।। कबीर साहेब व गोरख नाथ की गोष्ठी।।
कह कबीर
सुन गोरखनाथा, चर्चा करो हमारे साथा।
प्रथम
चर्चा करो संग मेरे, पीछे मेरे गुरु (रामानन्द)
को टेरे।
बालक रूप
कबीर निहारी, तब गोरख ताहि वचन उचारी।
कबके भए
वैरागी कबीर जी, कबसे भए वैरागी।
नाथ जी जब
से भए वैरागी मेरी, आदि अंत सुधि
लागी।।
धूंधूकार
आदि को मेला, नहीं गुरु नहीं था चेला।
जब का तो
हम योग उपासा, तब का फिरूं अकेला।।
धरती नहीं
जद की टोपी दीना, ब्रह्मा नहीं जद का
टीका।
शिव शंकर
से योगी,
न थे जदका झोली शिका।।
द्वापर को
हम करी फावड़ी, त्रोता को हम दंडा।
सतयुग मेरी
फिरी दुहाई, कलियुग फिरौ नो खण्डा।।
गुरु के
वचन साधु की संगत, अजर अमर घर पाया।
कहैं कबीर
सुनों हो गोरख, मैं सब को तत्व लखाया।।
कबीर साहेब ने उस समय वैष्णों संतों
जैसा वेष बना रखा था। कबीर साहेब ने गोरख नाथ जी को बताया
हैं कि मैं कब से वैरागी बना। कबीर साहेब ने कहा कि जब कोई सृष्टि
(काल सृष्टि) नहीं थी तथा न सतलोक सृष्टि थी तब मैं (कबीर)
अनामी लोक में था और कोई नहीं था। चूंकि साहेब कबीर ने ही सतलोक सृष्टि शब्द से रची तथा
फिर काल (ज्योति निरंजन-ब्रह्म) की सृष्टि रची। जब मैं अकेला रहता था जब धरती
(पृथ्वी) भी नहीं थी तब से मेरी टोपी जानो। ब्रह्मा जो गोरखनाथ तथा उनके गुरु मच्छन्दर नाथ
आदि सर्व प्राणियों के शरीर बनाने वाला पैदा भी नहीं हुआ था। तब से मैंने टीका लगा रखा
है अर्थात् मैं (कबीर) तब से सतपुरुष आकार रूप मैं ही हूँ।
सतयुग-त्रोतायुग-द्वापर तथा कलियुग
ये चार युग तो मेरे सामने असंख्यों जा लिए। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हमने सतगुरु
वचन में रह कर अजर-अमर घर (सतलोक) पाया। इसलिए सर्व प्राणियों को तत्व (वास्तविक
ज्ञान) बताया है कि पूर्ण गुरु से उपदेश ले कर आजीवन गुरु वचन में चलते हुए पूर्ण परमात्मा का
ध्यान सुमरण करके उसी अजर-अमर सतलोक में जा कर जन्म-मरण रूपी अति दुःखमयी संकट से बच सकते
हो।
इस बात को सुन कर गोरखनाथ जी ने
पूछा हैं कि आपकी आयु तो बहुत छोटी है अर्थात् आप लगते तो हो बालक से।
जो बूझे
सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी।
असंख युग
प्रलय गई,
तब का ब्रह्मचारी।।टेक।।
कोटि
निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा
महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो
ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि
शम्भू गए,
मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिन नारद
हो गए,
मुहम्मद से चारी।
देवतन की
गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा
नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर
सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।
श्री गोरखनाथ सिद्ध को सतगुरु कबीर
साहेब अपनी आयु का विवरण देते हैं। असंख युग प्रलय में गए। तब का मैं वर्तमान हूँ
अर्थात् अमर हूँ। करोड़ों ब्रह्म (क्षर पुरूष अर्थात् काल) भगवान मृत्यु को प्राप्त होकर पुनर्जन्म
प्राप्त कर चुके हैं।
एक ब्रह्मा की आयु 100
(सौ) वर्ष की है।
ब्रह्मा का एक दिन त्र 1000
(एक हजार) चतुर्युग तथा इतनी ही रात्राी।
दिन-रात त्र 2000
(दो हजार) चतुर्युग।
{नोट - ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्रों का शासन काल समाप्त हो जाता है। एक इन्द्र का शासन
काल बहतर चतुर्युग का होता है।
इसलिए वास्तव में ब्रह्मा जी का एक दिन (72
गुणा 14 =) 1008 चतुर्युग
का होता है तथा इतनी ही रात्री,
परन्तु इस को एक हजार चतुर्युग ही मान कर चलते हैं।}
महीनात्र 30 गुणा 2000 त्र 60000 (साठ
हजार) चतुर्युग।
वर्ष त्र 12 गुणा 60000 त्र 720000 (सात
लाख बीस हजार) चतुर्युग की।
ब्रह्मा जी की आयु -
720000 गुणा 100त्र 72000000 (सात करोड़ बीस लाख) चतुर्युग की।
ब्रह्मा से सात गुणा विष्णु जी की
आयु -
72000000 गुणा 7 त्र 504000000 (पचास करोड़ चालीस लाख) चतुर्युग की
विष्णु की आयु है।
विष्णु से सात गुणा शिव जी की आयु -
504000000 गुणा 7 त्र 3528000000 (तीन अरब बावन करोड़ अस्सी लाख)
चतुर्युग की शिव की आयु हुई।
ऐसी आयु वाले सत्तर हजार शिव भी मर
जाते हैं तब एक ज्योति निरंजन (ब्रह्म) मरता है। पूर्ण परमात्मा के द्वारा पूर्व निर्धारित
किए समय पर एक ब्रह्मण्ड में महाप्रलय होती है। यह (सत्तर हजार शिव की मृत्यु अर्थात् एक
सदाशिव/ज्योति निरंजन की मृत्यु होती है) एक युग होता है परब्रह्म का। परब्रह्म का एक दिन एक हजार युग
का होता है इतनी ही रात्राी होती है तीस दिन-रात का एक महिना तथा बारह महिनों का परब्रह्म
का एक वर्ष हुआ तथा सौ वर्ष की परब्रह्म की आयु है। परब्रह्म की भी मृत्यु होती है। ब्रह्म
अर्थात् ज्योति निरंजन की मृत्यु परब्रह्म के एक दिन के पश्चात् होती है परब्रह्म के सौ वर्ष पूरे होने के
पश्चात् एक शंख बजता है सर्व ब्रह्मण्ड नष्ट हो जाते हैं। केवल सतलोक व ऊपर तीनों लोक ही शेष रहते
हैं। इस प्रकार कबीर परमात्मा ने कहा है कि करोड़ों ज्योति निरंजन मर लिए मेरी एक पल भी
आयु कम नहीं हुई है अर्थात् मैं वास्तव में अमर पुरुष हूं। अन्य भगवान जिसका तुम आश्रय ले कर
भक्ति कर रहे हो वे नाशवान हैं। फिर आप अमर कैसे हो सकते हो?
अरबों तो ब्रह्मा गए, 49 कोटि कन्हैया। सात
कोटि शंभु गए, मोर एक नहीं पलैया। यहां देखें अमर पुरुष कौन है?
343 करोड़ त्रिलोकिय ब्रह्मा मर जाते हैं, 49
करोड़ त्रिलोकिय विष्णु तथा 7 करोड़ त्रिलोकिय शिव मर जाते हैं तब एक ज्योति निरंजन (काल-ब्रह्म) मरता
है। जिसे गीता जी के अध्याय 15 के श्लोक 16 में क्षर -पुरूष (नाशवान) भगवान कहा है
इसे ब्रह्म भी कहते हैं तथा इसी श्लोक में जिसे
अक्षर पुरूष (अविनाशी) कहा है वह परब्रह्म है जिसे अक्षर पुरुष भी कहते हैं। अक्षर पुरुष अर्थात्
परब्रह्म भी नष्ट होता है। यह काल भी करोड़ों समाप्त हो जाएंगे। तब सर्व अण्डों अर्थात् ब्रह्मण्डों
का नाश होगा। केवल सतलोक व उससे ऊपर के लोक शेष रहेगें। अचिंत,
सत्यपुरूष के आदेश से सृष्टि रचेगा। यही क्षर पुरुष तथा अक्षर पुरुष
की सृष्टि पुनः प्रारम्भ होगी।
जो गीता जी के अध्याय 15 के श्लोक 17 में कहा है कि वह उत्तम पुरुष (पूर्ण
परमात्मा) तो कोई और ही है जिसे अविनाशी परमात्मा
नाम से जाना जाता है। वह पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर सतपुरुष स्वयं कबीर साहेब है। केवल सतपुरुष
अजर-अमर परमात्मा है तथा उसी का सतलोक (सतधाम) अमर है जिसे अमर लोक भी कहते हैं।
वहाँ की भक्ति करके भक्त आत्मा पूर्ण मुक्त होती है। जिसका कभी मरण नहीं होता। कबीर साहेब ने
कहा कि यह उपलब्धि सत्यनाम के जाप से प्राप्त होती है जो उसके मर्म भेदी गुरु से मिले तथा
उसके बाद सारनाम मिले तथा साधक आजीवन मर्यादा में रहकर तीनों मन्त्रों (ओम् तथा तत् जो
सांकेतिक है तथा सत् भी सांकेतिक है) का जाप करे तब सतलोक में वास तथा सतपुरुष प्राप्ति होती
है। करोंड़ों नारद तथा मुहम्मद जैसी पाक (पवित्रा) आत्मा भी आकर (जन्म कर) जा (मर) चुके हैं,
देवताओं की तो गिनती नहीं। मानव शरीर धारी प्राणियों तथा जीवों का तो हिसाब क्या लगाया जा
सकता है?
मैं (कबीर साहेब) न बूढ़ा न बालक, मैं तो जवान रूप में रहता हूँ जो ईश्वरीय शक्ति
का प्रतीक है। यह तो मैं लीलामई शरीर में आपके समक्ष हूँ। कहै कबीर सुनों जी गोरख,
मेरी आयु (उम्र) यह है जो आपको ऊपर बताई है।
यह सुन कर श्री गोरखनाथ जी जमीन में गड़े लगभग 7 फूट ऊँचें त्रिशूल के ऊपर के भाग पर अपनी सिद्धि शक्ति से उड़ कर बैठ गए
और कहा कि यदि आप इतने महान् हो तो मेरे बराबर में (जमीन से लगभग सात फूट) ऊँचा उठ
कर बातें करो। यह सुन कर कबीर साहेब बोले नाथ जी! ज्ञान गोष्टी के लिए आए हैं न कि
नाटक बाजी करने के लिए। आप नीचे आएं तथा सर्व भक्त समाज के सामने यथार्थ भक्ति संदेश दें।
श्री गोरखनाथ जी ने कहा कि आपके पास
कोई शक्ति नहीं है। आप तथा आपके गुरुजी दुनियाँ को गुमराह कर रहे हो। आज
तुम्हारी पोल खुलेगी। ऐसे हो तो आओ बराबर। तब कबीर साहेब के बार-2 प्रार्थना करने पर भी नाथ जी बाज नहीं आए तो साहेब कबीर ने अपनी पराशक्ति (पूर्ण सिद्धि) का प्रदर्शन किया।
साहेब कबीर की जेब में एक कच्चे धागे की रील (कुकड़ी) थी जिसमें लगभग 150
(एक सौ पचास) फुट लम्बा धागा लिप्टा (सिम्टा) हुआ था, को निकाला और धागे का एक सिरा (आखिरी छौर) पकड़ा
और आकाश में फैंक दिया। वह सारा धागा उस बंडल (कुकड़ी) से उधड़ कर सीधा खड़ा हो
गया। साहेब कबीर जमीन से आकाश में उड़े तथा लगभग 150 (एक सौ पचास) फुट सीधे खड़े
धागे के ऊपर वाले सिरे पर बैठ कर कहा कि आओ नाथ जी! बराबर में बैठकर चर्चा करें।
गोरखनाथ जी ने ऊपर उड़ने की कोशिश की लेकिन उल्टा जमीन पर टिक गए। पूर्ण परमात्मा (पूर्णब्रह्म) के
सामने सिद्धियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं। जब गोरख नाथ जी की कोई कोशिश सफल नहीं हुई,
तब जान गए कि यह कोई मामूली भक्त या संत नहीं है। जरूर कोई अवतार (ब्रह्मा,
विष्णु, महेश में से) है। तब साहेब कबीर से
कहा कि हे परम पुरुष! कृप्या नीचे आएँ और अपने दास पर दया करके अपना परिचय
दें। आप कौन शक्ति हो? किस लोक से आना हुआ है? तब कबीर साहेब नीचे आए और कहा कि -
अवधु अविगत
से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं
पाया।।टेक।।
साहेब कबीर ने कहा कि हे अवधूत
गोरखनाथ जी मैं तो अविगत स्थान (जिसकी गति/भेद कोई नहीं जानता उस सतलोक) से आया
हूँ। मैं तो स्वयं शक्ति से बालक रूप बना कर काशी (बनारस) में एक लहर तारा तालाब
में कमल के फूल पर प्रकट हुआ हूँ। वहाँ पर नीरू-नीमा नामक जुलाहा दम्पति को मिला जो मुझे अपने
घर ले आया। मेरे कोई मात-पिता नहीं हैं। न ही कोई घर दासी (पत्नी) है और जो उस परमात्मा
का वास्तविक नाम है, वही कबीर नाम मेरा
है। आपका ज्योति स्वरूप जिसे आप अलख निरंजन
(निराकार भगवान) कहते हो वह ब्रह्म भी मेरा ही जाप करता है। मैं सतनाम का जाप करने
वाले साधक को प्राप्त होता हूँ अर्थात् वहीं मेरे विषय में सही जानता है। हाड-चाम तथा लहु रक्त से
बना मेरा शरीर नहीं है। कबीर साहेब सतनाम की महिमा बताते हुए कहते हैं कि मेरे मूल
स्थान (सतलोक) में सतनाम के आधार से जाया जाता है। अन्य साधकों को संकेत करते हुए प्रभु
कबीर (कविर्देव) जी कह रहे हैं कि मैं उसी का जाप करता रहता हूँ। इसी मन्त्रा (सतनाम) से सतलोक
जाने योग्य होकर फिर सारनाम प्राप्ति करके जन्म-मरण से
पूर्ण छुटकारा मिलता है। यह तारन
तरन पद (पूजा विधि) मैंने (कबीर साहेब अविनाशी भगवान ने) आपको बताई है। इसे कोई नहीं जानता।
गोरख नाथ जी को बताया कि हे पुण्य आत्मा! आप काल क्षर पुरुष (ज्योति निरंजन) के जाल
में ही हो। न जाने कितनी बार आपके जन्म हो चुके हैं। कभी चैरासी लाख जूनियों में कष्ट पाया।
आपकी चारों युगों की भक्ति को काल अब (कलियुग में) नष्ट कर देता यदि आप मेरी शरण में नहीं
आते।
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