नलका लगाने का सामान पाईप व बोकी (सत्यनाम - ऊँ-सोहं)
प्राप्त होगा। फिर (सत्यनाम का जाप करना है) स्वाँस-उस्वाँस रूपी बोकी एक बार ऊपर
उठाते हैं फिर बोकी को जमीन में मारते हैं। ऐसा बार-2 करते रहते हैं तथा पाईप को साथ-2 नीचे पहुँचाते रहते
हैं। जब पानी तक पहुँच गए फिर रूक जाते हैं। यहाँ तक सत्यनाम का काम है। यदि ऊपर
पानी निकालने वाली मशीन (हैंड पम्प) नहीं लगाई तो वह पानी तक पहुँचाया हुआ पाईप
व्यर्थ है। यदि सत्यनाम का जाप मिला हुआ वह भी पूर्ण गुरु द्वारा कुछ काम अवश्य
करेगा परंतु पूर्ण लाभ (उदे्श्य) सार नाम से प्राप्त होगा।
गरीब,
सतगुरु सोहं नाम दे, गुझ बिरज विस्तार।
बिन
सोहं सिझे नहीं, मूल मन्त्रा निजसार।।
मूल मन्त्र यहाँ पर सारनाम को
कहा है तथा सोहं के बिना सार शब्द भी कामयाब नहीं है।
इसलिए कबीर साहेब कहते हैं --
कबीर
सोहं सोहं जप मुए, वृथा जन्म गवाया।
सार
शब्द मुक्ति का दाता, जाका भेद नहीं
पाया।।
कबीर
जो जन होए जौहरी, सो धन ले विलगाय।
सोहं
सोहं जपि मुए, मिथ्या जन्म गंवाया।।
कबीर
कोटि नाम संसार में, इनसे मुक्ति न होय।
आदि
नाम (सारनाम) गुरु जाप है, बुझै बिरला कोय।।
विशेष
प्रमाण के लिए कबीर पंथी शब्दावली पृष्ठ नं. 51
ऊँ-सोहं,
सोहं सोई। ऊँ - सोहं भजो नर लोई।।
धर्मदास को सत्य शब्द
(सत्यनाम) सुनाया सतगुरु सत्य कबीर। कबीर साहेब ने धर्मदास को सत्य शब्द (सत्यनाम)
दिया वह ‘ऊँ-सोहं‘ है तथा इसका भजन करना। फिर बाद में सार
शब्द दिया और कहा कि
‘‘धर्मदास तोहे लाख
दोहाई। सार शब्द कहीं बाहर न जाई।।‘‘
यह इतना कीमती नाम है कि किसी
काल के उपासक के हाथ न लग जाए।
इसलिए गरीबदास जी ने कहा है -
गरीब,
सोहं शब्द हम जग में लाए, सार शब्द हम गुप्त
छुपाए।।
कबीर साहेब कहते हैं - इसी
शब्द रमैणी में -
शब्द-शब्द
बहु अंतरा, सार शब्द मथि लीजै।
कहैं
कबीर जहाँ सार शब्द नहीं, धिक जीवन सो जीजै।।
घट रामायण के रचयिता आदरणीय तुलसीदास साहेब जी हाथ रस वाले
ने
स्वयं इन्हीं पाँचों नामों को काल के नाम कहा है तथा सत्यनाम तथा आदिनाम (सारनाम)
बिना सत्यलोक प्राप्ति नहीं हो सकती, कहा
है।
पाँचों नाम काल के
जानौ तब दानी मन संका आनौ।
सुरति निरत लै लोक सिधाऊँ, आदिनाम ले काल गिराऊँ।
सतनाम ले जीव उबारी, अस चल जाऊँ पुरुष दरबारी।।
सुरति निरत लै लोक सिधाऊँ, आदिनाम ले काल गिराऊँ।
सतनाम ले जीव उबारी, अस चल जाऊँ पुरुष दरबारी।।
इन्हीं
पाँचों नामों को कबीर साहिब ने भी काल साधना के बताए हैं। इन्हीं पाँचों नामों को
लेकर बड़े-2 भक्तजन समूह इकत्रित हो गए जो
मुक्त नहीं हो सकते और कबीर साहेब ने कहा है कि इनसे न्यारा नाम सत्यनाम है उसका
जाप पूरे अधिकारी गुरु से लेकर पूरा जीवन गुरु मर्यादा में रहते हुए सार नाम की
प्राप्ति पूरे गुरु से करनी चाहिए।
प्रथम नाम, सतनाम, सारनाम को क्रमशः (एक के बाद दूसरा
क्रमवार) तत्वदर्शी संत से प्राप्त करो।
तत्, विद्धि, प्रणिपातेन, परिप्रश्नेन, सेवया,
उपदेक्ष्यन्ति, ते, ज्ञानम्, ज्ञानिनः, तत्त्वदर्शिनः
।।गीता 4.34।।
अनुवाद: (तत्) तत्वज्ञान को (विद्धि) समझ उन पूर्ण परमात्मा
के वास्तविक ज्ञान व समाधान को जानने वाले संत को (प्रणिपातेन) भलीभाँति दण्डवत्
प्रणाम करनेसे उनकी (सेवया) सेवा करनेसे और कपट छोड़कर (परिप्रश्नेन) सरलतापूर्वक
प्रश्न करनेसे (ते) वे (तत्वदर्शिनः) पूर्ण ब्रह्म को तत्व से जानने वाले अर्थात्
तत्वदर्शी (ज्ञानिनः) ज्ञानी महात्मा तुझे उस (ज्ञानम्) तत्वज्ञानका
(उपदेक्ष्यन्ति) उपदेश करेंगे। (गीता 4.34)
परम पूज्य कबीर साहेब की अमृतवाणी
संतो शब्दई शब्द
बखाना।।टेक।।
शब्द फांस फँसा सब कोई शब्द नहीं पहचाना।।
प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते पाँचै शब्द उचारा।
शब्द फांस फँसा सब कोई शब्द नहीं पहचाना।।
प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते पाँचै शब्द उचारा।
सोहं, निरंजन,
रंरकार, शक्ति और ओंकारा।।
पाँचै तत्व प्रकृति तीनों गुण उपजाया।
पाँचै तत्व प्रकृति तीनों गुण उपजाया।
लोक द्वीप चारों
खान चैरासी लख बनाया।।
शब्दइ काल कलंदर कहिये शब्दइ भर्म भुलाया।।
शब्दइ काल कलंदर कहिये शब्दइ भर्म भुलाया।।
पाँच शब्द की आशा
में सर्वस मूल गंवाया।।
शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के बैठे मूंदे द्वारा।
शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के बैठे मूंदे द्वारा।
शब्दइ निरगुण शब्दइ
सरगुण शब्दइ वेद पुकारा।।
शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर बैठ करे स्थाना।
शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर बैठ करे स्थाना।
ज्ञानी योगी पंडित
औ सिद्ध शब्द में उरझाना।।
पाँचइ शब्द पाँच हैं मुद्रा काया बीच ठिकाना।
पाँचइ शब्द पाँच हैं मुद्रा काया बीच ठिकाना।
जो जिहसंक आराधन
करता सो तिहि करत बखाना।।
शब्द निरंजन चांचरी मुद्रा है नैनन के माँही।
शब्द निरंजन चांचरी मुद्रा है नैनन के माँही।
ताको जाने गोरख
योगी महा तेज तप माँही।।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना।
व्यास देव ताहि
पहिचाना चांद सूर्य तिहि जाना।।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफा स्थाना।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफा स्थाना।
शुकदेव मुनी ताहि
पहिचाना सुन अनहद को काना।।
शब्द रंरकार खेचरी मुद्रा दसवें द्वार ठिकाना।
शब्द रंरकार खेचरी मुद्रा दसवें द्वार ठिकाना।
ब्रह्मा विष्णु
महेश आदि लो रंरकार पहिचाना।।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे आकाश सनेही।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे आकाश सनेही।
झिलमिल झिलमिल जोत
दिखावे जाने जनक विदेही।।
पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रा सो निश्चय कर जाना।
पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रा सो निश्चय कर जाना।
आगे पुरुष पुरान
निःअक्षर तिनकी खबर न जाना।।
नौ नाथ चैरासी सिद्धि लो पाँच शब्द में अटके।
नौ नाथ चैरासी सिद्धि लो पाँच शब्द में अटके।
मुद्रा साध रहे घट
भीतर फिर ओंधे मुख लटके।।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक द्वीप यमजाला।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक द्वीप यमजाला।
कहैं कबीर अक्षर के
आगे निःअक्षर का उजियाला।।
जैसा कि इस शब्द ‘‘संतो
शब्दई शब्द बखाना‘‘ में लिखा है कि सभी संत जन शब्द (नाम) की
महिमा सुनाते हैं। पूर्णब्रह्म कबीर साहिब जी ने बताया है कि शब्द सतपुरुष का भी
है जो कि सतपुरुष का प्रतीक है व ज्योति निरंजन(काल) का प्रतीक भी शब्द ही है।
जैसे शब्द ज्योति निरंजन यह चांचरी मुद्रा को प्राप्त करवाता है इसको गोरख योगी ने
बहुत अधिक तप करके प्राप्त किया जो कि आम(साधारण) व्यक्ति के बस की बात नहीं है और
फिर गोरख नाथ काल तक ही साधना करके सिद्ध बन गए। मुक्त नहीं हो पाए। जब कबीर साहिब
ने सत्यनाम तथा सार नाम दिया तब काल से गोरख नाथ जी का छुटकारा हुआ। इसीलिए ज्योति
निरंजन के ऊँ नाम का जाप करने वाले काल जाल से नहीं बच सकते अर्थात् सत्यलोक नहीं
जा सकते। शब्द ओंकार (ऊँ) का जाप करने से भूंचरी मुद्रा की स्थिति में साधक आ जाता
हे। जो कि वेद व्यास ने साधना की और काल जाल में ही रहा। सोहं नाम के जाप से
अगोचरी मुद्रा की स्थिति हो जाती है और काल के लोक में बनी भंवर गुफा में पहुँच
जाते हैं। जिसकी साधना सुखदेव ऋषि ने की और केवल श्री विष्णु जी के लोक में बने
स्वर्ग तक पहुँचा। शब्द रंरकार खैचरी मुद्रा दसमें द्वार(सुष्मणा) तक पहुँच जाते हैं।
ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों ने ररंकार को ही सत्य मान कर काल के जाल में उलझे रहे।
शक्ति (श्रीयम्) शब्द ये उनमनी मुद्रा को प्राप्त करवा देता है जिसको राजा जनक ने
प्राप्त किया परन्तु मुक्ति नहीं हुई। कई संतों ने पाँच नामों में शक्ति की जगह
सत्यनाम जोड़ दिया है जो कि सत्यनाम कोई जाप नहीं है। ये तो सच्चे नाम की तरफ ईशारा
है जैसे सत्यलोक को सच्च खण्ड भी कहते हैं एैसे ही सत्यनाम व सच्चा नाम है। केवल
सत्यनाम-सत्यनाम जाप करने का नहीं है। इन पाँच शब्दों की साधना करने वाले नौ नाथ
तथा चैरासी सिद्ध भी इन्हीं तक सीमित रहे तथा शरीर में (घट में) ही धुनि सुनकर
आनन्द लेते रहे। वास्तविक सत्यलोक स्थान तो शरीर (पिण्ड) से (अण्ड) ब्रह्मण्ड से
पार है, इसलिए फिर माता के गर्भ में आए (उलटे लटके) अर्थात्
जन्म-मृत्यु का कष्ट समाप्त नहीं हुआ। जो भी उपलब्धि (घट) शरीर में होगी वह तो काल
(ब्रह्म) तक की ही है, क्योंकि पूर्ण परमात्मा का निज स्थान
(सत्यलोक) तथा उसी के शरीर का प्रकाश तो परब्रह्म आदि से भी अधिक तथा बहुत
आगे(दूर) है। उसके लिए तो पूर्ण संत ही पूरी साधना बताएगा जो पाँच नामों (शब्दों)
से भिन्न है।
संत गरीबदास जी महाराज की वाणी में नाम का महत्व:--
नाम अभैपद ऊंचा
संतों, नाम
अभैपद ऊंचा।
राम दुहाई साच कहत
हूं, सतगुरु
से पूछा।।
कहै कबीर पुरुष बरियामं, गरीबदास एक नौका नामं।।
नाम निरंजन नीका संतों, नाम निरंजन नीका।
तीर्थ व्रत थोथरे लागे, जप तप संजम फीका।।
गज तुरक पालकी अर्था, नाम बिना सब दानं व्यर्था।
कबीर, नाम गहे सो संत सुजाना, नाम बिना जग उरझाना।
ताहि ना जाने ये संसारा, नाम बिना सब जम के चारा।।
कहै कबीर पुरुष बरियामं, गरीबदास एक नौका नामं।।
नाम निरंजन नीका संतों, नाम निरंजन नीका।
तीर्थ व्रत थोथरे लागे, जप तप संजम फीका।।
गज तुरक पालकी अर्था, नाम बिना सब दानं व्यर्था।
कबीर, नाम गहे सो संत सुजाना, नाम बिना जग उरझाना।
ताहि ना जाने ये संसारा, नाम बिना सब जम के चारा।।
संत नानक साहेब जी की वाणी में नाम का महत्व:--
नानक नाम चढ़दी कलां, तेरे
भाणे सबदा भला।
नानक दुःखिया सब संसार, सुखिया सोय नाम आधार।।
जाप ताप ज्ञान सब ध्यान, षट शास्त्रा सिमरत व्याखान।
जोग अभ्यास कर्म धर्म सब क्रिया, सगल त्यागवण मध्य फिरिया।
अनेक प्रकार किए बहुत यत्ना, दान पूण्य होमै बहु रत्ना।
शीश कटाये होमै कर राति, व्रत नेम करे बहु भांति।।
नहीं तुल्य राम नाम विचार, नानक गुरुमुख नाम जपिये एक बार।।
नानक दुःखिया सब संसार, सुखिया सोय नाम आधार।।
जाप ताप ज्ञान सब ध्यान, षट शास्त्रा सिमरत व्याखान।
जोग अभ्यास कर्म धर्म सब क्रिया, सगल त्यागवण मध्य फिरिया।
अनेक प्रकार किए बहुत यत्ना, दान पूण्य होमै बहु रत्ना।
शीश कटाये होमै कर राति, व्रत नेम करे बहु भांति।।
नहीं तुल्य राम नाम विचार, नानक गुरुमुख नाम जपिये एक बार।।
संत गरीबदास जी
महाराज की अमृत वाणी में स्वांस के नाम का प्रमाण:--
गरीब, स्वांसा
पारस भेद हमारा, जो खोजे सो उतरे पारा।
स्वांसा पारा आदि निशानी, जो खोजे सो होए दरबानी।
स्वांसा ही में सार पद, पद में स्वांसा सार।
स्वांसा पारा आदि निशानी, जो खोजे सो होए दरबानी।
स्वांसा ही में सार पद, पद में स्वांसा सार।
दम देही का खोज करो, आवागमन
निवार।।
गरीब, स्वांस सुरति के मध्य है, न्यारा कदे नहीं होय।
सतगुरु साक्षी भूत कूं, राखो सुरति समोय।।
गरीब, चार पदार्थ उर में जोवै, सुरति निरति मन पवन समोवै।
सुरति निरति मन पवन पदार्थ(नाम), करो इक्तर यार।
द्वादस अन्दर समोय ले, दिल अंदर दीदार।
गरीब, स्वांस सुरति के मध्य है, न्यारा कदे नहीं होय।
सतगुरु साक्षी भूत कूं, राखो सुरति समोय।।
गरीब, चार पदार्थ उर में जोवै, सुरति निरति मन पवन समोवै।
सुरति निरति मन पवन पदार्थ(नाम), करो इक्तर यार।
द्वादस अन्दर समोय ले, दिल अंदर दीदार।
गुरु नानक देव जी की वाणी में प्रमाण:--
चहऊं का संग, चहऊं
का मीत, जामै चारि हटावै नित।
मन पवन को राखै बंद, लहे त्रिकुटी त्रिवैणी संध।।
अखण्ड मण्डल में सुन्न समाना, मन पवन सच्च खण्ड टिकाना।।
मन पवन को राखै बंद, लहे त्रिकुटी त्रिवैणी संध।।
अखण्ड मण्डल में सुन्न समाना, मन पवन सच्च खण्ड टिकाना।।
पूर्ण सतगुरु वही
है जो तीन बार में नाम दे और स्वांस की क्रिया के साथ सुमिरण का तरीका बताए। तभी
जीव का मोक्ष संभव है। जैसे परमात्मा सत्य है। ठीक उसी प्रकार परमात्मा का साक्षात्कार
व मोक्ष प्राप्त करने का तरीका भी आदि अनादि व सत्य है जो कभी नहीं बदलता है।
गरीबदास जी महाराज
अपनी वाणी में कहते हैं:
भक्ति बीज पलटै
नहीं, युग
जांही असंख।
सांई सिर पर राखियो, चैरासी
नहीं शंक।।
घीसा आए एको देश से, उतरे एको घाट।
घीसा आए एको देश से, उतरे एको घाट।
समझों का मार्ग एक
है, मूर्ख
बारह बाट।।
कबीर भक्ति बीज
पलटै नहीं, आन पड़ै बहु झोल।
जै कंचन बिष्टा परै, घटै
न ताका मोल।।
बहुत से महापुरुष
सच्चे नामों के बारे में नहीं जानते। वे मनमुखी नाम देते हैं जिससे न सुख होता है
और न ही मुक्ति होती है। कोई कहता है तप, हवन, यज्ञ आदि करो व कुछ महापुरुष आंख, कान और मुंह बंद
करके अन्दर ध्यान लगाने की बात कहते हैं जो कि यह उनकी मनमुखी साधना का प्रतीक है।
जबकि कबीर साहेब, संत गरीबदास जी महाराज, गुरु नानक देव जी आदि परम संतों ने सारी क्रियाओं को मना करके केवल एक नाम
जाप करने को ही कहा है।
कबीर, ज्ञानी हो तो हृदय लगाई, मूर्ख हो तो गम ना पाई
आत्म प्राण उद्धार
हीं, ऐसा धर्म नहीं और।
कोटि अध्वमेघ यज्ञ, सकल समाना भौर।।
वेद कतेब झूठे ना भाई, झूठे हैं सो समझे नांही।
Satnaam ...it's true ..I am very glad to read Kabir amrat baani
ReplyDeletenice i am so happy kabir allah mere sub kuch hai mere guru ji hai me unka sisya ranjeet yadav om tat sat
ReplyDeletesat sahib
ReplyDeleteVery much
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी है जी
ReplyDeleteआज के युग में सच्चे सद्गुरु कौन है मैं उनसे जुड़ना चाहता हूं नाम दान लेना चाहता हूं
ReplyDelete😊
DeleteSant rampal ji h sache satguru inse jud jao
DeleteSant rampal ji mharaj
Deleteफोन no भेजो जी
Deleteबंदी छोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज की जय हो अजमेर दास प्रदीप सिंह यादव
DeleteDivya jyoti jagrati sansthan www.djjs.org
Deletesatguru dev ki jai ho
ReplyDeleteआज के समय में सतगुरु मिलना असंभव है लेकिन हमारे ऊपर सतगुरु की छत्रछाया है यही इस बात का प्रमाण है की हम सही दिशा में चल रहे हैं और जो भाई हमारे तरह लाभ प्राप्त करना चाहते हैं तो इस M.+919826811563 से ज्ञानगंगा पुस्तक पड़ कर गुरुदेव से नाम दिक्चा ले सकते हैं
ReplyDeleteसत्साहेब
www.jagatgururampalji.org
www.ArtKrantiPub.com
Sant Rampalji mahraj
ReplyDeleteजगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज पूर्ण संत है
ReplyDeleteSant rampal ji maharaj ki jay
ReplyDeleteSANT RAMPAL JI MAHARAJ IS THE REAL SIPRITUAL LEADER IN THA UNIVERSE..☝️
ReplyDeleteसत कबीर की दया
ReplyDeleteसत कबीर की दया
ReplyDeleteRam nam saty hai
ReplyDeleteसंत साहिब जी
ReplyDeleteआप कृपा करके हमारी गलतफहमी या भ्रम दूर करें मुझे लगता है की मुझे 24 घंटे नाद सुनाई देता है और चारों तरफ लेक चमकदार तत्व दिखाई देता है साथ ही आकाश में सभी जगह अजीब सा प्रकाश जैसे ढेर सारी ढेर सारी ढेर सारी ढेर सारी गोले के रूप में घूमते हुए चमकते हुए दिखाई देते हैं कृपया मेरा भ्रम या गलतफहमी दूर करें मुझे आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है धन्यवाद आपका नमन
ReplyDeleteसिर पर बहुत हलचल स्पंदन रहता है। क्या मेरा भ्रम दूर कर सकते हैं क्या एसा लगता है कि मेरा दिमाग खराब हो गया है आप महापुरुष के आशीर्वाद की कामना करता हूं आॅम गुरु नाद ब्रह्म तत्व वाय नमः****
ये आपकी पूर्व जन्म की कमाई है जो आपको दिखाई देती
Deleteकभी आपने पूर्व जन्म में कोई साधना कि है जो आपको दिखाई देती है
पर यदि आपने इस जन्म में चार्जर नही लगाया तो वो पुण्य खत्म हो जाएंगे
इसका समाधान संत रामपाल जी है जो आपका मार्गदर्शन कर सकते है उनसे नामदीक्षा लेकर आप अपनी शंका का समाधान कर सकते है
True spiritual knowledge
ReplyDeleteसत साहेब
ReplyDeletesat saaheb bandi chor satguru rampal ji maharaj ji ki jai
ReplyDelete- कबीर, वेद हमारा भेद है, हम नहीं वेदों माहिं।
Deleteजौन वेद में हम रहैं, वो वेद जानते नाहीं।
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteयदि कोई पूर्ण सद्गुरु हैं तो मैं जीवन दान (सर्वस्व समर्पण)करने को तैयार हूँ । संपर्क सूत्र 7905787253
ReplyDeleteAgar rampal ji purn aant hote to unki ye dasha nahi hoti ....purn sant ko unke marji ke bina sparsh karoge to jal jaoge ...saikro surya ka taap hota hai purn sant me , jaldi me faisla na kare ...purna sant hai is dunia me ....man me ishwar ke prati aastha leke dhundhe to purna sant nishchit hi mil jayenge lekin khud me purn shishya ka aadarsh taiyaar kare
ReplyDeleteAgar krishn ji bhi purn parmatma hote to wo bhi jail m paida ni hote apki najariye se bol rh hu bhai
Deleteपूर्ण संत को समझने के लिए धैर्य रखने की आवश्यकता है समय आने पर ही उनके रहस्य समझ कर दुनिया वाले रोयेंगे।
Deleteकबीर परमात्मा की जय
ReplyDeleteभगत जी मैं पूछना चाहता हूं कि सारनाम का जाप कैसे करते हैं
ये सारनांम क्या है ? आखिर इसको कोई उजागर क्यो नही करता? सारनांम मंत्र में क्या दिया जाता है?
ReplyDeleteसत साहिब जी पिताजी ने बताया कि इस सार नाम का जाप सुरती निरती से किया जाता है ठीक है जी सत साहेब परमात्मा प्रेरणा करे तो हरी चर्चा कीजिए दास के मोबाइल नंबर 9770244002
DeleteNice
ReplyDeleteJay ho bandichod ki Sat saheb
ReplyDeleteSatgurudev Ji Ki Jay Ho
ReplyDeleteSat Saheb Ji 🌹🙏🌹
Bhagat gee yeah batao ki songs sun sakte hai ya nahi
ReplyDeleteओम ,तत ,सत - यह मंत्र श्री कृष्ण के लिए हैं
ReplyDeleteगोपाल तपनी उपनिषद में देखिए।
रामपाल जी का ज्ञान गलत है।
Greeta ka gyan kisne diya hai.....
DeleteOm. Sohang. Stt. Sukrat
ReplyDeleteOut. In. Out ln
Om. Sohang. Satt. Sukrat
ReplyDeleteOut. In. Out. In
Bilkul galat hai
Deleteसत सत ही ह व्यक्त करता को जानना ही सतगुरु होता है
ReplyDeleteMere pyare hanso kabeer saheb ki shakhi sabdh rameni pado satnam Kya hai samjho fake guruo se banche
ReplyDeleteSohang or
ReplyDeleteOm sohang satta sukrat
Out in out. In
मुजे नाम दिकशा लनाहे आपकी बडि महबानी होगी
ReplyDeleteआप मेरको नाम दिकशा देदो मे मजबूर हू
Waheguru waheguru
DeleteSant Rampal Ji Maharaj ke pass jaiye vo hi Purna sant Hain Unka hi gyan hai ye Pura. Uni se Aapka Kalyan hoga.
Deleteआनंदकंद परब्रह्म राम हैं,यह साकेत अर्थात दिव्य अयोध्या धाम में रहते हैं।
ReplyDeleteइनका विस्तार से वर्णन काक भुशुण्डी रामायण में देखा जा सकता है।
यही कबीर के राम हैं।।
आनंदकंद परब्रह्म राम हैं,यह साकेत अर्थात दिव्य अयोध्या धाम में रहते हैं।
ReplyDeleteइनका विस्तार से वर्णन काक भुशुण्डी रामायण में देखा जा सकता है।
यही कबीर के राम हैं।।
Satguru Kabir Saheb ke updesh hote hain vah Desh kya hai vah Hindi mein likhkar batao
ReplyDeletePoorn moksha mantra Om tat sat om bramh ka tat satnaam jo ki Sohan hai sat jo ki satnaam hai vo hai sohung swas nak se ander lo to so swas nak se bhar chodo to hung (omsohansohung)
ReplyDeleteHame bhi satnam satnam chahiy
ReplyDeleteSadguru Rampal Ji Maharaj hi Purna Sant hain ye Gyan unhi ka hai. Unse Diksha lekar Apna Kalyan karvayen.
Deleteजय हो बन्दी छोड़ पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की जय हो 🙏🙏🌷
ReplyDeleteबिन सत्संग विवेक न होई।
ReplyDeleteराम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
जाग जाओ जगत के भाईयों, असली ज्ञान को पहिचान लो और अपना व अपने परिवार और सर्व समाज का कल्याण करवा लो जी 🙏
कबीर जी ही पूर्ण परमात्मा हैं जी 🙏😭🙏