सबद 1
संतो भगती
सतगुरु आनी ।
नारी एक
पुर्ख दुई जाया ।
बूझो पंडित ज्ञानी ।।
पाहन फोरि
गंग एक निकरी । चहुँदिसि पानी पानी ।।
तेहि पानी
दुई परबत बूडे । दरिया लहर समानी ।।
उङि माखी तरिवर
को लागी । बोले एकै बानी ।।
वहि माखी को
माखा नाही । गरभ रहा बिनु पानी ।।
नारी सकल
पुरख वै खाये । ताते रहेउ अकेला ।।
कहैं
कबीर जो अबकी बुझै । सोई गुरू हम चेला ।।
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